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हाइड्रोजन उत्पादन की नई विधि और ऊर्जा-दक्षता

(प्रारंभिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ 

हाल ही में, भारतीय शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजन निर्माण का एक अभिनव तरीका प्रस्तुत किया है। 

आवश्यकता 

  • एक ईंधन के रूप में हाइड्रोजन हरित एवं टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कोयला और गैसोलीन (पेट्रोल) जैसे गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तुलना में लगभग 3 गुना अधिक कैलोरी मान होने के साथ-साथ ऊर्जा मुक्त करने के लिये हाइड्रोजन के दहन से पानी उत्पन्न होता है। इस प्रकार से यह पूरी तरह प्रदूषणरहित ईंधन है।
  • पृथ्वी के वायुमंडल (350 ppbv: parts per billion volume) में आणविक हाइड्रोजन की अत्यंत कम प्रचुरता/उपस्थिति के कारण ही ‘पानी का विद्युत-क्षेत्र चालित विघटन’ हाइड्रोजन के उत्पादन का एक आकर्षक तरीका है।
  • हालाँकि, ऐसे इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis- विद्युतपघटन) के लिये उच्च ऊर्जा इनपुट की आवश्यकता होती है और इसमें हाइड्रोजन उत्पादन की दर धीमी होती है।
  • साथ ही, प्लैटिनम तथा इरीडियम आधारित महंगे उत्प्रेरक का उपयोग भी इसके व्यापक व्यावसायीकरण में बाधक है। इसी कारण से 'हरित-हाइड्रोजन-अर्थव्यवस्था' संक्रमण के लिये ऐसे उपायों की आवश्यकता है, जो ऊर्जा लागत और सामग्री लागत को कम करने के साथ-साथ हाइड्रोजन उत्पादन की दर को बेहतर बनाते हैं।

कार्यप्रणाली 

  • आई.आई.टी. बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने एक अभिनव प्रणाली विकसित की है, जो इन सभी चुनौतियों का व्यवहारिक समाधान प्रदान करती है। इसमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में पानी का इलेक्ट्रोलिसिस किया जाता है। 
  • इस पद्धति में उसी प्रणाली से तीन गुना हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने के लिये 19% कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह परिणाम उत्प्रेरक पर विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों को सह-क्रियात्मक रूप से जोड़कर प्राप्त किया जाता है।
  • यह सरल पद्धति किसी भी मौजूदा इलेक्ट्रोलाइज़र (जो पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ने के लिये विद्युत का उपयोग करता है) को बाह्य चुंबक के साथ डिज़ाइन में बिना किसी बड़े परिवर्तन के ही जोड़ने की क्षमता प्रदान करती है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि होती है।
  • इलेक्ट्रोकैटलिटिक पदार्थ- कोबाल्ट-ऑक्साइड नैनोक्यूब, जो हार्ड-कार्बन आधारित नैनोसंरचित कार्बन फ्लोरेट्स पर फैले हुए हैं, इस प्रभाव को प्राप्त करने के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • कार्बन और कोबाल्ट ऑक्साइड के बीच का इंटरफेस मैग्नेटो-इलेक्ट्रोकैटलिसिस की बुनियाद है। यह काफी लाभदायक है, क्योंकि इससे एक ऐसी प्रणाली विकसित होती है, जिसमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही, इसमें लंबे समय तक चुंबकत्व को बनाए रखने की क्षमता निहित होती है।
  • इससे प्राप्त हुए परिणाम (वर्तमान घनत्व में 650% की वृद्धि, ऊर्जा की आवश्यकता में 19% कमी और वॉल्यूमेट्रिक हाइड्रोजन उत्पादन दर में 3 गुना वृद्धि) अद्वितीय हैं। इस तरीके को मौजूदा इलेक्ट्रोलाइज़र में डिज़ाइन या संचालन-पद्धतियों में बदलाव के बिना ही सीधे प्रयोग किया जा सकता है और 10 मिनट के लिये एक बार चुंबकीय क्षेत्र का एक्सपोज़र 45 मिनट से अधिक समय के लिये हाइड्रोजन उत्पादन की उच्च दर के लिये पर्याप्त है।
  • बाह्य चुंबकीय क्षेत्र का आंतरायिक उपयोग (Intermittent Use) ऊर्जा-दक्ष हाइड्रोजन उत्पादन के लिये एक नई दिशा प्रदान करता है। इस उद्देश्य के लिये अन्य उत्प्रेरकों का भी पता लगाया जा सकता है।

लाभ 

  • यह इसके उत्पादन में तीन गुना वृद्धि करने के अतिरिक्त उत्पादन के लिये आवश्यक ऊर्जा की खपत को कम करता है। 
  • यह कम लागत पर पर्यावरण के अनुकूल हाइड्रोजन ईंधन निर्माण की दिशा में नया मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  • हाइड्रोजन के उत्पादन के लिये यह प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट (अवधारणा) प्रदर्शन ए.सी.एस. सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुआ है।
  • हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था के महत्त्व को देखते हुए आगामी लक्ष्य परियोजना को मिशन-मोड में लागू करना और स्वदेशी व भरोसेमंद मैग्नेटो-इलेक्ट्रोलाइटिक हाइड्रोजन जनरेटर को तैयार करना है।
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