New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

स्वास्थ्य का अधिकार: संवैधानिक वैधता की आवश्यकता 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2; स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी ने मानव जीवन को सामूहिक एवं व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया है। इस महामारी ने भारत की लचर स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों को भी उजागर किया है। इससे सीख लेते हुए नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य का  अधिकार 

विश्व चिकित्सा संघ (WMA) के अनुसार, स्वास्थ्य के अधिकार के अंतर्गत गुणवत्तापरक और किफ़ायती स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, सुरक्षित कार्य-दशाएँ एवं समुचित आवास और पौष्टिक भोजन जैसे आवश्यक पहलूओं को शामिल किया जाता है।

स्वास्थ्य के अधिकार की सर्वाधिक आवश्यकता

स्वास्थ्य के अधिकार को विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले नागरिकों की तीन श्रेणियों को अत्यधिक ज़रुरत है , जो कि निम्नलिखित हैं-

  • किसान और असंगठित श्रमिक 
  • महिलाएँ 
  • बच्चे 

किसान और असंगठित श्रमिक

  • किसान, जीवन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार के प्राथमिक संरक्षक होते हैं, परंतु वे और उनका परिवार सामान्यतया इन अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। 
  • छोटे किसानों और असंगठित मज़दूरों की आय प्रायः कम होती है, जिस कारण उन्हें अथवा उनके परिवार को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के उपचार हेतु कई बार साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है, जिससे वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ ऋण के जाल में फँस जाती हैं। 
  • सरकार द्वारा संचालित कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी उन छोटे किसानों और असंगठित मज़दूरों तक नहीं पहुँच पाता है। अतः स्वास्थ्य का अधिकार क्रियान्वित होने से सरल, पारदर्शी रूप से उन्हें गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सकेगा, जिससे इनके जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आएगा।

महिलाएँ

  • स्वास्थ्य प्रणाली में कमियों का सर्वाधिक कुप्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है। कई बार महिलाएँ समाज में व्याप्त ‘पितृसत्तात्मक प्रथाओं एवं सामाजिक वर्जनाओं’ (taboos) के कारण अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को छिपा लेती हैं और उनका उपचार नहीं करवा पाती हैं, जिसके चलते ये समस्याएँ गंभीर हो जाती हैं।
  • महिलाओं के समक्ष उपरोक्त कठिनाइयों के अतिरिक्त आर्थिक चुनौती भी एक प्रमुख बाधा है। इस कारण महिलाएँ आमतौर पर प्राथमिक चिकित्सा के लाभ से भी वंचित रह जाती हैं। एक बेहतर और सशक्त स्वास्थ्य अधिकार महिलाओं को सुलभता से चिकित्सीय सुविधाएँ उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

    बच्चे

    • गरीब और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के ज़्यादातर बच्चे अल्पायु से ही खतरनाक परिस्थितियों (खदानों, ईंट भट्टों तथा कारखानों ) में कार्य करते हैं। साथ ही, इन बच्चों की प्राथमिक शिक्षा भी अधूरी रह जाती है, क्योंकि परिवार की वित्तीय ज़रूरतों के कारण वे स्कूल नहीं जा पाते हैं।  
    • कैलाश सत्यार्थी की संस्था द्वारा बाल-श्रम, बंधुआ मज़दूरी और तस्करी से मुक्त कराए गए लगभग एक लाख बच्चों में से ज़्यादातर बच्चे जटिल स्वास्थ्य समस्याओं जैसे- तपेदिक, त्वचा रोग, दृष्टि-बाधिता और कुपोषण से पीड़ित पाए गए।
    • ये बच्चे आरंभिक देखभाल और सुरक्षा से वंचित थे, जिसका नकारात्मक प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर जीवनपर्यंत बना रहेगा। अतः स्वास्थ्य के अधिकार को संवैधानिक वैधता  मिल जाने पर ऐसे वंचित बच्चों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त हो सकेगी और वे एक सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर होंगे। 

    निष्कर्ष

    • एक संवैधानिक 'स्वास्थ्य का अधिकार' न केवल नागरिकों के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये आवश्यक है, बल्कि यह देश की आर्थिक उन्नति और प्रगति में भी सहायक होगा।
    • ‘स्वास्थ्य के अधिकार' से लोगों को वित्तीय सुरक्षा भी प्राप्त होगी, जिससे पारिवारिक बचत, निवेश में बढ़ोतरी होगी। साथ ही, यह लोगों की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सुरक्षा पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
    • इसके अतिरिक्त, आयुष्मान भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भी यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य के अधिकार को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए।
      « »
      • SUN
      • MON
      • TUE
      • WED
      • THU
      • FRI
      • SAT
      Have any Query?

      Our support team will be happy to assist you!

      OR