(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
21 अगस्त, 2025 को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मास्को में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। यह यात्रा ऐसे समय में हुई जब अमेरिका द्वारा भारत पर ऊर्जा व्यापार को लेकर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। इस बैठक का उद्देश्य न केवल व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना था बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, बहुपक्षीय सहयोग एवं भारतीय हितों की सुरक्षा पर भी चर्चा करना था।
भारतीय विदेश मंत्री की रूस यात्रा के बारे में
- भारत के विदेश मंत्री ने क्रेमलिन (मॉस्को) में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की।
- उन्होंने रूस के विदेश मंत्री लावरोव और उप-प्रधानमंत्री डेनिस मांतुरोव से वार्ता की।
- इस दौरान ऊर्जा, व्यापार, लॉजिस्टिक्स, कूटनीतिक सहयोग और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा पर चर्चा हुई।
- यात्रा के दौरान दो नए भारतीय वाणिज्य दूतावास (कज़ान और येकातेरिनबर्ग) खोलने पर सहमति बनी।
मुख्य परिणाम
- ऊर्जा सहयोग : भारत ने रूस से तेल और ऊर्जा आयात जारी रखने का आश्वासन दिया।
- व्यापार बढ़ावा : फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में भारत से रूस को निर्यात बढ़ाने पर बल।
- नई कनेक्टिविटी योजनाएँ
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
- चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा
- उत्तरी सागर मार्ग सहयोग
- भारतीय नागरिकों की सुरक्षा : उन भारतीयों की समस्या उठाई गई जिन्हें धोखे से यूक्रेन युद्ध में भर्ती किया गया था।
- बहुपक्षीय सहयोग : BRICS, SCO व संयुक्त राष्ट्र में भारत-रूस समन्वय पर चर्चा हुई।
यात्रा का महत्व
- ऊर्जा सुरक्षा : भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को सुरक्षित कर पा रहा है।
- व्यापार संतुलन : नए निर्यात क्षेत्रों से भारत-रूस व्यापार असंतुलन कम होगा।
- भूराजनीतिक सहयोग : BRICS और SCO जैसे मंचों पर भारत की भूमिका मज़बूत होगी।
- जन-जन संपर्क : नए वाणिज्य दूतावासों से सांस्कृतिक और मानव संसाधन संबंध गहरे होंगे।
वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य
- अमेरिका ने भारत पर रूस से बढ़ते ऊर्जा व्यापार को लेकर प्रतिबंध लगाए हैं।
- यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी देशों और रूस के बीच तनाव जारी है।
- अफगानिस्तान में तालिबान शासन को रूस ने मान्यता दी है जबकि भारत सावधानीपूर्वक कदम बढ़ा रहा है।
- इज़रायल-फ़िलिस्तीन संकट और पश्चिम एशिया की अस्थिरता वैश्विक राजनीति को प्रभावित कर रही है।
भारत के समक्ष चुनौतियाँ
- अमेरिका और यूरोप के दबाव में संतुलन साधना
- रूस से ऊर्जा आयात बढ़ाने पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध
- चीन-रूस के बढ़ते संबंधों के बीच भारत के हितों की सुरक्षा
- बहुपक्षीय मंचों पर संतुलित कूटनीति अपनाना
- युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
भारत-रूस मित्रता से प्राप्त मदद
- रूस, भारत का विश्वसनीय रक्षा और ऊर्जा साझेदार है।
- दोनों देशों के बीच सहयोग से भारत को सस्ती ऊर्जा और प्रौद्योगिकी लाभ मिलेगा।
- रूस के बाजार में भारतीय दवाइयाँ, कृषि उत्पाद और वस्त्रों को अवसर मिलेगा।
- आर्कटिक और उत्तरी समुद्री मार्गों में सहयोग से भारत की भू-रणनीतिक पहुँच बढ़ेगी।
- बहुपक्षीय मंचों पर रूस, भारत के रणनीतिक हितों को समर्थन देता है।
आगे की राह
- भारत को संतुलित कूटनीति अपनाकर अमेरिका और रूस दोनों के साथ संबंध मजबूत रखने होंगे।
- रूस के साथ ऊर्जा और व्यापार गलियारों को तेजी से लागू करना होगा।
- भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और प्रवासी समुदाय की रक्षा को प्राथमिकता देनी होगी।
- भारत को बहुपक्षीय मंचों (BRICS, SCO, G 20) पर स्वतंत्र आवाज़ बनकर अपनी स्थिति मज़बूत करनी होगी।
- भविष्य में भारत-रूस सहयोग को विज्ञान, तकनीक, आर्कटिक शोध और डिजिटल अर्थव्यवस्था तक विस्तार देना चाहिए।
निष्कर्ष
रूस यात्रा भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह न केवल ऊर्जा और व्यापारिक दृष्टि से लाभकारी है बल्कि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की स्वतंत्र एवं संतुलित विदेश नीति की पहचान भी है। भारत-रूस मित्रता आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा, रणनीतिक स्थिरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अहम भूमिका निभाएगी।