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पराली दहन: समस्या एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र –3; मुख्य फसलें – देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न,  कृषि से सबंधित अन्य बाधाएँ तथा समाधान से सबंधित विषय)

संदर्भ

शीत ऋतु के प्रारंभ होते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली/एन.सी.आर. में वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है, जिसका प्रमुख कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा पराली एवं फसल अवशेषों को जलाया जाना है।

क्या है पराली दहन?

धान की फसल कटने के बाद उसके जो अवशेष बचते हैं उन्हें ‘पराली या पुआल’ कहा जाता है । चूँकि धान की फसल के ऊपरी हिस्से से अनाज प्राप्त होता है तथा शेष भाग अपशिष्ट के रूप में काफी भारी मात्रा में बच जाता है, अत: किसानों द्वारा इसको जला दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।

पराली दहन के कारण

  • धन व समय की बचत हेतु किसानों द्वारा धान की फसल की कटाई में मशीनों का प्रयोग किया जाता है। मशीनों द्वारा धान की फसल के ऊपरी हिस्से को ही काटे जाने से पराली अवशेष में वृद्धि होती है।
  • यदि किसानों द्वारा फसल अवशेषों को समय पर नष्ट नहीं किया जाता तो इससे फसल-चक्र प्रभावित होता है, ऐसे में फसल अवशेषों को जलाकर खेत को अगली फसल के लिये तैयार किया जाता है।
  • छोटे किसान फसल अवशेषों के निपटान हेतु वैकल्पिक उपायों को अपनाने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे में उनके पास पराली दहन ही सस्ता विकल्प होता है।
  • वर्ष 2019 में कुछ राज्य सरकारों ने पराली अवशेष प्रबंधन हेतु किसानों के समक्ष 800 रुपए प्रति एकड़ आर्थिक सहयोग की पेशकश की थी, जबकि वास्तविक लागत लगभग 2000 रुपए प्रति एकड़ आ रही थी अतः शेष लागत किसानों को स्वयं वहन करनी थी।

पराली से उत्पन्न समस्याएँ

  • पराली दहन से कार्बन डाईऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड समेत अनेक जहरीली गैसें निकलती हैं, जो मानव स्वास्थ्य पर हानिकरक प्रभाव डालती हैं। इन गैसों से श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वर्ष 2018 की लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली मौतों का एक कारण पराली दहन भी है।
  • पराली दहन से निकलने वाली गैसें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं, जिससे पर्यावरण भी प्रभावित होता है।
  • मृदा के ह्यूमस में पौधों की वृद्धि हेतु लाभकारी सूक्ष्म-जीवाणु (जैसे- बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ), नमी और विभिन्न जैविक तत्त्व (पौधों के अपशिष्ट) उपस्थित होते हैं। पराली दहन से मृदा के ह्यूमस में उपस्थित आवश्यक तत्त्व भी जल जाते हैं, जिससे कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • पराली के अनियंत्रित दहन से कई बार आग लगने का खतरा बढ़ जाता है, फलत: जन-धन की व्यापक क्षति होने की संभावना बनी रहती है।

पराली दहन का विकल्प और समाधान

  • किसानों द्वारा पराली दहन को रोकने हेतु जुर्माना लगाने की बजाय उन्हें नकद प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, ताकि वे पराली निस्तारण के वैकल्पिक उपायों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित हों।
  • वर्ष 2019 के एक अध्ययन में यह पाया गया कि पंजाब के उन किसानों ने फसल अवशेषों को नहीं जलाया, जिन्हें जमील पावर्टी एक्शन लैब (J-PAL) के माध्यम से नकद भुगतान किया गया था।
  • सरकार द्वारा पराली दहन पर नियंत्रण लगाने हेतु किसानों को कुल लागत की कुछ राशि अग्रिम भुगतान के रूप में तथा शेष राशि उनके कार्य-प्रबंधन के मूल्यांकन के आधार पर दी जानी चाहिये।
  • सामान्यतः किसान हैप्पी सीडर और सुपर एस.एम.एस. जैसी इन-सीटू मशीनरी के स्थान पर बेलर जैसे एक्स-सीटू प्रबंधन उपकरणों को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि इन-सीटू मशीनरी से फसल के अवशेषों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है, जिससे वे मृदा में मिल जाते हैं जबकि एक्स-सीटू उपकरणों द्वारा समूचे अवशेष निकाल कर एकत्रित कर दिये जाते हैं जिससे अगली फसल की वुबाई में देरी नहीं होती है। ऐसे में सरकार को एक्स-सीटू उपकरणों पर अधिक सब्सिडी देने की ज़रूरत है।
  • दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने हेतु सरकार को बायो-गैस प्लांट की स्थापना पर बल देने की ज़रूरत है, ताकि किसान अपने फसल अवशेष को बेचकर प्राप्त धनराशि को अन्य इन-सीटू उपकरणों एवं कृषि नवाचारों में निवेश कर सकें।
  • सरकार द्वारा किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये। इस हेतु सरकार द्वारा बजट में अलग से निश्चित धनराशि का आवंटन किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष- 

फसल अवशेष-प्रबंधन के प्रभावी समाधान खोजने से किसानों के साथ-साथ समाज को भी बड़ा लाभ होगा। इसके अतिरिक्त, मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा अतः सरकारों द्वारा ऐसी नीतियों के लिये बजट आवंटन सभी के लिये बेहतर स्वास्थ्य तथा आर्थिक उत्पादकता सुनिश्चित करेगा। साथ ही, इसके माध्यम से वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को भी हासिल किया जा सकेगा।

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