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मैनुअल स्कैवेंजर्स प्रथा से संबंधित समस्याएँ

(प्रारंभिक परीक्षा- सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2 : सामाजिक सशक्तीकरण, केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ )

संदर्भ

भारत में हाथ से मैला ढोने तथा शौचालयों की सफाई की प्रथा को खत्म करने के प्रयासों ने पिछले तीन दशकों में विशेष रूप से गति पकड़ी है। वर्ष 1994 में ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ (SKA) के गठन के बाद से इसमें विशेष तेज़ी आई है।

भारत में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या

  • आधिकारिक तौर पर मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या वर्ष 2008 में 770,338 से घटकर वर्ष 2018 में 42,303 हो गई। हालाँकि, इस दौरान होने वाली गिरावट को मूल्यांकन में कमी को परिणाम माना जा सकता है।
  • यद्यपि भारत सरकार संख्या में कमी का कारण ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के सख्त प्रवर्तन तथा स्वच्छ भारत अभियान का प्रभाव मानती है।
  • हालाँकि, इस समस्या के सूक्ष्म निरीक्षण से उक्त अधिनियम और स्वच्छ भारत अभियान के कार्यान्वयन के साथ-साथ आधिकारिक आँकड़ों के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं में कई कमियों का पता चलता है।

सर्वेक्षण और इसकी कमियाँ

  • वर्ष 2018 में मैनुअल स्कैवेंजर्स का सर्वेक्षण ‘राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम’ (NSKFDC) द्वारा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आदेश पर किया गया था। यह सर्वेक्षण केवल 14 भारतीय राज्यों के वैधानिक शहरों में आयोजित किया गया था।
  • सर्वेक्षण में पहचाने गए कुल मैनुअल स्कैवेंजर्स में लगभग आधे को (42,303) ही मंत्रालय द्वारा मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में मान्यता दी गई। इसमें से केवल 27,268 को ही संबंधित योजनाओं का लाभ प्राप्त हो सका।
  • वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना में 1,82,505 ऐसे घरों की पहचान की गई जिनका प्राथमिक व्यवसाय मैनुअल स्केवेंजिंग है। इस तथ्य को देखते हुए इस सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से कमियाँ नज़र आती हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना अनुमानों के अनुसार, देश में शुष्क शौचालयों की संख्या लगभग 26 लाख थी। इस तथ्य को देखते हुए सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या लगभग 12 लाख अनुमानित करना अधिक उचित प्रतीत होता है। अत: सरकार के दावों के बावजूद इस प्रथा में 2011 से 2018 के बीच 89% की कमी का अनुमान आतार्किक लगता है।
  • यह सर्वेक्षण भारत के वैधानिक शहरों तक ही सीमित था, जो मैनुअल स्केवेंजिंग को केवल शहरी समस्या के रूप में ही प्रतिबिंबित करता है। यह सरकार की दुर्बल इच्छा शक्ति को दर्शाता है।

अधिनियम और उसका कार्यान्वयन

  • ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ का उद्देश्य अस्वच्छ शौचालयों (जो गड्ढों / सेप्टिक टैंकों / सीवेज लाइनों से नहीं जुड़े हैं) को ख़त्म करने के साथ-साथ मैनुअल स्कैवेंजर्स को अन्य व्यवसायों में पुनर्वास पर नज़र रखना और आवधिक सर्वेक्षण आयोजित करना है।
  • इस अधिनियम में किसी भी व्यक्ति, स्थानीय प्राधिकारी या एजेंसी पर सीवर या सेप्टिक टैंकों की जोखिमयुक्त सफाई में किसी भी व्यक्ति के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न होने की अवस्था में कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
  • यदि सुरक्षा उपायों और अन्य सावधानियों का अनुपालन करते हुए भी इस कार्य को करते समय किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो नियोक्ता द्वारा परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देना अपेक्षित है।
  • 57वीं सामाजिक न्याय और अधिकारिता स्थाई समिति, 2017-18 के अनुसार वर्ष 2014 में इससे संबंधित कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, जो इससे संबंधित कार्रवाई की वास्तविकता को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (NCSK) के अनुसार, सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय वर्ष 2013 से 2017 के बीच 608 मैनुअल स्कैवेंजर्स की मृत्यु हो गई है।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स में लगे लोगों की कम संख्या और उनकी मौत से संबंधित आधिकारिक आँकड़ों में कमी के चलते उनके कल्याण से संबंधित नीतियों का कार्यान्वयन, पहुँच और कवरेज कम हो गया है।
  • 2017-18 में संसदीय स्थाई समिति के अनुसार ‘स्कैवेंजर्स की मुक्ति और पुनर्वास के लिये स्व-रोज़गार योजना’ के अनुसार केवल 27,268 मैनुअल स्कैवेंजर्स को ही एक बारगी नकदी सहायता प्रदान की गई है।

