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एशिया में बढ़ता सैन्य व्यय : बिगड़ते सुरक्षा माहौल का संकेत

(प्रारंभिक परीक्षा-  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, लंदन स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान’ (International Institute of Strategic Studies- IISS) द्वारा प्रकाशित ‘सैन्य संतुलन रिपोर्ट’ के अनुसार, वर्ष 2020 का वैश्विक रक्षा व्यय $1.83 ट्रिलियन रहा, जो विगत वर्ष की तुलना में 3.9% की वृद्धि को दर्शाता है। हालाँकि, यह वृद्धि वर्ष 2019 की तुलना में थोड़ी कम है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, जी.डी.पी. प्रतिशत के रूप में वैश्विक सैन्य व्यय वर्ष 2019 में औसतन 85% से बढ़कर वर्ष 2020 में 2.08% हो गया। साथ ही, आर्थिक मंदी के बावजूद सैन्य व्यय विगत वर्ष के लगभग समान स्तर पर बना हुआ है।
  • यह स्थिति देशों के मध्य बढ़ती रक्षा व सुरक्षा प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है। साथ ही, निकट भविष्य में इस प्रवृत्ति में बदलाव की आशा नहीं है क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा परिदृश्य के अभी सामान्य होने की संभावना कम ही है।
  • वस्तुत: वर्ष 2020 में चीन के रक्षा व्यय में हुई बढ़ोतरी अन्य सभी एशियाई देशों के संयुक्त रक्षा बजट में वृद्धि से अधिक है।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य व्यय में वृद्धि : एक विश्लेषण

  • जापान ने वर्ष 2021 के लिये अभी तक के रिकॉर्ड रक्षा व्यय को मंजूरी दी है। जापान का रक्षा बजट पिछले नौ वर्षों से लगातार बढ़ रहा है, जिसका प्रमुख कारण समुद्री क्षेत्र में चीन का आक्रामक व्यवहार और उत्तर कोरिया से परमाणु व मिसाइल ख़तरा है।
  • इसके अतिरिक्त, जापान ने गैर-पारंपरिक सैन्य क्षेत्रों, जैसे- बाह्य अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वारफेयर के लिये वित्त की व्यवस्था भी चीन, विशेष रूप से ‘पी.एल.ए. सामरिक सहायता बल’ की स्थापना को ध्यान में रखकर की है।
  • भारत के रक्षा बजट में भी वित्त वर्ष 2021-22 के लिये 4% की मामूली वृद्धि हुई है। इसके बावजूद, पूँजीगत व्यय के लिये लगभग 18.8% का आवंटन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, जो महामारी के बावजूद रक्षा क्षेत्र के लिये सरकार की प्राथमिकताओं को इंगित करता है।
  • ऑस्ट्रेलिया के भी रक्षा व्यय में वृद्धि हुई है, जिसके जी.डी.पी. के लगभग 19% के आस-पास रहने का अनुमान है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र का एक प्रमुख भागीदार ऑस्ट्रेलिया भी चीन से व्यापारिक और आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
  • इसके अतरिक्त, चीन का सैन्य आधुनिकीकरण अमेरिका के ‘खरीद, अनुसंधान व विकास प्रयासों’ में वृद्धि के लिये एक उत्प्रेरक का कार्य कर रहा है।
  • दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की सक्रियता तथा बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में इसकी बढ़ती उपस्थिति ने सभी प्रमुख समुद्री शक्तियों के साथ-साथ छोटे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को भी अपनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि के लिये प्रेरित किया है।
  • चीन के उदय, दक्षिण चीन सागर में संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता संबंधी मुद्दे, परमाणु हथियारों की दौड़ और आतंकवाद जैसी महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनज़र वियातनाम, सिंगापुर, फिलीपींस और इंडोनेशिया व दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देशों ने भी अपने रक्षा व्यय में वृद्धि की है।

भावी अनुमान

  • वैश्विक सैन्य व्यय में कुल वृद्धि में लगभग दो-तिहाई का योगदान अमेरिका और चीन के कारण रहा है। हालाँकि, अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के चलते वैश्विक रक्षा व्यय में कमी की संभावना व्यक्त की गई है।
  • साथ ही, महामारी के आर्थिक प्रभाव के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भी गिरावट देखी जा सकती है, किंतु इस क्षेत्र का रक्षा व्यय जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों के सामने आने वाली सुरक्षा अनिवार्यताओं और चिंताओं को दर्शाता है।
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