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प्राचीन चित्रकला का डिजिटल रूप से संरक्षण 

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास कला एवं संस्कृति के संदर्भ में)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की कला के रूप तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

हाल ही में, हरियाणा में स्थित प्रागैतिहासिक स्थल ‘फरीदाबाद के मंगर बानी पहाड़ी जंगल’ से गुफा चित्रों की खोज की गई है। पुरातत्त्वविदों ने अनुमान लगाया है कि यह चित्र लगभग ‘एक लाख वर्ष पुराने’ हो सकते हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े पुरापाषाण स्थलों में से एक हो सकता है, जहाँ विभिन्न खुले स्थानों के साथ-साथ रॉक शेल्टर से पाषाण युग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • गुफाएँ ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ पहुँचना मुश्किल है। शायद यही कारण है कि गुफाएँ और कला भी सुरक्षित बची रही क्योंकि लोग प्रायः पर वहाँ नहीं जाते हैं।

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  • यह पहली बार है कि गुफा चित्रों और बड़े परिमाण की शैल कला के साथ हरियाणा में एक प्रागैतिहासिक स्थल पाया गया है। हालाँकि, पुरापाषाण युग के औजारों की पहचान पहले अरावली के कुछ हिस्सों में की गई थी।
  • ध्यातव्य है कि नॉर्वे स्थित ‘आर्कटिक वर्ल्ड आर्काइव’ (AWA) में ‘प्राचीन भारतीय क्षतिग्रस्त गुफा चित्रों’ को डिजिटल रूप से बहाल कर संरक्षित किया जा रहा है।
  • इसके अंतर्गत कर्नाटक में छठी शताब्दी की ‘बादामी गुफाओं’ के सबसे पहले जीवित भारतीय चित्रों को डिजिटल रूप से बहाल कर उनको संरक्षित किया जा रहा है।

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  • यह चित्र अजंता की गुफाओं की एक अन्य पेंटिंग से मेल खाता है, जिसे अब ए.डब्लू.ए. में भावी पीढ़ियों के लिये सुरक्षित किया गया है।
  • भारतीय विरासत की दुनिया में यह एक मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि ये चित्र न केवल मूल कृतियों को समय के साथ खो जाने से बचाते हैं, बल्कि उन्हें वैश्विक दर्शकों के लिये भी सुलभ बनाते हैं।
  • शीघ्र ही इन चित्रों को ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ (AI) के माध्यम से जोड़ा जाएगा, जिससे क्षतिग्रस्त चित्रों को बहाल किया जा सके।

      भारतीय चित्रकला का महत्त्व

      • ‘प्रसिद्ध कला इतिहासकार और फ़ोटोग्राफ़र बेनॉय के. बहल’ ने वर्षों से अपनी तकनीक के माध्यम से इन चित्रों को पुनर्स्थापित किया है।
      • बहल का कहना है कि इन चित्रों का महत्त्व यह है कि वे प्राचीनतम भारतीय चित्रकला की निरंतर परंपरा को स्थापित करते हैं।
      • भारत में चित्रकला की विभिन्न बेहतरीन परंपराएँ स्थापित हैं, जो अभी तक अच्छी तरह से ज्ञात नहीं हैं क्योंकि वे अधिकांश मंदिरों एवं गुफाओं में छिपी हुई हैं।      
      • बहल के अनुसार इन प्राचीन भारतीय चित्रों में मौजूद कला विशिष्टता की गुणवत्ता का प्रभाव पश्चिमी देशों में बहुत बाद में दृष्टिगत होता है।

      चित्रों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया 

      • डिजिटल रूप से बहाल किये गये चित्र बहल के द्वारा वर्षों पहले लिये गये चित्रों पर आधारित हैं।
      • वर्ष 2001 में बादामी गुफा चित्रों को एकत्रित किया गया था, तब तक अधिकांश चित्र क्षतिग्रस्त हो चुके थे।
      • अजंता गुफा चित्रकला को डिजिटल रूप से बहाल करने में 19 वर्षों का समय लगा, इसे वर्ष 2019 में पूरा कर लिया गया।
      • वर्ष 2020 में मुंबई की एक कंपनी ने ए.आई. द्वारा संचालित ‘हाई एंड डेटा आधारित एल्गोरिथम’ को विकसित करने का प्रयास किया और ए.डब्लू.ए. में उपस्थित चित्रों को पुनर्स्थापित और संरक्षित करने के लिये कार्य किया। 

