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हरियाणा में वन की नई परिभाषा और अरावली पर उसका प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय; पर्यावरण संरक्षण)

संदर्भ

हरियाणा सरकार ने ‘डिक्शनरी मीनिंग ऑफ फॉरेस्ट’ (Dictionary Meaning of Forest) के आधार पर वन की आधिकारिक परिभाषा तय की है। राज्य सरकार का दावा है कि यह परिभाषा सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों और न्यायिक अपेक्षाओं के अनुरूप है किंतु पर्यावरणविदों का मानना है कि यह परिभाषा अत्यधिक संकीर्ण है और इससे अरावली क्षेत्र जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे।

हरियाणा में वन की नई परिभाषा

  • 18 अगस्त, 2025 को हरियाणा पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव विभाग ने अधिसूचना जारी कर कहा कि कोई भी भूमि ‘डिक्शनरी मीनिंग ऑफ फॉरेस्ट’ के तहत तभी वन मानी जाएगी यदि:
    • उसका क्षेत्रफल न्यूनतम 5 हेक्टेयर (यदि अलग-थलग हो) या 2 हेक्टेयर (यदि अधिसूचित वनों से जुड़ी हो) हो।
    • उसका कैनोपी घनत्व (Canopy Density) 0.4 (40%) या उससे अधिक हो।
  • साथ ही, सड़क, नहरों एवं रेलवे ट्रैक के किनारे की रेखीय पौधरोपण (Linear Plantations), कॉम्पैक्ट पौधरोपण और ऑर्चर्ड्स (Orchards) को वन की परिभाषा से बाहर रखा गया है।

पुरानी बनाम नई परिभाषा

  • पुरानी परिभाषा (गोदावर्मन मामला, 1996): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वन को उसके डिक्शनरी मीनिंग से समझा जाए, यानी कोई भी ऐसा क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक रूप से वृक्ष एवं वनस्पति हों, चाहे वह अधिसूचित (Reserved/Protected) हो या न हो, उसे वन माना जाएगा। इसमें निजी भूमि पर मौजूद जंगल भी शामिल थे।
  • नई परिभाषा (हरियाणा, 2025): इसमें क्षेत्रफल और घनत्व की न्यूनतम शर्तें रखी गई हैं, जिससे कई छोटे व कम घनत्व वाले क्षेत्र वन की परिभाषा से बाहर हो जाएंगे।

नई परिभाषा लाने का कारण 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने-अपने क्षेत्र में वन की स्पष्ट परिभाषा तय करने और उसका सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था।
  • इसी आदेश का पालन करते हुए हरियाणा सरकार ने यह परिभाषा दी।
  • हरियाणा में वनों की स्थिति: हरियाणा भारत का न्यूनतम वनावरण वाला राज्य है, जिसके केवल 3.62% क्षेत्र वन के रूप में अधिसूचित हैं।

केंद्र सरकार का मत

केंद्र सरकार वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और गोदावर्मन केस (1996) में दी गई डिक्शनरी परिभाषा को मानती है, जिसमें हर प्रकार के जंगल (चाहे अधिसूचित हों या नहीं) को वन का दर्जा दिया गया है।

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980

यह अधिनियम कहता है कि:

  • किसी भी वन क्षेत्र को गैर-वन गतिविधियों (जैसे- खनन, उद्योग, निर्माण) के लिए केंद्र सरकार की अनुमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य वनों की कटाई रोकना और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।

गोदावर्मन केस (1996)

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ’ मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया। इसमें कहा गया कि:

  • वन की परिभाषा उसके डिक्शनरी मीनिंग से समझी जाएगी।
  • इसका अर्थ है कि सभी प्रकार के वन चाहे वे अधिसूचित हों या न हों, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत संरक्षित होंगे।
  • इस फैसले से वन संरक्षण का दायरा काफी बढ़ गया और निजी तथा गैर-अधिसूचित जंगल भी इसमें शामिल हो गए।

नई परिभाषा का अरावली पर प्रभाव

  • अरावली क्षेत्र प्राकृतिक रूप से शुष्क और पथरीला है, जहाँ वनस्पति का घनत्व कम होता है।
  • नई परिभाषा के तहत न्यूनतम 40% कैनोपी कवर और अधिक क्षेत्रफल की शर्त से अरावली का बड़ा हिस्सा वन की परिभाषा से बाहर हो जाएगा।
  • इससे खनन, रियल एस्टेट एवं अवैध कब्जे को बढ़ावा मिल सकता है।

आलोचना

  • पर्यावरणविदों का कहना है कि यह परिभाषा गोदावर्मन मामले और 1980 के अधिनियम की भावना के विपरीत है।
  • न्यूनतम 2–5 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 40% कैनोपी कवर जैसी शर्तें शुष्क क्षेत्रों (जैसे-अरावली) के लिए अव्यावहारिक हैं।
  • इससे पर्यावरण संरक्षण कमजोर होगा और जैव विविधता को नुकसान पहुंचेगा।

चुनौतियाँ

  • विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बनाना
  • राज्यों और केंद्र सरकार की परिभाषाओं में अंतर
  • अवैध खनन और अतिक्रमण को रोकना
  • न्यायालय के आदेशों और राज्य की नीतियों में सामंजस्य

आगे की राह

  • परिभाषा तय करते समय क्षेत्रीय पारिस्थितिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए।
  • छोटे और शुष्क क्षेत्रों को भी वन संरक्षण के दायरे में लाना चाहिए।
  • GIS आधारित सर्वेक्षण और पारदर्शी रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
  • स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण में शामिल किया जाना चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय के गोदावर्मन निर्णय की मूल भावना के अनुरूप नीतियाँ बननी चाहिए।
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