शॉर्ट न्यूज़: 10 मार्च, 2022
भारतीय हीरा उद्योग
पाल-दाधव नरसंहार
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले
भारतीय हीरा उद्योग
चर्चा में क्यों
अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध आरोपित कर दिये हैं। इससे भारत के हीरा पॉलिश उद्योग पर संकट बढ़ गया है, जिससे भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
- रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, रूस की सबसे बड़ी हीरा खनन कंपनी अलरोसा विश्व स्तर पर लगभग 30% कच्चे हीरे की आपूर्ति करती है।
- यह भारत के लिये कच्चे हीरे का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, क्योंकि भारत दुनिया के 80-90% कच्चे हीरे का आयत, कटाई और पॉलिश करता है।
- भारतीय हीरा उद्योग लगभग पूरी तरह से निर्यातोन्मुख है। रूस-यूक्रेन संघर्ष से पूर्व इस उद्योग के वर्तमान वित्त वर्ष में लगभग 24 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त करने की संभावना व्यक्त की गई थी।
- अभी तक अलरोसा के साथ व्यापार को प्रतिबंधित नहीं किया गया हैं, किंतु ‘स्विफ्ट (SWIFT) प्रणाली’ से रूस के केंद्रीय बैंक और दो प्रमुख बैंकों को अलग किये जाने के कारण व्यापार मुश्किल हो गया है, जिससे आपूर्ति में व्यवधान हो सकता है।
- विदित है कि देश के कुल रत्न और आभूषण निर्यात में हीरे का 50% योगदान है।
पाल-दाधव नरसंहार
चर्चा में क्यों
हाल ही में, पाल-दाधव नरसंहार के 100 वर्ष पूरे हुए। गुजरात सरकार ने इसे जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बड़े नरसंहार के रूप में वर्णित किया है। इस बार गणतंत्र दिवस की झाँकी में गुजरात ने इसको प्रदर्शित किया था।
प्रमुख बिंदु
- पाल-दाधव नरसंहार 7 मार्च, 1922 को साबरकांठा जिले के ‘पाल-चितरिया’ और ‘दधवाव’ गाँव में हुआ था, जो तत्कालीन समय में इदार (Idar) राज्य का हिस्सा था। इस दिन अमलकी एकादशी थी, जो आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार, जो होली से ठीक पहले आती है।
- मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 'एकी आंदोलन' के हिस्से के रूप में पाल, दधव और चितरिया के ग्रामीण ‘हेइर नदी’ के तट (Banks of River Heir) पर एकत्र हुए थे।
- यह आंदोलन अंग्रेजों और सामंतों द्वारा किसानों पर लगाए गए भू-राजस्व कर (लगान) के विरोध में था।
- तेजावत के नेतृत्व में लगभग 2000 भीलों ने अपने धनुष-बाण उठा लिये। अंग्रेजों ने प्रत्युत्तर में उन पर गोलियां चला दीं जिसमें लगभग 1,000 आदिवासी मारे गए।
- आदिवासी नेता मोतीलाल तेजावत को आदिवासी अनुयायियों के बीच प्राय: 'गांधी' के नाम से जाना जाता था।
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले
चर्चा में क्यों
महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा की गई एक टिप्पणी ने ज्योतिराव फुले एवं सावित्रीबाई फुले को चर्चा में ला दिया है।
फुले दंपत्ति : परिचय
- ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नैगांव में हुआ था।
- महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले को सामाजिक एवं शैक्षिक इतिहास में एक असाधारण व्यक्तित्व माना जाता है। उन्होंने महिला शिक्षा एवं महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ जाति एवं लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
- इन दोनों का विवाह अत्यंत कम आयु में हो गया था। ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले की कोई जैविक संतान नहीं थी। उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया, जिनका नाम यशवंतराव था।
सामाजिक योगदान
- वर्ष 1848 में इन दोनों ने बालिकाओं, शूद्रों और अति-शूद्रों के लिये पुणे में एक स्कूल प्रारंभ किया जो बालिकाओं के लिये पहला स्वदेशी स्कूल था।
- वर्ष 1853 में ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई ने गर्भवती विधवाओं के लिये एक देखभाल केंद्र और बालहत्या प्रतिबंधक गृह (शिशु हत्या की रोकथाम के लिये) का निर्माण भी किया।
- इनके द्वारा 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य प्रचलित परंपराओं के खिलाफ सामाजिक परिवर्तनों की वकालत करना था। इन्होंने खर्चीले विवाह एवं बाल विवाह का विरोध किया तथा अंतरजातीय विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने का भी प्रयास किया। महात्मा फुले ने अपना जीवन महिलाओं, वंचितों और शोषित किसानों के उत्थान के लिये समर्पित किया था।
- वर्ष 1974 में धनंजय कीर ने 'महात्मा ज्योतिबा फुले : हमारी सामाजिक क्रांति के पिता' शीर्षक से ज्योतिराव फुले की जीवनी लिखी थी। उल्लेखनीय है कि ‘सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय, पुणे’ में इनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया है।