      ए.आई. के माध्यम से चित्रों का संरक्षण

      • ए.आई. को विकसित करने के लिये संदर्भ कार्य के एक डेटासेट का उपयोग किया जा रहा है, जो क्षतिग्रस्त भित्ति चित्रों को बहाल करने के लिये गहन शिक्षण तकनीकों का उपयोग करेगा।

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      • इसी तकनीक के माध्यम से महाराष्ट्र में स्थित तीसरी शताब्दी की ‘पितलखोरा बौद्ध गुफाओं’ के चित्रों का भी जीर्णोद्धार किया जाएगा।
      • इस तकनीक के माध्यम से प्राचीन भित्ति चित्रों की मूल प्रतियों को डिजिटल रूप से बहाल करने के बाद, वर्ष 2022 में विश्व भर की नियोजित प्रदर्शनियों में इन चित्रों को प्रदर्शित किया जा सकेगा।

      प्राचीन भारतीय शैल चित्रकला  

      • उल्लेखनीय है कि भारत में शैल चित्रकला के प्राचीनतम उदाहरण मध्य पाषाणकालीन भीमबेटिका से प्राप्त हुए हैं। मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में विंध्य पर्वत शृंखला में अवस्थित हैं। इस क्षेत्र में 600 से भी अधिक चट्टानी गुफाएँ स्थित हैं।
      • ये स्थल आदिमानव द्वारा निर्मित शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिये प्रसिद्ध हैं, जो पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के बीच के माने जाते हैं।
      • इन गुफाओं में शिकार और युद्ध के दृश्यों का चित्रण किया गया है, जिनमें लाल, सफेद, पीले, हरे आदि रंगों का प्रयोग किया गया है।
      • इन गुहा चित्रों के साथ-साथ भारत में अन्य शैलचित्र भी मौजूद हैं, जिसमें से कुछ निम्न हैं-
        • अजंता चित्रकला
          • अजंता की सभी 29 गुफाओं में चित्रकला की गई थी, जिनमें से केवल 6 गुफाओं (1-2, 9-10 तथा 16-17) के चित्र ही वर्तमान में सुरक्षित हैं।
          • इन गुफा चित्रों में बुद्ध के भौतिक जीवन से संबंधित घटनाओं का आकर्षक एवं सुंदर ढंग से चित्रण मिलता है। इसके अतिरिक्त, जातक ग्रंथों से ली गई कथाओं को वर्णात्मक ढंग से उकेरा गया है।
          • अजंता गुफाओं में फ्रेस्को और टेंपेरा दोनों ही विधियों से चित्र बनाए गए हैं। इन चित्रों में लाल, नीले, पीले, काले और सफेद रंग प्रयोग में लाए जाते थे। विदित है कि अजंता से पूर्व कहीं भी नीले रंग का उपयोग नहीं हुआ था।
          • बाघ चित्रकला
            • बाघ की गुफाएँ धार ज़िले में विंध्य पर्वत श्रेणी में अवस्थित हैं, इसमें कुल 9 गुफाएँ हैं। ये गुफाएँ अजंता की गुफाओं के समकालीन मानी जाती हैं।         
          • बादमी चित्रकला
            • बादामी या वातापी के गुहा मंदिर अपनी मूर्तिकला के लिये प्रसिद्ध हैं। साथ ही, यहाँ के सुंदर चित्र भी दर्शनीय हैं।
            • इस गुफा में चालुक्य राजाओं के चित्र तथा ब्राह्मण, हिंदू और जैन धर्म से संबंधित विषयों के चित्र बनाए गए हैं।
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