'लोया जिरगा' अफगानिस्तान में विभिन्न नृजातीय, जातीय, जनजातीय एवं धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों को किसी राष्ट्रीय संकट के समय अथवा राष्ट्रीय मुद्दे के निपटारे के लिये एकजुट करने वाली एक अति-सम्मानित सामूहिक राष्ट्रीय सभा है।
- 'लोया जिरगा' पश्तो भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है- भव्य सभा। पूर्व में इस कानूनी सभा का आह्वान नया राजा चुनने, नए संविधान के निर्माण या राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिये किया जाता था। ध्यातव्य है कि शुरुआत में सिर्फ पश्तूनों को ही इसमें भाग लेने का अधिकार था, बाद में ताज़िक एवं हज़ारा आदि नृजातियों को भी इसमें सम्मिलित किया जाने लगा।
- अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, इस संस्था की अभिव्यक्ति को वहाँ के लोगों की सर्वोच्च अभिव्यक्ति माना जाता है। हालाँकि, यह कोई आधिकारिक निर्णयकारी संस्था नहीं है, अतः इसके निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं। यद्यपि शीर्ष नेतृत्त्व द्वारा इस पर विचार अवश्य किया जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि प्रोटो-इंडो-ईरानी बोलने वाली आर्य जनजातियाँ, जो मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान के क्षेत्र में आईं, उन्होंने सभा और समिति नामक दो परिषदों की शुरुआत 'लोया जिरगा' प्रणाली के तहत ही की थी। महान कुषाण शासक कनिष्क के समय से 1970 के दशक तक इस तरह की विभिन्न राष्ट्रीय 'लोया जिरगा' सभाओं का आयोजन किया गया।
- हाल ही में, हत्या और अपहरण जैसे गम्भीर अपराधों के लिये दोषी ठहराए गए लगभग 400 तालिबानी लड़ाकों को मुक्त करने सम्बंधी निर्णय लेने के लिये अफगानिस्तान में तीन दिवसीय लोया जिरगा-महासभा आहूत की गई।