स्वच्छ भारत अभियान और मैनुअल स्केवेंजिंग

  • स्वच्छ भारत अभियान के तहत भारत ने वर्ष 2014 के बाद से लगभग 1,000 लाख शौचालयों का निर्माण करने का दावा किया है। इस प्रकार लगभग 95% घरों तक शौचालय की पहुँच हैं।
  • दो गड्ढे वाले (13%) शौचालयों में मल के प्रबंधन के लिये ह्यूमन हैंडलिंग की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि सोख्ता गड्ढे वाले सेप्टिक टैंक (38%) तथा एकल गड्ढे (20%) या सीवरेज लाइन से जुड़े शौचालयों में कुछ समय के बाद मैनुअल या यांत्रिक निष्कर्षण की आवश्यकता होती है।
  • ग्रामीण स्तर पर सोख्ता गड्ढे वाले सेप्टिक टैंक तथा एकल गड्ढे वाले शौचालयों की अधिक संख्या और सक्सन पंपों (चूषण पंपों) की कम उपलब्धता को देखते हुए स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इनमें से अधिकांश शौचालयों को मैनुअल या यांत्रिक निष्कर्षण के जरिये साफ किये जाने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण स्वच्छता पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

न्यायिक हस्तक्षेप और आगे की राह

  • कार्यान्वयन में कमी और अंतराल को देखते हुए इस समस्या के जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है। भारत में मैनुअल स्कैवेंजरों की संख्या का अनुमान लगाने के लिये वर्ष 2018 में किया गया सर्वेक्षण ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य’ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के अनुसार किया गया था।
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में दायर एक जनहित याचिका के जवाब में सरकार पर संदेह व्यक्त करते हुए महाराष्ट्र सरकार से मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोज़गार से जुड़े मामलों में दोषियों की संख्या के साथ-साथ उनकी मृत्यु पर मुआवजे के संबंध में प्रतिक्रिया मांगी है।
  • हालाँकि, स्वच्छ भारत अभियान ने शौचालयों के उपयोग के संबंध में अभूतपूर्व, सकारात्मक और ढाँचागत बदलाव किये हैं परंतु मैनुअल स्कैवेंजिंग को कम करने के लिये अधिक प्रयास और समय की आवश्यकता है। नीतिगत स्तर पर स्वच्छ भारत अभियान ने शौचालयों तक पहुँच में वृद्धि की है, परंतु इसमें सफाई करने वालों की अनदेखी की गई हैं।
  • साथ ही, इसके लिये बनाए गए कानून से संबंधित सर्वाधिक प्राथमिकी कर्नाटक में दर्ज की गई है। हालाँकि, इसके ट्रायल की संख्या का बहुत कम होना स्पष्ट रूप से राज्य, नौकरशाही और यहाँ तक ​​कि समाजिक सहानुभूति की कमी को दर्शाता है।
  • राज्य और समाज को इस समस्या में सक्रिय रूप से रुचि लेने और इसके सही ढंग से आकलन करने तथा समाप्त करने के लिये सभी संभावित विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • साथ ही, मशीनीकरण की शुरूआत और उसके अधिक से अधिक प्रयोग में हितधारकों की भागीदारी को भी सुनिश्चित करना चाहिये।

प्रिलिम्स फैक्ट्स :

1)  सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज अभियान  

  • सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज अभियान को 19 नवंबर, 2020 को विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया।
  • इसका लक्ष्य 30 अप्रैल, 2021 तक भारत के 243 शहरों में सभी सेप्टिक और सीवेज टैंक की सफाई को पूरी तरह से यंत्रीकृत करते हुए मशीन से सफाई को बढ़ावा देना है।
  • इस अभियान में प्रतिभाग करने वाले शहरों का मूल्यांकन मई 2021 में एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किया जाएगा, जिसके परिणाम 15 अगस्त, 2021 को घोषित किये जाएंगे।

2)  स्कैवेंजर्स की मुक्ति और पुनर्वास के लिये स्व-रोज़गार योजना (SRMS)

  • स्कैवेंजर्स के लिये वैकल्पिक आजीविका के साथ उनके और उन पर आश्रित लोगों के पुनर्वास के उद्देश्य के साथ इस योजना को जनवरी 2007 में स्थापित किया गया था।
  • एस.आर.एम.एस. के अंतर्गत प्रदान किये जाने वाले लाभ और अधिकार इस प्रकार हैं-
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के परिवार के एक सदस्य को तत्काल 40,000 रुपये की नकद सहायता
    • स्वरोजगार परियोजनाओं के लिये दस लाख रुपये तक का रियायती ऋण
    • 2 वर्ष तक के लिये 3,000 रुपये का मासिक वृत्ति तथा सभी मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके आश्रितों के लिये कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुँच
    • उपरोक्त ऋण के मुकाबले 3,25,000 रुपये की क्रेडिट-लिंक्ड बैक-एंड कैपिटल सब्सिडी
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