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उर्वरक सब्सिडी से संबंधित विभिन्न पक्ष

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन,प्रश्नपत्र-3, विषय-प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय)

संदर्भ

किसानों के विरोध के ‘संभावित पुनरुत्थान’ को देखते हुए, केंद्र सरकार ने ‘डि-अमोनियम फॉस्फेट’ (DAP) पर सब्सिडी में 137 प्रतिशत वृद्धि की घोषणा की है, जिसका मूल्य 511.55 से 1,211.55 प्रति 50 किलोग्राम बैग है। आर्थिक और राजनीतिक विवशता के कारण लिये ग इस निर्णय से केवल खरीफ अवधि के दौरान अतिरिक्त 14,775 करोड़ व्यय होने का अनुमान है।

डी.ए.पी. का महत्त्व

  • डी.ए.पी. भारत में दूसरा सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला उर्वरक है। किसान सामान्यतः इस उर्वरक का प्रयोग बुवाई के ठीक पहले या बुवाई के समय करते हैं।
  • इस उर्वरक में फास्फोरस (P) की उच्च मात्रा होती है, जो जड़ को स्थापित और विकसित करने में सहायक है। इसके बगैर पौधे अपने सामान्य आकार को प्राप्त नहीं कर सकते हैं या उन्हें परिपक्व होने में बहुत अधिक समय लग सकता है। डी.ए.पी. में 46 प्रतिशत फास्फोरस तथा 18 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा होती है।
  • इसके अतिरिक्त, अन्य फॉस्फेटिक उर्वरक भी हैं, जैसे ‘सिंगल सुपर फास्फेट’ (SSP) इसमें 16 प्रतिशत फास्फोरस तथा 11 प्रतिशत सल्फर (S) है, लेकिन डी.ए.पी. किसानों की प्राथमिक पसंद है। यह यूरिया और ‘म्यूरेट ऑफ पोटाश’ (MOP) के समान ही है, जिसमें क्रमशः 46 प्रतिशत और 60 प्रतिशत  नाइट्रोजन और पोटेशियम (K) की मात्रा होती है।

डी.ए.पी. सब्सिडी स्कीम

  • यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) वर्तमान में 5,378 प्रति टन या 45 किलोग्राम के बैग के लिये 242 रुप नियत किया गया है। चूँकि, कंपनियों को इसे ‘नियंत्रित मूल्य’ पर बेचना पड़ता है इसलिये सब्सिडी (विनिर्माण या आयात की लागत तथा निश्चित एम.आर.पी. के बीच का अंतर) परिवर्तनशील होती है।
  • इसके विपरीत, अन्य सभी उर्वरकों के एम.आर.पी. को नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है, इसे कंपनियों द्वारा स्वयं ही नियत किया जाता है। सरकार केवल एक ‘निश्चित प्रति-टन’ सब्सिडी देती है। दूसरे शब्दों में, सब्सिडी नियत है, लेकिन एम.आर.पी. परिवर्तनशील है।

उर्वरक सब्सिडी

  • किसान एम.आर.पी. से कम मूल्य पर उर्वरक खरीदते हैं, जो उर्वरक कंपनियों की सामान्य लागत (उत्पादन या आयात मूल्य) से कम होता है।
  • उदाहरणार्थ, सरकार द्वारा नीम-लेपित यूरिया की एम.आर.पी. 5,922.22  प्रति टन नियत की गई है, जबकि घरेलू निर्माताओं तथा आयातकों की औसत लागत मूल्य क्रमशः 17,000 और 23,000 प्रति टन है। 
  • दोनों के मध्य अंतर (जो संयंत्र-वार उत्पादन लागत और आयात मूल्य के अनुसार भिन्न होता है) केंद्र द्वारा सब्सिडी के रूप में प्रदान किया जाता है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों की एम.आर.पी. कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय की जाती है। हालाँकि, केंद्र सरकार इन पोषक तत्त्वों पर ‘फ्लैट प्रति-टन’ सब्सिडी का भुगतान करती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी कीमत ‘उचित स्तर’ है।

