New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

न्यायिक स्थानांतरण और संबंधित विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राजतंत्र और शासन- संविधान राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2, शासन व्यवस्था, संविधान, कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना)

संदर्भ

  • मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी के मद्रास उच्च न्यायालय से मेघालय उच्च न्यायालय में स्थानांतरण ने एक विवाद को जन्म दिया है कि क्या न्यायिक स्थानांतरण केवल प्रशासनिक कारणों से किये गए हैं या इसके पीछे 'दंड' का भी कोई तत्त्व है।
  • वर्ष 2019 में मद्रास उच्च न्यायालय के एक अन्य मुख्य न्यायाधीश विजया के. ताहिलरमानी को मेघालय स्थानांतरित किया गया था, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

संविधान में न्यायाधीशों के स्थानांतरण संबंधी प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 222 में मुख्य न्यायाधीश सहित उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण संबंधी प्रावधान किये गए हैं। इसके अनुसार, राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर किसी न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है। यह अनुच्छेद स्थानांतरित न्यायाधीश के लिये प्रतिपूरक भत्ते का भी प्रावधान करता है।
  • इसका अर्थ है कि कार्यपालिका भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद ही किसी न्यायाधीश का स्थानांतरण कर सकती है। समय-समय पर यह प्रस्ताव आते रहे हैं कि प्रत्येक उच्च न्यायालय की संरचना के एक तिहाई पद पर अन्य राज्यों के न्यायाधीश नियुक्त होने चाहिये।

संबंधित मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

  • भारत संघ बनाम संकल्पचंद हिम्मतलाल सेठ (1977) वाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस विचार को खारिज कर दिया था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनकी सहमति से ही स्थानांतरित किया जा सकता है। न्यायालय का तर्क था कि सत्ता के हस्तांतरण का प्रयोग केवल जनहित में ही किया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, राष्ट्रपति का दायित्व है कि वह भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करे, जिसका तात्पर्य सभी प्रासंगिक तथ्यों को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने से है। भारत के मुख्य न्यायाधीश का अधिकार व कर्तव्य है कि वह संबंधित न्यायाधीश या अन्य से तथ्यों की जानकारी प्राप्त करे।
  • एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ व अन्य वाद (1981) में, जिसे 'जजों के स्थानांतरण मामले' तथा पहले न्यायाधीशों के मामले के रूप में भी जाना जाता है, में उच्चतम न्यायालय को पुनः इस मामले पर विचार करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस दौरान अन्य मामलों के अतिरिक्त न्यायालय को दो मुख्य न्यायाधीशों के स्थानांतरण की वैधता के साथ-साथ विधि मंत्रालय के एक परिपत्र पर विचार करना था।
  • इसमें मंत्रालय ने कहा था कि सभी उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त न्यायाधीशों को किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिये उनकी सहमति मांगी जा सकती है तथा तीन प्राथमिकताएँ बताई जा सकती हैं।
  • मंत्रालय का तर्क था कि इस तरह के स्थानांतरण से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा तथा जाति, नातेदारी, संबद्धता तथा अन्य स्थानीय संबंधों से उत्पन्न संकीर्ण प्रवृत्तियों से बचने में मदद मिलेगी।
  • बहुमत ने फैसला सुनाया कि मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श का तात्पर्य नियुक्तियों के संबंध में 'सहमति' नहीं है। वास्तव में इसने नियुक्तियों व स्थानांतरण के मामले में कार्यपालिका की प्रधानता पर बल दिया।
  • हालाँकि, स्कारा बनाम भारत संघ वाद, 1993 जिसे द्वितीय न्यायाधीश मामले के नाम से भी जाना जाता है, में इस स्थिति को खारिज कर दिया गया था। इसके तहत वरिष्ठतम न्यायाधीशों के विचारों को ध्यान में रखकर मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्मित राय को प्रधानता दी जानी थी। तभी से कॉलेजियम के माध्यम से नियुक्तियाँ की जा रही हैं।

स्थानांतरण के लिये वर्तमान प्रक्रिया

  • जैसा कि द्वितीय न्यायाधीश मामले में शामिल बिंदुओं में से एक यह था कि मुख्य न्यायाधीश की राय का अर्थ अधिकतम न्यायाधीशों की बहुलता के विचारों से होना चाहिये। इसी से 'न्यायाधीशों के कॉलेजियम' की अवधारणा अस्तित्व में आई।
  • कॉलेजियम व्यवस्था में, मुख्य न्यायाधीश सहित किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शुरू किया जाना चाहिये, ‘जिसकी राय इस संबंध में निर्धारक है’। इसके लिये न्यायाधीश की सहमति की आवश्यकता नहीं है। पूरे देश में बेहतर न्यायिक प्रशासन को बढ़ावा देने के लिये सभी स्थानांतरण जनहित में किये जाते हैं।
  • मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश के स्थानांतरण के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को संबंधित न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उस न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय लेनी चाहिये जहाँ स्थानांतरण किया जाना है। इसके अतिरिक्त, मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के एक या अधिक न्यायाधीशों, जो अपने विचार प्रस्तुत करने की स्थिति में हैं, के विचारों को भी ध्यान में रखना चाहिये।
  • सभी न्यायाधीशों के विचार लिखित रूप में व्यक्त होने चाहिये तथा इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश व उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा विचार किया जाना चाहिये। इन पाँच न्यायाधीशों से मिलकर ही कॉलेजियम का गठन होता है।
  • इनकी सिफारिशें केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी जाती हैं, जो इन्हें प्रधानमंत्री को सौंपता है। तत्पश्चात् पी.एम. राष्ट्रपति को स्थानांतरण के संबंध में मंज़ूरी प्रदान करने की सलाह देता है।

स्थानांतरण के संबंध में विवाद

  • स्थानांतरण आदेश तब विवादास्पद हो जाते हैं जब बार काउंसिल या जनता के वर्गों को लगता है कि किसी न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के निर्णय के पीछे एक दंडात्मक तत्त्व निहित है।
  • प्रथा के रूप में उच्चतम न्यायालय तथा सरकार स्थानांतरण के कारणों का खुलासा नहीं करते हैं। क्योंकि, यदि ऐसा किसी न्यायाधीश की क्रियाविधि  पर प्रतिकूल राय के कारण किया गया है तो इससे न्यायाधीश के प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ेगा तथा उस न्यायालय की, जिसमें उसे स्थानांतरित किया गया है, स्वतंत्रता प्रभावित होगी।
    Have any Query?

    Our support team will be happy to assist you!

    OR