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शॉर्ट न्यूज़: 07 मार्च, 2022

शॉर्ट न्यूज़: 07 मार्च, 2022


डिप्पी द डायनोसोर

भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड

थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री


डिप्पी द डायनोसोर

चर्चा में क्यों 

लंदन के ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’ की दशकों से मशहूर ‘डिप्पी द डायनोसोर’ (Dippy the Dinosaur) प्रतिकृति ने यूनाइटेड किंगडम में भ्रमण के दौरान लाखों लोगों को प्रकृति के साथ संबंध विकसित करने के प्रति प्रेरित किया।

प्रमुख बिंदु 

  • ‘डिप्पी द डायनोसोर’ लंदन की 26 मीटर लंबी एक ‘डिप्लोडोकस कार्नेगी कंकाल’ (Diplodocus Carnegii Skeleton) की जीवाश्म हड्डियों की ‘प्लास्टर कास्ट प्रतिकृति’ है।
  • यह विश्व की सबसे लोकप्रिय ‘डायनासोर कास्ट प्रतिकृति’ है। इसे ‘डिप्पी’ (Dippy) के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसे पश्चिमी संयुक्त राज्य के माउंटेन वेस्ट उपक्षेत्र में स्थित राज्य ‘व्योमिंग’ में वर्ष 1899 में एक जीवाश्म कंकाल से निकाला गया था। वर्ष 1905 में इसे ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’ को उपहारस्वरूप दे दिया गया था।
  • इसे विश्व का सबसे प्रसिद्ध एकल डायनासोर कंकाल माना जाता है। इसको समर्पित एक पुस्तक भी उपलब्ध है। इसके साथ ही यह बच्चों की किताबों का भी विषय ‘डिप्पी: द टेल ऑफ़ ए म्यूज़ियम आइकन’ रहा है।

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भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड

चर्चा में क्यों

केंद्र सरकार द्वारा भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के सदस्यों के चयन के लिये नए मानदंड अपनाए जाने के निर्णय को विपक्षी दलों से आलोचना का सामना करना पड़ा है। गौरतलब है कि नए नियमों के तहत बोर्ड से पंजाब एवं हरियाणा की स्थायी सदस्यता समाप्त कर दी गई है।

प्रमुख बिंदु

  • भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड नियम, 1974 के अनुसार, बी.बी.एम.बी. में विद्युत विभाग के सदस्य पंजाब से तथा सिंचाई विभाग के सदस्य हरियाणा से थे। वर्ष 2022 के संशोधित नियमों में इसे समाप्त कर दिया गया।
  • संशोधित नियमों में सदस्यों के चयन का मापदंड भी इस तरह से परिभाषित किया गया है कि हरियाणा एवं पंजाब के विद्युत विभाग भी मानकों पर खरे नहीं उतर सकते हैं। विपक्षी दलों का तर्क है कि वर्तमान केंद्र का यह कदम संघीय ढाँचे और राज्यों के अधिकारों का हनन करता है।
  • वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि के अनुसार रावी, ब्यास और सतलुज का जल भारत को आवंटित किया गया है, जो देश के भीतर सिंचाई उद्देश्यों के लिये उपलब्ध है। ब्यास और सतलुज पर भाखड़ा, देहर और ब्यास बिजली परियोजनाओं का निर्माण किया गया। बी.बी.एम.बी. इन परियोजनाओं को नियंत्रित करता है तथा इन पर होने वाला व्यय भागीदार राज्यों द्वारा उनके शेयरों के अनुपात में साझा किया जाता है।
  • पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत बी.बी.एम.बी. के शेयर को पंजाब और हरियाणा के बीच 58:42 के अनुपात में विभाजित किया गया था। इसमें बाद में कुछ शेयर राजस्थान और हिमाचल प्रदेश का भी जोड़ा गया। मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा दो प्रमुख लाभार्थी हैं, जिसमें पंजाब का बड़ा हिस्सा है।
  • बोर्ड भाखड़ा नांगल और ब्यास परियोजनाओं से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ राज्यों को जल व विद्युत आपूर्ति के नियमन में लगा हुआ है।

थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री

संदर्भ

यूक्रेन सरकार और मानवाधिकार समूहों ने रूस पर यूक्रेन के विरुद्ध ‘क्लस्टर युद्ध सामग्री’ एवं ‘थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री’ के उपयोग का आरोप लगाया है। 

थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री

  • ‘थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री’ को ‘एरोसोल बम’ या ‘वैक्यूम बम’ या ‘ईंधन-वायु विस्फोटक उपकरण’ भी कहते हैं। रूस थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री को टी.ओ.एस.-1 (TOS-1) रॉकेट लॉन्चर से लॉन्च कर सकता है।
  • थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री को प्राय: रॉकेट या बम के रूप में प्रयोग किया जाता है। ये ईंधन और विस्फोटक पदार्थों को उत्सर्जित करते हैं। इनमें जहरीली पाउडरनुमा धातुओं और ऑक्सीडेंट युक्त कार्बनिक पदार्थ सहित विभिन्न ईंधनों का उपयोग किया जा सकता है।
  • इसमें भरा विस्फोटक, ईंधन का एक बड़ा गोला छोड़ता है, जो वायु में उपलब्ध ऑक्सीजन के संपर्क में आकर उच्च तापमान वाला आग का गोला और एक शॉकवेव (सुपरसोनिक तरंग) उत्पन्न करता है। वस्तुतः यह आसपास मौजूद किसी भी जीवित प्राणी से वायु (ऑक्सीजन) को सोख लेता है।

प्रभाव

  • थर्मोबैरिक बम शहरी क्षेत्रों या खुली परिस्थितियों में अधिक विनाशकारी होते हैं। साथ ही, ये बंकरों और अन्य भूमिगत स्थानों में मौजूद लोगों को भी हानि पहुँचा सकते हैं।
  • इसकी चपेट में आने से कई आंतरिक एवं अदृश्य चोटों से पीड़ित होने की संभावना है। इससे फेफड़ों भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

पूर्व में उपयोग एवं अंतर्राष्ट्रीय नियम 

  • जर्मनी की ओर से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री के प्रारंभिक संस्करण विकसित किये गए थे। ऐसा माना जाता है कि सोवियत संघ ने वर्ष 1969 के चीन-सोवियत सीमा संघर्ष के दौरान और वर्ष 1979 में अफगानिस्तान में इसका प्रयोग किया था।
  • कथित तौर पर रूस ने चेचन्या और सीरिया हमलों में इसका प्रयोग किया था। अमेरिका ने वियतनाम युद्ध तथा अफ़ग़ानिस्तान में अल-क़ायदा के विरुद्ध इसका उपयोग किया था।
  • क्लस्टर युद्ध सामग्री अंतरराष्ट्रीय संधि की ओर से प्रतिबंधित है। हालाँकि, थर्मोबैरिक युद्ध सामग्री का उपयोग स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं हैं।

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