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विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ प्रख्यापित किया गया।

पृष्ठभूमि

भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश काल के दौरान कोटा, पटना, सुरगुजा, उदयपुर और कालाहांडी जैसी रियासतों ने ब्रिटिश मिशनरियों से हिंदू धार्मिक पहचान को संरक्षित करने के प्रयास में धार्मिक रूपांतरण को प्रतिबंधित करने वाले कानून पारित किये थे। वर्तमान में भी विवाह के लिये किये जाने वाले धर्म परिवर्तन के साथ-साथ अन्य कारणों से होने वाले सामूहिक धर्म परिवर्तन राजनीतिक और कानूनी चर्चा में रहें हैं।

कानून के प्रमुख बिंदु

  • इस कानून के द्वारा गैरकानूनी तरीकों, जैसे- छलपूर्वक, बलप्रयोग, अनुचित प्रभाव, दबाव, प्रलोभन एवं धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन किये जाने को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाने के साथ-साथ कारावास का प्रावधान किया गया है।
  • कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने अर्थात् बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन से सम्बंधित मामलों में 15,000 के जुर्माने के साथ कम से कम एक वर्ष का कारावास होगा, जिसे पाँच वर्ष की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है।
  • हालाँकि, यदि कोई नाबालिग, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से जुड़ी कोई महिला या व्यक्ति का उक्त गैरकानूनी तरीकों से धर्म परिवर्तित किया जाता है तो 25,000 रूपए के अर्थदंड के साथ कारावास की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष होगी, जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • साथ ही, अध्यादेश में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के विरुद्द सख्त कार्रवाई का प्रावधान है, जिसमें कम से कम तीन वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की जेल की सजा और 50,000 रूपए का अर्थदंड होगा। ऐसे संगठन का लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाएगा।

अन्य प्रावधान

  • ऐसे मामले में एफ.आई.आर. पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई-बहन या रक्त सम्बंधी, विवाह या गोद लेने द्वारा सम्बंधित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की जा सकती है।
  • अध्यादेश के अनुसार धर्मांतरण का कारण बनने वाले या इसको प्रेरित करने वाले व्यक्ति पर ही इस बात को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी होगी कि यह धर्मांतरण विवाह के लिये या अन्य किसी गैरकानूनी तरीके से नहीं किया गया है।
  • अध्यादेश के अनुसार, किसी एक धर्म के पुरुष द्वारा किसी अन्य धर्म की महिला के साथ ‘गैरकानूनी धर्मांतरण’ के एकमात्र उद्देश्य से किया गया विवाह शून्य घोषित कर दिया जाएगा। साथ ही, उत्तर प्रदेश में विवाह से सम्बंधित धार्मिक रूपांतरण के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमोदन को आवश्यक कर दिया गया है।
  • हालाँकि, यदि कोई भी व्यक्ति अपने पुराने या मूल धर्म को पुन: अपना लेता है, तो उसे इस अध्यादेश के तहत धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा।
  • विशेषज्ञों के अनुसार प्रस्तावित कानून में अंतर-जातीय विवाह (Interfaith) पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

मुआवज़े का प्रावधान

  • अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि न्यायालय उक्त धर्मांतरण के पीड़ित को आरोपी द्वारा देय उचित मुआवजा भी मंजूर करेगा, जो अधिकतम 5 लाख रूपए तक हो सकता है।
  • इस प्रकार अर्थदंड और मुआवज़े दोनों का भार आरोपी पर ही पड़ेगा।

धर्म परिवर्तन की शर्तें

  • धर्म परिवर्तन की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष कम से कम 60 दिन पहले एक निर्धारित प्रारूप में अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन का एक घोषणा पत्र देना होगा।
  • साथ ही, धर्म परिवर्तन कराने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसे समारोह आयोजित करने से एक माह पूर्व डी.एम. या ए.डी.एम. को निर्धारित प्रपत्र में अग्रिम सूचना भी देना होगा। इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर एक से पांच वर्ष जेल की सजा हो सकती है।

विपक्ष में तर्क

  • कार्यकर्ताओं के अनुसार इस अध्यादेश द्वारा दलितों और धर्म विशेष के लोगों को भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के विरुद्ध करके ध्रुवीकरण किया जा रहा है।
  • साथ ही, तर्क दिया जा रहा है कि यह अध्यादेश दलितों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने से रोकने के लिये है, क्योंकि दलितों का ईसाई और इस्लाम धर्म में ज़्यादा धर्मांतरण नहीं देखा गया है जबकि बौद्ध धर्म में इनका सामूहिक धर्मांतरण देखा गया है।
  • इसके अतिरिक्त कहा जा रहा है कि यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के उपबंधों के प्रतिकूल है।
  • साथ ही अंतर-जातीय व अंतर-धार्मिक विवाह के सम्बंध में पहले से ही विशेष विवाह अधिनियम मौजूद है अत: इस प्रकार के कानून की ज़रूरत नहीं है।
  • चूँकि उत्तर प्रदेश में अंतर-जातीय विवाह को प्रोत्साहित करने की योजना मौजूद है। ऐसी स्थिति में इस कानून की प्रासंगिकता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

पक्ष में तर्क

  • यह कानून दलित अधिकारों की रक्षा में सहायक होगा और जबरन, गैरकानूनी तथा धोखे से किये जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकेगा।
  • इससे लालच के चलते होने वाले धर्म-परिवर्तन पर अंकुश लगेगा। साथ ही, धर्म को छुपाकर या अन्य गैरकानूनी तरीके से किये जाने वाले विवाह पर रोक लगेगी जिससे महिला अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी।
  • राज्य को इस सम्बंध में कानून बनाने का अधिकार उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1977 के स्टेनिसलॉस बनाम मध्य प्रदेश के निर्णय से मिलता है। इसमें न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अवैध धर्मांतरण रोकने के लिये मध्य प्रदेश और ओडिशा के द्वारा लाए गए कानून को वैध घोषित किया था।
  • उत्तर प्रदेश विधि आयोग के अनुसार वर्तमान में अवैध धर्म परिवर्तन को लेकर राज्य में कोई कानून नहीं है। आई.पी.सी. में सिर्फ धार्मिक भावना आहत करने, देवी देवताओं को अपमानित करने और धार्मिक स्थलों को क्षति पहुँचाने को लेकर ही दंडनीय प्रावधान है। अत: गैर-कानूनी धर्मांतरण को रोकने के लिये इस प्रकार के कानून की आवश्यकता थी।
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