सब्सिडी का भुगतान

  • सब्सिडी उर्वरक कंपनियों को प्रदान जाती है, वस्तुतः इसका अंतिम लाभार्थी किसान ही है, जो बाज़ार द्वारा निर्धारित दरों से कम एम.आर.पी. का भुगतान करता है। 
  • कंपनियों को अभी तक, उनकी सामग्री को ज़िले के ‘रेलहेड पॉइंट’ या अनुमोदित गोदाम में भेजने के पश्चात् ही भुगतान किया जाता  है।
  • मार्च 2018 से, ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ (DBT) प्रणाली शुरू की गई, जिसमें कंपनियों को सब्सिडी का भुगतान खुदरा विक्रेताओं द्वारा किसानों को ‘वास्तविक बिक्री’ के बाद ही किया जाता है।
  • प्रत्येक खुदरा विक्रेता, जो पूरे भारत में 2.3 लाख या उससे अधिक हैं, उर्वरक विभाग के ई-उर्वरक डी.बी.टी. पोर्टल से लिंक ‘पॉइंट-ऑफ-सेल’ (PoS) मशीन से जुड़े हैं।
  • सब्सिडी-युक्त उर्वरक क्रय वाले किसी भी व्यक्ति को अपना ‘आधार’ या ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ नंबर प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। क्रय किये गए उर्वरकों की मात्रा, खरीदार के नाम को ‘बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण’ के साथ पॉइंट-ऑफ-सेल’ मशीन में दर्ज़ किया जाता है।
  • ई-उर्वरक प्लेटफॉर्म पर बिक्री पंजीकृत होने के बाद ही कोई कंपनी सब्सिडी का दावा कर सकती है, जिसे साप्ताहिक आधार पर ‘प्रोसेस’ करके इलेक्ट्रॉनिक रूप से उसके बैंक खाते में सब्सिडी का भुगतान किया जाता है। 

उर्वरक आवश्यकता

  • उर्वरक, फसल के अनुरूप नियत किया जाता है, जैसे सिंचित भूमि पर गेहूँ या धान उगाने वाला किसान प्रति एकड़, लगभग 45 किलो यूरिया के तीन बैग, डी.ए.पी. का 50 किलो बैग और एम.ओ.पी. का आधा बैग (25 किलो) उर्वरक का प्रयोग कर सकता है।  
  • 20 एकड़ कृषि भूमि के लिये उर्वरक के कुल 100 बैग किसान की मौसमी आवश्यकता को आसानी से पूरा कर सकते हैं। जो किसान अधिक उर्वरक चाहते हैं, वे अतिरिक्त बैग के लिये बिना सब्सिडी वाली दरों का भुगतान कर सकते हैं।

सरकार के हालिया कदम

  • कंपनियों के जैसे-ही पुराने स्टॉक खत्म होने लगे, उन्होंने ने नई सामग्री को उच्च दरों पर बेचना शुरू कर दिया। अप्रैल,  सामान्य फसली माह है, जिस  कारण, अप्रैल में कीमतों में वास्तविक वृद्धि नहीं हुई। किसान मई के मध्य से खरीफ फसलों के लिये खरीददारी में तेज़ी लाते हैं।
  • अप्रैल 2020 के बाद से डीजल में 21-22 प्रति लीटर की वृद्धि के अतिरिक्त किसानों को 700 प्रति बैग उर्वरक पर भी व्यय करना है, जो स्पष्ट रूप से बहुत अधिक है।
  • उर्वरक विभाग ने 9 अप्रैल को वर्ष 2021-22 के लिये एन.बी.एस. की कीमतों को अधिसूचित किया था, जिसे अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में तेज़ी के बावजूद, इन्हें पिछले साल के स्तर से अपरिवर्तित रखा गया। इस कारण कंपनियों के पास एम.आर.पी. में वृद्धि करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचा।
  • जैसा कि इसके निहितार्थ स्पष्ट हो गए, कैबिनेट की बैठक के बाद डी.ए.पी. पर मौजूदा 10,231 से 24,231 प्रति टन सब्सिडी को दो-गुना करने संबंधी एक ‘ऐतिहासिक निर्णय’ लिया गया।
  • उर्वरक विभाग ने अन्य तीन पोषक तत्त्वों (N, K और S) पर सब्सिडी को बढ़ाए बगैर फास्फोरस के लिये प्रति किलोग्राम एन.बी.एस. की उच्च दर (पहले के 14.888 के मुकाबले 45.323) को अधिसूचित किया है। इससे कंपनियाँ, डी.ए.पी. पूर्व के एम.आर.पी. पर बेचने में सक्षम होंगी।

निष्कर्ष

अभी के लिये, डी.ए.पी. की कीमतों में वृद्धि अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि किसान दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश के साथ बुवाई के लिये तैयार हो रहे हैं। राजनीतिक रूप से कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच सरकार किसानों का विरोध-प्रदर्शन भी नहीं चाहती है। अतः सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि उर्वरक पर सब्सिडी प्रदान करते समय इससे जुड़े प्रत्येक पहलू पर विचार करे।

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