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अमेरिका  की  चाँद पर खनन योजना

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-2: भारत के हितों पर विकसित देशों की नीतियों का प्रभाव; प्रश्नपत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)

पृष्ठभूमि

अप्रैल 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सौरमंडल तथा चंद्रमा पर वाणिज्यिक खनन सम्बंधी एक आदेश पारित किया है। कुछ विवादस्पद पहलुओं के कारण रूस ने अमेरिका के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया। हालाँकि, अमेरिकी कांग्रेस ने वर्ष 2015 में एक अधिनियम पारित करके अंतरिक्ष खनन को मान्यता प्रदान की थी।

मुख्य बिंदु

  • इस आदेश के माध्यम से अमेरिकी कम्पनियों को चंद्रमा पर खनन के व्यापक अधिकार मिल गए हैं। इसके अनुसार चंद्रमा पर बेस बनाकर खनन कार्य किया जा सकता है।
  • इस आदेश में, बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि सभी देश अंतरिक्ष के संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं, किंतु आगे यह भी कहा है कि अमेरिका अंतरिक्ष क्षेत्र को ‘ग्लोबल कॉमन’ (Global Common) नहीं मानता है। इसका अर्थ यह है कि भविष्य में विभिन्न देशों द्वारा इस क्षेत्र पर व्यक्तिगत दावे किये जा सकते हैं।
  • आदेश में निहित है कि अमेरिका के खनन कार्य में बाधा डालने वाले किसी कानून या संधि को अमेरिका नहीं मानेगा; साथ ही, उसका विरोध भी करेगा। 

चंद्रमा पर खनन के उद्देश्य

  • चंद्रमा पर कई प्रकार के धात्विक खनिज, जैसे सोना एवं चांदी, लीथियम और कोबाल्ट के साथ-साथ प्रमुख रेडियोधर्मी तत्त्व हीलियम-3 पाए जाते हैं; ध्यातव्य है कि हीलियम-3 को भविष्य की ऊर्जा कहा जा रहा है।
  • अंतरिक्ष संसाधनों से पृथ्वी की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। वस्तुतः इसका एक प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी से बाहर मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास है।
  • इनके अतिरिक्त, चंद्रमा पर फ्यूल स्टेशनों का निर्माण किया जाएगा ताकि वहाँ ‘लम्बी अंतरिक्ष यात्राओं वाले मिशन’ (Deep space mission) भेजे जा सकें।

खनन से जुड़ी चिंताएँ

  • इस आदेश के प्रावधानों से स्पष्ट होता है कि यह एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा और अधिकार क्षेत्र विस्तार की नीति को बढ़ावा देगा।
  • इससे एकाधिकार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, इससे एक  नए प्रकार के  साम्राज्यवाद की शुरुआत होगी।
  • इनके अतिरिक्त, इस तरह की होड़ से अंतरिक्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, संस्थाओं तथा समुदाय का अवमूल्यन होगा।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने आर्टेमिस-3 मिशन को वर्ष 2024 में चंद्रमा पर भेजने के लिये प्रस्तावित किया है, यह मिशन चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुँचेगा।

ग्लोबल कॉमन

‘ग्लोबल कॉमन’ ऐसे साझा वैश्विक प्राकृतिक संसाधन हैं, जिन पर किसी एक व्यक्ति, संस्था या राज्य का नियंत्रण नहीं हो सकता। उच्च सागरीय क्षेत्र (High Sea), अंटार्क्टिका तथा वायुमंडल आदि ‘ग्लोबल कॉमन’ के प्रमुख उदहारण हैं।

क्या है बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty)

  • ‘बाह्य अंतरिक्ष संधि’ अंतरिक्ष में चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों के अन्वेषण तथा उपयोग हेतु आधारभूत सिद्धांत का निर्माण करती है। यह संधि वर्ष 1967 से प्रभाव में आई।
  • संधि की शर्तों के अनुसार, बाह्य अंतरिक्ष पर किसी भी देश का अधिकार नहीं है, किंतु सभी देशों को अंतरिक्ष अनुसंधान की पूर्ण स्वतंत्रता है।
  • जून 2019 तक 109 देशों द्वारा इस संधि पर सहमति दे दी गई है, जबकि 23 देशों ने इस पर हस्ताक्षर तो किये हैं किंतु इसका अनुमोदित नहीं किया है।
  • साथ ही, यह संधि अंतरिक्ष क्षेत्रों पर नाभकीय हथियारों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
  • इस संधि के अनुसार, चंद्रमा तथा अन्य खगोलीय पिंडों का शांतिपूर्ण कार्यों के लिये सीमित प्रयोग किया जाना चाहिये। कोई भी देश बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र पर अपनी सम्प्रभुता का दावा नहीं कर सकता है।

क्या है मून समझौता

  • इसे ‘मून समझौता’ (Moon agreement) अथवा ‘चंद्रमा तथा अन्य खगोलीय पिंडों पर देशों की गतिविधियों को प्रशासित करने के लिये समझौता’ (Agreement governing the activities of states on the moon and other Celestial bodies) के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह समझौता चंद्रमा पर लागू बाह्य अंतरिक्ष संधि के कई प्रावधानों की पुनः पुष्टि करता है।
  • इस समझौते के अनुसार, चंद्रमा तथा अन्य खगोलीय पिंडों का शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाना चाहिये ताकि उनके वातावरण को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे।
  • इस समझौते के तहत चंद्रमा और उसके प्राकृतिक संसाधन मानव जाति की साझी विरासत हैं।
  • यह समझौता वर्ष 1979 में हुआ था तथा वर्ष 1984 से प्रभावी हुआ, जनवरी 2019 तक इसमें 18 पक्षकार शामिल हो चुके हैं। अमेरिका इसका हिस्सा नहीं है।
  • मून समझौते के मुताबिक, चंद्रमा पर की जाने वाली गतिविधियाँ सयुंक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अंतर्गत बने अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अधीन होंगी।

भविष्य की राह

वर्तमान में अंतरिक्ष के वाणिज्यिक प्रयोग के विषयों पर कोई स्पष्ट अन्तर्राष्ट्रीय कानून नहीं है। आवश्यकता है कि ऐसे नियमों का निर्माण किया जाये जो साझा अंतरिक्ष संसाधनों का शांतिप्रिय प्रयोग करते हुए किसी तरह के विवाद को जन्म न दें।

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