शॉर्ट न्यूज़: 05 मार्च, 2022
कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण
योगात्मक विनिर्माण पर राष्ट्रीय रणनीति
मानव गतिविधियों का ग्लेशियरों पर प्रभाव
कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण
चर्चा में क्यों
टोयोटा केंद्रीय अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला ने एक लागत प्रभावी, वृहद् एवं दक्ष कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण प्रणाली विकसित की है। यह सूर्य के प्रकाश, जल और कार्बन डाई ऑक्साइड की सहायता से महत्त्वपूर्ण कार्बन यौगिकों के निर्माण को आसान करती है। इस प्रणाली से कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की प्रायोगिकता को बल मिलेगा और पर्यावरण संकट का समाधान हो सकेगा।
प्रमुख बिंदु
- सिद्धांत: यह नई प्रणाली कार्बन डाई ऑक्साइड को कार्बन यौगिकों में परिवर्तित करने के लिये जटिल धातु उत्प्रेरक का उपयोग कर रूपांतरण अभिक्रियाओं (Conversion Reaction) को संपन्न कराने पर आधारित है। इन अभिक्रियाओं को संपन्न कराने के लिये सैद्धांतिक न्यूनतम सीमा में विद्युत विभव का प्रयोग किया जाता है।
- शोधकर्ताओं ने फॉर्मेट का उत्पादन करने के लिये रेडॉक्स अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने हेतु इलेक्ट्रोड से जुड़े सौर सेल का प्रयोग किया है। अर्धचालक और आणविक उत्प्रेरक के साथ इलेक्ट्रोड का युग्मन न्यूनतम ऊर्जा और अपेक्षाकृत सस्ते घटकों का उपयोग करके CO₂ के अपचयन की अनुमति देता है।
- गौरतलब है कि प्रयोगशाला ने इससे पूर्व कृत्तिम पत्तियों (Leaves) का निर्माण किया था, जिसकी सौर ऊर्जा को रसायन ऊर्जा में बदलने की क्षमता 4.6% थी तथा इसका आकार 1 सेंटीमीटर से भी कम था।
- दक्षता: यह प्रणाली 10.5% की दक्षता (ηSTC) से सौर-से-रासायनिक रूपांतरण (Solar-to-Chemical Conversion) कर औद्योगिक फॉर्मेट (Industrial Formate) का उत्पादन करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, एक वर्ग मीटर सेल के लिये पहली बार इस दक्षता स्तर को प्राप्त किया गया है। यह प्रणाली 1.2 मोल प्रति घंटे की दर से फॉर्मेट (Formate) का उत्पादन करती है।
तकनीकी की उपयोगिता
- ध्यातव्य है कि यह तकनीक औद्योगिक स्तर पर फॉर्मेट के उत्पादन का विकल्प प्रस्तुत करती है। एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 7 लाख टन फॉर्मेट का उपयोग परिरक्षक (Preservatives) के तौर पर मवेशियों के खाद्य परिरक्षण और चर्म प्रसंस्करण उद्योग में किया जाता है। इस प्रकार यह तकनीक फॉर्मेट के उत्पादन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
- इसके उत्पाद (फॉर्मेट) का अन्य प्रयोग हाइड्रोजन के परिवहन में हो सकता है, अतः इसकी उपयोगिता भविष्य में हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के लिये भी है।
- यह तकनीक सांद्र CO₂ (औद्योगिक प्रति-उत्पाद) को सोखने में सक्षम है। अतः पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह तकनीक परिवर्तनकारी है। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण प्रणाली उस क्षेत्र विशेष के सेदार वनों से 100 गुना अधिक CO₂ का अवशोषण करती है।
योगात्मक विनिर्माण पर राष्ट्रीय रणनीति
चर्चा में क्यों
अगली पीढ़ी के डिजिटल विनिर्माण को पूरा करने तथा स्थानीय उद्योगों की तत्काल आवश्यकताओं को कम करने के लिये केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ‘योगात्मक विनिर्माण पर राष्ट्रीय रणनीति’ (National Strategy on Additive Manufacturing) जारी की है।
योगात्मक विनिर्माण
- विनिर्माण क्षेत्र प्रधानमंत्री के 1 ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। योगात्मक विनिर्माण (ए.एम.), डिजिटल विनिर्माण की अगली पीढ़ी है, जो कंप्यूटिंग इलेक्ट्रॉनिक्स, इमेजिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, पैटर्न रिकग्निशन के उभरते क्षेत्रों के प्रतिच्छेदन की अनुमति देती है।
