New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राजव्यवस्था और शासन, संविधान, राजनीतिक प्रणाली से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2- संसद और राज्य विधायिका की शक्तियों एवं विशेषाधिकार से संबंधित प्रश्न, संघीय ढांचे से संबंधित विषय) 

संदर्भ

  • हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 को संसद द्वारा पारित कर दिया गया। साथ ही, राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के पश्चात् गृह मंत्रालय की अधिसूचना पर यह अधिनियम 27 अप्रैल से प्रभावी हो गया।
  • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करता है।

दिल्ली से संबंधित प्रमुख तथ्य

  • वर्ष 1991 के 69वें संविधान संशोधन के तहत दिल्ली को विधानसभा युक्त एक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। ध्यातव्य है कि दिल्ली एक सामान्य या अन्य राज्यों की तरह पूर्ण राज्य नहीं है।
  • हालाँकि, दिल्ली विधानसभा और सरकार के पास अधिकार सीमित हैं।   

69वाँ संविधान संशोधन, 1991

  • 69वें संविधान संशोधन के तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया। साथ ही, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा और सदस्यों के 10% मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया। 
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अतिरिक्त सभी केंद्र शासित प्रदेशों में अनुच्छेद- 239 लागू होता है। 
  • वर्ष 1991 के संविधान संशोधन के पश्चात् राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए अनुच्छेद- 239(AA) और अनुच्छेद- 239(AB) को लागू किया गया। 

अनुच्छेद- 239(AA)

  • इसके तहत दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Territory) का दर्जा दिया गया एवं इसके प्रशासक एलजी अर्थात् उपराज्यपाल होंगे ऐसा प्रावधान किया गया। 
  • संविधान के अनुच्छेद- 239(A) के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। साथ ही, दिल्ली में चुनाव कराने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग के पास है एवं निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल को पद और गोपनीयता की शपथ उपराज्यपाल द्वारा दिलाई जाती है। 
  • इस अनुच्छेद के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। अन्य राज्यों की तरह दिल्ली सरकार को पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
  • दिल्ली विधानसभा को इन सभी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार और संसद के अधीन हैं।
  • यदि किसी विषय पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों कानून का निर्माण करते हैं, तो केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून मान्य होगा।
  • यदि किसी मुद्दे पर उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के मध्य गतिरोध उत्पन्न हो जाता है, तो उपराज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं। 

अनुच्छेद- 239(AB)

  • इस अनुच्छेद की शक्तियाँ राष्ट्रपति शासन की स्थिति में लागू होती है। यदि उपराज्यपाल को लगता है कि मंत्रिमंडल, शासन का संचालन करने में अक्षम है तो वह राष्ट्रपति को आपात स्थिति लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं। 
  • राष्ट्रपति शासन की स्थिति में फैसले लेने का अधिकार उपराज्यपाल को होगा।

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • अनुच्छेद- 239AA के तहत पुलिस, कानून व्यवस्था और दिल्ली के अधीन आने वाली भूमि पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है। इन मामलों में विवाद होने पर वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने अहम निर्णय दिया।
  • इसके अनुसार दिल्ली सरकार को पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि संबंधी मामलों के अलावा किसी भी मुद्दे पर उपराज्यपाल की सहमति लेना जरूरी नहीं है।
  • हालाँकि, दिल्ली सरकार को अपने निर्णयों की सूचना ज़रूर उपराज्यपाल को देनी होगी। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने एक प्रशासक के तौर दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका को सीमित बताया था।

संशोधन की आवश्यकता क्यों

  • हालिया वर्षों में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों के मध्य टकराव के कई मामले सामने आए हैं। यद्यपि, 1991 के अधिनियम में प्रक्रिया और कार्य संचालन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं किंतु इस अधिनियम में कई बिंदुओं की स्पष्ट तौर पर व्याख्या नहीं की गई है।
  • अधिनियम में इस बारे में भी स्पष्टता नहीं है कि सरकार द्वारा आदेश जारी करने से पूर्व मामलों को किस प्रकार उपराज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करना है। साथ ही, फैसलों के प्रभावी समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए भी कोई संरचनात्मक तंत्र स्थापित नहीं किया गया है।
  • इस संशोधन विधेयक में दिल्ली के उपराज्यपाल की कुछ भूमिकाओं और अधिकारों को परिभाषित किया गया है। 
  • इस संशोधन का उद्देश्य मूल विधेयक में जो अस्पष्टता है उसे दूर करना है, ताकि इस कानून को विभिन्न अदालतों में चुनौती देने से बचाया जा सके।

संशोधन विधेयक 2021 के प्रावधान 

  • यह अधिनियम वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 तथा 44 में संशोधन करेगा।
  • नए विधेयक के तहत दिल्ली में 'सरकार' शब्द का आशय 'उपराज्यपाल' से होगा। साथ ही, इसके अंतर्गत उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का विस्तार किया गया है एवं उपराज्यपाल को उन मामलों में भी और अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार विधानसभा के पास है।
  • यह विधेयक सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (या दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय आवश्यक रूप से ली जायेगी।
  • वहीं, दिल्ली विधानसभा राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मामलों पर विचार करने अथवा प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में स्वयं को मजबूत करने के लिए कोई नियम नहीं बनाएगी।
  • विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि उक्त विधेयक विधानसभा और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का संवर्द्धन करेगा। साथ ही, निर्वाचित सरकार एवं उपराज्यपाल के उत्तरदायित्वों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप परिभाषित करेगा।
  • इसमें कहा गया है कि संशोधन मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हैं, और क्रमशः 4 जुलाई, 2018 और 14 फरवरी, 2019 के उच्चतम न्यायालय के दो निर्णयों पर आधारित हैं।

आलोचना

  • नवीनतम प्रावधान दिल्ली सरकार की कार्यप्रणाली एवं समयबद्धता को कम कर देगा साथ ही कोई भी कार्य करने से पूर्व उपराज्यपाल से परामर्श करना पड़ेगा, जो पुनः विवाद का कारण बनेगा।
  • आलोचकों का मानना है कि नवीनतम प्रावधानों के साथ उपराज्यपाल की शक्ति में ओर अधिक वृद्धि होगी। जो सरकार के प्रशासनिक कार्यों में राजनीतिक रूप से बाधा उत्पन्न करेगी।
  • ध्यातव्य है कि उपराज्यपाल, सरकार को एक समय सीमा के भीतर सलाह देने के लिए बाध्य नहीं है। अतः यह भी सरकारी कामकाज में देरी का कारण बनेगा।
  • यह संशोधन निर्वाचित सरकार के अधिकारों को सीमित करता है, साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार के हस्तक्षेप को भी बढ़ावा देता है।
  • आलोचकों का मानना है कि नवीनतम प्रावधान संविधान में निहित शासन के विकेंद्रीकरण एवं संघवाद की भावना के विपरीत है।

निष्कर्ष

नवीनतम संशोधन अधिनियम के माध्यम से शासन के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि वर्तमान में विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली समय की माँग है। साथ ही, अधिनियम के प्रावधान उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों एवं अधिकारों में वृद्धि करते हैं जो उसे निरंकुश बना सकते हैं एवं चुनी हुई सरकार के अस्तित्व को भी संकट में डाल सकते हैं।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR