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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्या परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 2, भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध) 

सन्दर्भ

  • श्रीलंका द्वारा पूर्व में किये गए युद्ध-अपराधों के लिये हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (UNHRC) द्वारा श्रीलंका के विरुद्ध पुनः एक प्रस्ताव लाया गया है।
  • यह प्रस्ताव ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम’ (LTTE) के खिलाफ श्रीलंका द्वारा चलाए गए सैन्य अभियान के दौरान हुए मानवाधिकारों के हनन से संबंधित है।

क्या कहती हैयू.एन.एच.आर.सी.की रिपोर्ट?

  • प्रस्ताव रिपोर्ट में श्रीलंका को चेतावनी दी गई है कि सैन्य अभियानों के दौरान किये गए मानवाधिकारों के उल्लंघन व युद्ध अपराधों को रोकने में श्रीलंका की विफलता देश की ‘शुचिता के लिये खतरनाक’है।
  • इस रिपोर्ट में सरकार द्वारा किये जा रहे नागरिक कार्यों के सैन्यीकरण, महत्त्वपूर्ण संवैधानिक रक्षोपायों को उलट देने, जवाबदेही पर राजनीतिक प्रतिबंध, नागरिकों में भय का माहौल बनाने और आतंकवाद विरोधी कानूनों के बेवजह प्रयोग पर भी कड़ी आपत्ति दर्ज की गई है।
  • स्वतंत्र मीडिया, नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों पर लगातार लगाई जा रही रोकों पर भी रिपोर्ट का रुख सख्त रहा है।

क्या है संकल्प 30/1?

  • वर्ष 2015 में श्रीलंका सरकार द्वारा लाया गया संकल्प पत्र 30/1(resolution 30/1),जवाबदेही और मानवाधिकारों को संरक्षण देने से संबंधित है।
  • इस संकल्प पत्र द्वारा श्रीलंका सरकार ने देश में संवैधानिक न्याय को सुनिश्चित करने का संकल्प लिया था। 

श्रीलंका का रुख

  • घरेलू स्तर पर देखा जाए तो श्रीलंका, अपने नागरिकों को न्याय प्रदान करने और विभिन्न गुटों के बीच सामंजस्य स्थापित करने तथा इससे जुड़े आवश्यक, निर्णायक व स्थाई कदम उठाने में विफल रहा है।
  • श्रीलंका ने यू.एन.एच.आर.सी.के इस प्रस्ताव पर आधिकारिक रूप से भारत की सहायता माँगी है।
  • ध्यातव्य है कि श्रीलंका ने इस प्रस्ताव को ‘शक्तिशाली देशों द्वारा अवांछित हस्तक्षेप’बताते हुए इसका विरोध किया है।

क्या है भारत का रुख?

  • यू.एन.एच.आर.सी.ने अपने इस प्रस्ताव परएक ‘संवादसत्र’ आयोजित करने और रिपोर्ट पर चर्चा करने की बात की है। इस प्रस्ताव पर सभी सदस्य देशों सहित भारत द्वारा भी अपना पक्ष रखे जाने की उम्मीद है।
  • ध्यातव्य है कि विगत एक दशक में श्रीलंका के खिलाफ यू.एन.एच.आर.सी.में नियमित रूप से प्रस्ताव लाए गए हैं।
  • इससे पूर्व वर्ष 2012 में भारत ने श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया था,जबकि वर्ष 2014 में हुए मतदान में वह तटस्थ रहा था।
  • वर्ष 2015 में श्रीलंका द्वारा संकल्प 30/1 लाए जाने के बाद श्रीलंका के पक्ष या विपक्ष में वोट करने को लेकर भारत दुविधा में था।
  • चूँकि तमिलनाडु में चुनाव नज़दीक हैं और भारतीय प्रधानमंत्री ने विगत दिनों अपनी जाफ़ना (श्रीलंका) यात्रा की चर्चा (तमिल लोगों को ध्यान में रखकर)भी की थी, अतः श्रीलंका में भी हलचल बढ़ गई है।

निष्कर्ष

कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व की तरह ही इस प्रस्ताव और उस पर आयोजित सत्र का प्रभाव भारत-श्रीलंका संबंधों पर पड़ने की संभावना कम ही है।साथ ही तमिलनाडु विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर पड़ने की संभावना भी कम ही है, क्योंकि भारत-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों में 2014 के बाद से बहुत बदलाव आए हैं और दोनों देशों के बीच दुराव ही बढ़ा है।

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