शॉर्ट न्यूज़: 16 मार्च , 2021
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021
AEG12 मच्छर प्रोटीन की उपयोगिता
मार्शियन ब्लूबेरीस
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021
संदर्भ
गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किये गए एक विधेयक में यह प्रस्तावित किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में ‘सरकार’ का अर्थ दिल्ली के उपराज्यपाल (Leutinent Governor - LG) से है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 में वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन करने की बात की गई है।
- वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 44 में कहा गया है कि एल.जी.द्वारा की गई कि सभी कार्यकारी कार्रवाइयाँ, चाहे वे मंत्रियों की सलाह पर की गई हों या अन्यथा एल.जी. के नाम से ही की जाएँगी।
- यह विधेयक एल.जी. को उन मामलों में भी विवेकाधीन अधिकार देता है, जिनमें कानून बनाने का अधिकार सिर्फ दिल्ली विधान सभा को है।
- प्रस्तावित कानून यह सुनिश्चित करने का प्रयास भी करता है कि एल.जी. को मंत्रिपरिषद (या दिल्ली कैबिनेट) द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय से पहले राय देने के लिये "आवश्यक रूप से एक अवसर" दिया जाय।
- ध्यातव्य है कि दिल्ली, संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत 69वें संविधान-संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा अस्तित्व में आया। मौजूदा अधिनियम के अनुसार, दिल्ली विधान सभा के पास सार्वजनिक व्यवस्था (public order), पुलिस और भूमि को छोड़कर सभी मामलों में कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
AEG12 मच्छर प्रोटीन की उपयोगिता
संदर्भ
हाल ही में, ‘यू.एस. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ के शोधकर्ताओं ने ‘AEG12’ नामक एक मच्छर प्रोटीन का पता लगाया है। यह प्रोटीन डेंगू, पीत ज्वर तथा ज़ीका विषाणु को दृढ़ता से रोकता है। ध्यातव्य है कि यह प्रोटीन कोरोना विषाणु को रोकथाम में भी प्रभावी है।
प्रमुख बिंदु
- AEG12 मच्छर प्रोटीन संक्रमित आवरण को अस्थिर करके उसके सुरक्षात्मक आवरण को नष्ट कर देता है, जिससे विषाणु के नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। हालाँकि, यह प्रोटीन एकल आवरणयुक्त विषाणु पर प्रभावी नहीं है।
- यह प्रोटीन आणविक स्तर पर लिपिड (झिल्ली के वसीय भाग, जो विषाणु को मज़बूती से जकड़े रहते हैं) को काटकर बाहर निकाल देता है।
- यह फ़्लैवीवायरस के विरुद्ध सर्वाधिक प्रभावी है। विदित है कि ज़ीका तथा पश्चिमी नील (West Nile) विषाणु फ़्लैवीवायरस परिवार से संबंधित हैं।
- प्रोटीन की संरचना को हल करने के लिये एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी का उपयोग किया गया है।
- यह प्रोटीन सार्स- कोव-2, जो कि कोविड-19 का कारण है, के उपचार में प्रभावी हो सकता है। हालाँकि, ऐसी संभावना है कि बायोइंजीनियरिंग की सहायता से इस चिकित्सा के विकास में कई वर्ष लग सकते हैं।
मार्शियन ब्लूबेरीस
संदर्भ
हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, ‘मार्शियन ब्लूबेरीस’ पृथ्वी पर पाई जाने वाली संरचनाओं के समान है। गुजरात के कच्छ में हेमेटाइट संघटन पर किये जा रहे अध्ययन के आधार पर यह संभावना व्यक्त की गई है कि भारत में पाए गए ‘ब्लूबेरीस’ मंगल ग्रह पर पाए गए 'ब्लूबेरीस' के समान विशेषताओं को दर्शाते हैं।
‘मार्शियन ब्लूबेरीस’ (Martian Blueberries)
- वर्ष 2004 में नासा के मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर ‘ऑपर्च्यूनिटी’ को मंगल ग्रह पर कई छोटे-छोटे गोलाश्म प्राप्त हुए, जिन्हें अनौपचारिक रूप से ‘मार्शियन ब्लूबेरीस’ नाम दिया गया।
- ‘ऑपर्च्यूनिटी’ के स्पेक्ट्रोमीटर ने प्राप्त खनिजों के विश्लेषण के आधार पर पाया कि वे हेमेटाइट्स नामक लौह ऑक्साइड यौगिक से बने थे। इससे जिज्ञासा उत्पन्न हुई, क्योंकि हेमेटाइट्स की उपस्थिति से मंगल ग्रह पर जल की उपस्थिति का पता चलता है।
- पृथ्वी पर जीवन के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि मंगल पर ग्रे-हेमेटाइट के निर्माण में जल की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होगी। हेमेटाइट्स का निर्माण ऑक्सीकृत वातावरण में होता है।
- मंगल ग्रह पर ‘ब्लूबेरीस’ की आयु के संबंध में सटीक समय का अनुमान लगा पाना संभव नहीं है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 3 अरब वर्ष पूर्व मंगल की चट्टानों से जल विलुप्त हो गया था।
- वर्ष 2020 में नासा के द्वारा भेजे गए ‘परजेवरेंस रोवर’ द्वारा किये जा रहे अध्ययन से जीवन के संकेत तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों को खोजने में मदद मिलेगी, जिससे मंगल ग्रह के इतिहास की एक विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करने में मदद मिल सकती है।
‘झुरान संरचना’ (Jhuran Formation)
- शोधकर्ता गुजरात के कच्छ में ‘झुरान संरचना’ का अध्ययन कर रहे हैं, जो 145-201 मिलियन वर्ष प्राचीन है। इस क्षेत्र में हेमेटाइट संघटन की विस्तृत भू-रसायन व स्पेक्ट्रोस्कोपिक जाँच से इसके मंगल ग्रह के समान होने का पता चलता है।
- गोलाकार, द्वि-युग्मीय तथा त्रि-युग्मीय आकृतियों के समान होने के अतिरिक्त इसके ‘हेमेटाइट तथा गोइथाइट’ खनिज मिश्रण से निर्मित होने के भी संकेत मिलते हैं।
- मंगल ग्रह पर हेमेटाइट्स के पाए जाने से न केवल जल बल्कि वातावरण में ऑक्सीजन की उपस्थिति का भी पता चलता है, क्योंकि हेमेटाइट्स को स्थिर करने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
- यद्यपि इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि ऑक्सीजन का संकेंद्रण जीवन-यापन के लिये पर्याप्त था, परंतु वर्तमान परिदृश्य की तुलना में इसके अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के प्रमाण मिलते हैं।
कच्छ क्षेत्र में मार्शियन सादृश्यता (Martian Analogue)
- शोधकर्ताओं के अनुसार कच्छ एक संभावित ‘मार्शियन सादृश्य क्षेत्र’ है। वर्ष 2016 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि कच्छ में हुई ‘हाइड्रस सल्फेट’ (Hydrous Sulphate) की घटनाएँ मंगल ग्रह की सतही प्रक्रियाओं के समान हैं।
- इसके अतिरिक्त, इस अध्ययन से इस बारे में भी पता चलता है कि मंगल ग्रह पर आर्द्र वातावरण का शुष्क वातावरण में परिवर्तित होना कच्छ के इतिहास के समान है।
निष्कर्षतः उपर्युक्त आधारों पर ऐसा कहा जा सकता है कि कच्छ क्षेत्र पृथ्वी पर भविष्य के मंगल अन्वेषण अध्ययन के लिये एक संभावित परीक्षण स्थल भी हो सकता है।