- इसमें डिजिटल प्रक्रियाओं, संचार, इमेजिंग, आर्किटेक्चर और अभियांत्रिकी के माध्यम से भारत के विनिर्माण और औद्योगिक उत्पादन परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव की अपार संभावनाएँ हैं। यह बौद्धिक संपदा एवं निर्यात के अवसर उत्पन्न करने में मदद करेगी। साथ ही इस क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स के तेज़ी से उभरने की संभावना है।
राष्ट्रीय रणनीति के लक्ष्य
- इस रणनीति में कुछ स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्य लिये गए हैं। इसके तहत 50 भारत विशिष्ट प्रौद्योगिकियों, 100 नए स्टार्ट-अप्स, 500 उत्पादों, 10 मौजूदा एवं नए विनिर्माण क्षेत्रों तथा 1 लाख नई कुशल जनशक्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पारितंत्र तैयार किया जा रहा है।
- इस रणनीति का लक्ष्य वैश्विक ए.एम. बाजार में 5% हिस्सेदारी हासिल करना तथा वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ने का है। इस विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये ए.एम. उत्पादों को अपनाने हेतु जागरूकता का प्रसार किया जाएगा।
नीति जारी करने के निहितार्थ
- यह रणनीति ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सिद्धांतों को विकसित करेगी, जो उत्पादन प्रतिमानों के तकनीकी परिवर्तन के माध्यम से आत्मनिर्भरता पर बल देती है। इसे सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ एक समर्पित राष्ट्रीय केंद्र के माध्यम से संपादित किया जाएगा।
- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा नवाचार तथा शोध एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को पी.पी.पी. मोड में प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स, फोटोनिक्स, चिकित्सा उपकरण, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण सहित विभिन्न क्षेत्र के व्यापक घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिये योगात्मक विनिर्माण ग्रेड सामग्री, 3डी प्रिंटर मशीन और मुद्रित स्वदेशी उत्पादों को विकसित करने के लिये मौजूदा शोध ज्ञान के आधार को बदला जा सकता है।
- यह केंद्र प्रौद्योगिकी अपनाने और उन्नति में तेज़ी लाने के लिये ज्ञान एवं संसाधनों के एक समूह के रूप में कार्य करेंगे। भारतीय निर्माताओं को वैश्विक समकक्षों पर बढ़त प्रदान करने के लिये स्वदेशी ए.एम. तकनीक का उपयोग करने हेतु क्षेत्र विशिष्ट केंद्र भी विकसित किये जाएँगे।
मानव गतिविधियों का ग्लेशियरों पर प्रभाव
चर्चा में क्यों
एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार, अंटार्कटिका में ब्लैक कार्बन की सांद्रता अनुसंधान स्टेशनों और महाद्वीप के अन्य हिस्सों की तुलना में लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के आसपास काफी अधिक है।
प्रमुख बिंदु
- ब्लैक कार्बन-प्रभावित क्षेत्रों में अंटार्कटिक प्रायद्वीप और संबंधित द्वीपसमूह पर प्रत्येक वर्ष गर्मियों में 23 मिलीमीटर जल घनत्व के बराबर हिम आवरण संकुचित होता जा रहा है।
- राष्ट्रीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के प्रबंधन परिषद् और अंटार्कटिक संधि सचिवालय के अंटार्कटिक स्टेशन के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में अंटार्कटिक संधि क्षेत्र के भीतर 76 अनुसंधान स्टेशन सक्रिय हैं, जो गर्मियों में करीब 5,500 लोगों के लिये आवास की सुविधा प्रदान करते हैं।
- अंटार्कटिका में स्थानीय मानवीय गतिविधियों, जैसे- हवाई जहाजों, डीजल बिजली संयंत्रों, जनरेटर, हेलीकॉप्टर्स और ट्रकों के कारण इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन पदचिह्न में वृद्धि दर्ज़ की गई है।
- जीवाश्म ईंधन, लकड़ी व अन्य ईंधन के अपूर्ण दहन से उत्सर्जित पार्टिकुलेट मैटर को ‘ब्लैक कार्बन’ कहते हैं। यह उत्सर्जन के कुछ दिन से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में स्थिर रहने वाला अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है। यह वायुमंडलीय ताप में वृद्धि करता है।
- हिम आवरण वाले क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति उस क्षेत्र के एल्बिडो को कम करती है, फलत: सूर्यातप के अधिक अवशोषण से बर्फ के पिघलने की दर में वृद्धि होती है।