New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

शरणार्थी संकट और भारत

(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; विषय- भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के उपरांत हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। इस वजह से वहाँ के नागरिक पलायन करके भारतीय सीमा, विशेषकर पूर्वोत्तर में प्रवेश कर रहे हैं। म्याँमार के भू-राजनीतिक, आर्थिक, नृजातीय एवं धार्मिक संदर्भों को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि भारत को लंबे समय तक शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसके चलते भारत में शरणार्थियों के संरक्षण से संबंधित बहस पुनः तेज़ हो गई है।

शरणार्थी बनाम अवैध प्रवासी संबंधी मुद्दे

  • शरणार्थी वह व्यक्ति है जो उत्पीड़न, हिंसा, युद्ध एवं राजनीतिक संकट जैसे कारणों से अपना देश छोड़कर किसी अन्य देश में शरण लेने के लिये विवश होता है।
  • अवैध प्रवासी ऐसा व्यक्ति है जो रोज़गार, शिक्षा अथवा अन्य हितों की पूर्ति के लिये बिना अनुमति तथा आवश्यक दस्तावेज़ों के किसी देश में प्रवेश अथवा निवास करता है।
  • अवैध प्रवासन सुरक्षा कारणों से किसी भी देश के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक ताने-बाने के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है।
  • प्रायः शरणार्थी एवं अवैध प्रवासी को एक ही समझ लिया जाता है, जिस कारण अवैध प्रवासन के कारणों एवं परिणामों पर तो बहस होती है, किंतु शरणार्थियों के संरक्षण संबंधी मुद्दे पर विचार नहीं किया जाता है।
  • चूँकि, भारत म्याँमार का पड़ोसी और शरणार्थी संकट से सर्वाधिक प्रभावित है। ऐसे में, आवश्यक है कि शरणार्थी संरक्षण से संबंधित मुद्दे को हल करने के लिये वह उचित कानूनी एवं संस्थागत उपायों को अपनाए।

शरणार्थी एवं अवैध प्रवासन से संबंधित नीतियों में अस्पष्टता और इसके प्रभाव

  • भारत में शरणार्थी एवं अवैध प्रवासन संबधी नियम एवं नीतियाँ ‘विदेशी अधिनियम, 1946’ के अंतर्गत आते हैं। इसमें दोनों मुद्दों को एक ही श्रेणी के अंतर्गत रखा गया है, जिस कारण इन मुद्दों को लेकर प्रायः भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • इस अधिनियम में प्रवासी को ऐसे नागरिक के रूप में परिभाषित किया गया है, जो भारत का नागरिक नहीं है। गौरतलब है कि प्रवासी, अवैध प्रवासी तथा शरणार्थियों के बीच बुनियादी अंतर होता है। फलतः स्पष्ट प्रावधानों के अभाव के कारण भारत इस समस्या से कानूनी तौर पर निपटने में सक्षम नहीं है।
  • ध्यातव्य है कि भारत शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कानून ‘शरणार्थी अभिसमय, 1951’ और इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।
  • इस प्रकार, कानूनी ढाँचे के अभाव तथा नीतिगत अस्पष्टता के कारण भारत की शरणार्थी नीति तात्कालिक परिस्थितियों द्वारा निर्देशित होती है। साथ ही, यह कहीं-न-कहीं 'राजनीतिक हितों' से भी प्रेरित होती है। उदाहरणस्वरूप, हाल ही में म्याँमार से आने वाले शरणार्थियों को भारत में प्रवेश नहीं करने दिया गया। इसके पीछे मूल कारण यह है कि शरणार्थियों को प्रवेश देकर भारत म्याँमार से अपने संबंध खराब नहीं करना चाहता।
  • हालाँकि, यह स्थिति देश में घरेलू राजनीतिकरण को बढ़ावा देती है और शरणार्थी संरक्षण के भू-राजनीतिक दोषों को और जटिल बनाती है।

क्या भारत को शरणार्थी संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पक्षकार बनना चाहिये?

  • यद्यपि भारत शरणार्थी संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पक्षकार नहीं है, तथापि उसने सर्वाधिक शरणार्थियों को शरण अवश्य प्रदान की है।
  • भारत द्वारा ‘शरणार्थी अभिसमय, 1951’ से बाहर रहने का प्रमुख कारण इस अभिसमय की संकुचित परिभाषा है। वस्तुतः यह परिभाषा व्यक्ति के केवल नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है, इसमें आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को शामिल नहीं किया गया है।
  • आर्थिक अधिकारों से वंचित व्यक्ति को शरणार्थी न मानना पश्चिमी देशों के लिये अनुकूल है, क्योंकि आर्थिक आधिकारों को शामिल करने से पश्चिमी देशों में शरणार्थियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती थी।
  • चूँकि, इस अभिसमय की परिभाषा में वर्तमान में कोई परिवर्तन नहीं किया गया, अतः भारत अपने पूर्व निर्णय के अनुसार अभिसमय से बाहर रह सकता है।
  • भारत ने अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सदैव ही शरणार्थियों को शरण दी है, अतः भारत इस अभिसमय से बाहर रहकर भी शरणार्थियों के संरक्षण हेतु कार्य कर सकता है।
  • अभिसमय में शामिल न होने के संदर्भ में एक अन्य तर्क यह भी है कि जो देश इसके पक्षकार हैं, उन्होंने घरेलू नीतियों के माध्यम से शरणार्थियों के प्रवेश पर प्रतिबंध आरोपित किये हुए हैं, जिससे इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है।

आगे की राह

  • वर्तमान में शरणार्थियों के संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून न तो पर्याप्त हैं और न ही व्यावहारिक। विश्व में बढ़ते शरणार्थियों की समस्या तथा अवैध प्रवासन से निपटने के लिये सभी देशों द्वारा आपसी सहमति से एक प्रभावी कानून का निर्माण किया जाना चाहिये।
  • भारत में भी शरणार्थियों को ध्यान में रखते हुए एक नए कानून का निर्माण होना चाहिये। यद्यपि, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) भी शरणार्थियों के संरक्षण से संबंधित है, किंतु यह कुछ देशों के धर्म विशेष से संबंधित नागरिकों को ही शरणार्थी का दर्जा देता है, जिस कारण इसकी प्रकृति भेदभावपूर्ण है।
  • मौलिक रूप से यह अधिनियम शरणार्थियों के संरक्षण की बजाय उनकी उपेक्षा करता है। अतः इस प्रकार के भेदभावपूर्ण कानून का नैतिक आधार पर समर्थन नहीं किया जा सकता।
  • शरणार्थियों के संरक्षण हेतु एक ऐसा कानून बनना चाहिये, जिसमें इन्हें अस्थायी रूप से आवास, भोजन तथा रोज़गार प्राप्त करने की अनुमति हो, क्योंकि उचित कानूनी उपायों एवं कार्य परमिट की अनुपस्थिति में शरणार्थी अवैध साधनों का उपयोग करके अवैध प्रवासी बन सकते हैं।
  • साथ ही, यह भी आवश्यक है कि अस्थायी प्रवासी कामगारों, अवैध अप्रवासियों तथा शरणार्थियों के बीच स्पष्ट अंतर किया जाए और उचित कानूनी एवं संस्थागत तंत्र के माध्यम से प्रत्येक के लिये अलग-अलग नीतियों का निर्माण हो।
  • भारत पूर्व में भी शरणार्थियों की समस्या का सामना कर चुका है और यथासंभव उनका समाधान भी किया है। ऐसे में, भारत से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस समस्या के समाधान हेतु पक्षपातरहित रवैया अपनाए।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR