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समुद्री शैवाल : संरक्षण की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

समुद्री शैवाल

  • समुद्री शैवाल को सीवीड (Seaweed) कहते हैं। यह एक आदिम (Primitive) पुष्प-रहित समुद्री शैवाल है, जिसमें जड़, तना और पत्तियाँ नहीं होती हैं।
  • समुद्री शैवाल सौर प्रकाश के प्रकाश संश्लेषण और समुद्री जल में मौजूद पोषक तत्वों के माध्यम से पोषण प्राप्त करते हैं।ये अपने शरीर के प्रत्येक हिस्से से ऑक्सीजन मुक्त करते हैं।
  • समुद्र में अधिक घनत्व वाले पानी के नीचे पाए जाने वाले बड़े एवं लंबे समुद्री शैवाल के जंगलों को ‘केल्प वन’ (Kelp Forests) कहा जाता है।

लाभ

आवास के रूप में-

इसकी हजारों प्रजातियाँ उपलब्ध हैं, जो आकार, आकृति और रंग में काफी भिन्न होती हैं। ये समुद्री जीवों के लिये आवास प्रदान करती हैं और उन्हें खतरों से बचाती हैं।

खाद्य के रूप में-

  • ‘केल्प वन’ मछली, घोंघे और समुद्री अर्चिन (Sea Urchin) के लिये पानी के नीचे एक नर्सरी के रूप में कार्य करते हैं।साथ ही, शाकाहारी समुद्री जीव भी इसके ‘थैलस’ (Thallus) को खाकर जीवन यापन करते हैं। इसके अतिरिक्त समुद्री शैवाल, समुद्री जीवों को जैविक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति भी करते हैं।
  • वस्तुत: ‘थैलस’ से आशय एक ऐसे पादप से होता है, जिसमें जड़ों, संवहन तंत्र, पत्ती व तने का आभाव होता है किंतु इस प्रकार के पादपों में डंठल जैसी संरचना पाई जाती है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के लिये-
  • ये शैवाल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वृहद जल निकायों में पाए जाने वाले कुछ पोषक तत्व समुद्री जीवों के लिये विषैले और मृत्युकारक हो सकते हैं।
  • समुद्री शैवाल समुद्र के उथले और गहरे जल में (अधिकांशत: अंतर्ज्वारिय क्षेत्र (Intertidal Region) में) पाए जाने के साथ-साथ ज्वारनदमुख (Estuaries) और पश्चजल/बैकवाटर्स (Backwaters) में पाए जाते है, जो अतिरिक्त पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं।

जैव-संकेतक के रूप में-

  • समुद्री शैवाल जैव-संकेतक के रूप में भी कार्य करते हैं।जब कृषि, जलीय कृषि (Aquaculture), उद्योगों और घरों से निकलने वाला कचरा समुद्र में प्रवेश करता है, तो यह पोषक तत्वों के असंतुलन का कारण बनता है, जिससे शैवाल प्रस्फुटन (Algal Bloom) होता है।
  • ‘शैवाल प्रस्फुटन’ समुद्री रासायनिक क्षति का संकेतक है। जलीय निकाय में शैवालों का तेजी सेबढ़ना शैवाल प्रस्फुटन या शैवाल विकसन कहलाता है। इसके कारण जल का रंग बदल जाता है।

समुद्री क्षरण रोकने में सहायक-

  • समुद्री शैवाल प्रकाश संश्लेषण के लिये लौह खनिज पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं।जब इस खनिज की मात्रा अनुमन्य या संतुलित स्तर से अधिक हो जाती है, तो यह समुद्री जीवन के लिये खतरनाक हो जाती है। ऐसी स्थिति में समुद्री शैवाल इसका प्रयोग करके समुद्री क्षरण को रोकने में सहायक होते हैं।
  • इसी तरह, समुद्री शैवाल समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले अधिकांश भारी धातुएँ को भी हटाने में सहायक होता हैं।

जलवायु परिवर्तन और समुद्री शैवाल-

जलवायु परिवर्तन को कम करने में समुद्री शैवाल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुल समुद्री क्षेत्र के केवल 9% हिस्से में समुद्री शैवाल की उपस्थिति (वनीकरण) प्रतिवर्ष लगभग 53 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का पृथककरण (CO2 Sequestration) करने में सक्षम है। अत: कार्बन पृथककरण के लिये समुद्री शैवाल को उगाने के लिये 'समुद्री वनीकरण' के रूप में एक प्रस्ताव भी पेश किया गया है। 

कृषि और पशुपालन में-

  • कृषि और पशुपालन में समुद्री शैवाल का महत्त्व उल्लेखनीय है।इनका उपयोग उर्वरकों के रूप में और मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिये किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, पशुओं को जब समुद्री शैवाल खिलाया जाता है, तो उनसे मीथेन उत्सर्जन काफी हद तक कम हो सकता है।

अन्य लाभ-

इसके अतिरिक्त, समुद्री शैवाल समुद्र तट के कटाव से निपटने में भी सहायक हो सकते हैं। साथ ही, इसका उपयोग टूथपेस्ट, सौंदर्य प्रसाधन और पेंट तैयार करने में एक घटक के रूप में किया जाता है। 

भारत में समुद्री शैवाल

  • दक्षिण-पूर्वी भारत में बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर के सम्मिलन बिंदु पर स्थित तमिलनाडु का समुद्री तट 1,076 किमी. लंबा है।
  • मन्नार की खाड़ी के दक्षिणी क्षेत्र में चट्टान युक्त अंतर्ज्वारिय और निचले अंतर्ज्वारिय क्षेत्रों में समुद्री शैवाल की कई प्रजातियाँ अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। अध्ययनों से पता चलता है कि यहाँ समुद्री शैवाल की लगभग 302 प्रजातियाँ विद्यमान हैं।

हानि

  • हालाँकि, समुद्री शैवाल की कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ प्रवाल भित्तियों को तोड़ती हैं और उन्हें गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाती हैं।
  • पेप्सिको (एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय) द्वारा इस क्षेत्र में समुद्री शैवाल की एक विदेशी और आक्रामक प्रजाति (कप्पाइकस अल्वारेज़ी- Kappaphycus Alvarezii) की खेती से समुद्री जीवों के लिये एक गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इसने धीरे-धीरे प्रवाल भित्तियों को नष्ट करना शुरू कर दिया हैं।
  • मछुवारा समूह की ज्यादातर महिलाएँ इन द्वीपों के आसपास रोजाना समुद्री शैवाल को एकत्र करती हैं और ऐसा करते समय वे प्रवाल को नुकसान पहुँचाती हैं।
  • मैकेनिकल ड्रेजिंग (Mechanical Dredging) बड़े समुद्री शैवालों द्वारा निर्मित केल्प वनों को नुकसान पहुँचाती है।समुद्री शैवाल का विवेकहीन तरीके से किया गया संग्रहण भी उपयोगी शैवाल को गंभीर नुकसान पहुँचाता है।
  • मैकेनिकल ड्रेजिंग वह प्रक्रिया है जिसमें यांत्रिक उपकरणों, जैसे- बाल्टी, ग्रेब आदि का उपयोग करके तलछटों और अवसादों को उठाया जाता है।

आगे की राह

  • वर्ष 2005 में एक सरकारी आदेश जारी किया गया था। इसमें केवल पाक खाड़ी के उत्तर और थुथुकुडी तट के दक्षिण के समुद्री जल में ही विदेशी प्रजातियों की खेती को प्रतिबंधित किया गया था। इस क्षेत्र में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है।
  • प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये वन विभाग साल 2014 से प्रतिवर्ष समुद्री शैवाल को हटा रहा है। समुद्री शैवाल के पारिस्थितिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के लिये यह आवश्यक है कि वे समुद्री शैवालों के स्थायी प्रबंधन के लिये त्वरित और वैज्ञानिक कार्रवाई प्रारंभ करें, ताकि इनका संरक्षण किया जा सकें।
  • इसके अतिरिक्त, आई.यू.सी.एन. (IUCN) द्वारा समुद्री शैवाल की संरक्षण स्थिति का भी मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।

 

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