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शॉर्ट न्यूज़: 29 अक्तूबर, 2020

शॉर्ट न्यूज़: 29 अक्तूबर, 2020


ग्रीस और तुर्की के मध्य बढ़ता विवाद

भारत और नाइजीरिया के मध्य समझौता ज्ञापन

भारत-ताइवान सम्बंध और चीन की आपत्ति


ग्रीस और तुर्की के मध्य बढ़ता विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, ग्रीस ने सम्भावित रूप से प्रवासियों द्वारा बड़े पैमाने पर सीमा पार करने की गतिविधियों को रोकने के लिये तुर्की के साथ लगने वाली अपनी सीमा पर दीवार के विस्तार का निर्णय लिया है।

पृष्ठभूमि

ग्रीस द्वारा दीवार के विस्तार का यह निर्णय यूरोपीय संघ के सदस्य देश ग्रीस तथा तुर्की के मध्य बिगड़ते सम्बंधो के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। ध्यातव्य है कि तुर्की यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिये प्रयासरत है। हागिया सोफिया विवाद, पूर्वी भू-मध्य सागर विवाद के साथ-साथ तुर्की द्वारा प्रवासियों को यूरोप में प्रवेश करने से रोकने से मना करने के बाद तनाव में और अधिक वृद्धि हो गई है।

ग्रीस-तुर्की प्रवासी विवाद

  • वर्ष 2011 में सीरियाई युद्ध के प्रारंभ होने के बाद बड़ी संख्या में विस्थापित सीरियाई निवासियों ने तुर्की में शरण की मांग की थी। आंकड़ो के अनुसार, तुर्की लगभग 37 लाख सीरियाई शरणार्थियों को आश्रय दे रहा है। उनकी उपस्थिति के चलते तुर्की में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्या महसूस की जा रही है।
  • वर्ष 2015 में शरणार्थी संकट अपने चरम पर पहुंच गया और जल मार्गों का उपयोग करके यूरोप पहुँचने के प्रयास में हजारों शरणार्थियों की मृत्यु हो गई। साथ ही, बड़ी संख्या में शरणार्थी ग्रीस और इटली पहुंचे।
  • तुर्की वर्ष 2016 में शरणार्थियों को यूरोपीय संघ के देशों में प्रवेश करने से रोकने पर सहमत हुआ, जिसके बदले में यूरोपीय संघ ने तुर्की को उसके देश में शरणार्थियों के प्रबंधन हेतु आर्थिक सहायता का वादा किया।
  • हालांकि, इस वर्ष फरवरी में तुर्की ने वर्ष 2016 के समझौते का सम्मान करने से मना करते हुए प्रवासियों के लिये ग्रीस के साथ लगी सीमा को खोल दिया। इसके बाद, मार्च में, हजारों प्रवासियों ने ग्रीस और बुल्गारिया के माध्यम से यूरोप में प्रवेश करने की मांग की।
  • यह कदम सीरियाई गृह युद्ध में (इदलिब प्रांत) तुर्की द्वारा समर्थन प्राप्त करने और यूरोपीय संघ को भयादोहन (Blackmail) करने की कोशिश में यूरोप पर दबाव बनाने का एक स्पष्ट प्रयास था। उल्लेखनीय है कि सीरिया, तुर्की के दक्षिण में स्थित है।
  • इसी संदर्भ में ग्रीक ने अप्रैल 2021 के अंत तक तुर्की के साथ पहले से मौजूद 10 किमी. लम्बी दीवार को अतिरिक्त 26 कि.मी. तक बढ़ाने का निर्णय लिया है।

ऐतिहासिक सम्बंध

  • सदियों से, तुर्की और ग्रीस ने विविध प्रकार से परस्पर इतिहास को साझा किया है। वर्ष 1830 के आस-पास ग्रीस ने आधुनिक तुर्की के पूर्ववर्ती ऑटोमन साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
  • वर्ष 1923 में दोनों देशों ने अपनी मुस्लिम और ईसाई आबादी का आदान-प्रदान किया था। इतिहास में यह, इन दोनों देशों के मध्य भारत विभाजन के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्रवसन माना जाता है।
  • साइप्रस संघर्ष के दशकों पुराने मुद्दे पर भी दोनों राष्ट्र एक-दूसरे का विरोध करते रहे हैं। पूर्व में भी ऐसे दो अवसर आ चुके है, जब दोनों देश एजियन सागर में अन्वेषण अधिकारों को लेकर लगभग युद्ध की स्थिति में पहुँच गए थे।
  • हालाँकि, दोनों देश 30 सदस्यीय नाटो गठबंधन के सदस्य हैं। साथ ही, तुर्की आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ की पूर्ण सदस्यता के लिये भी एक उम्मीदवार है। ध्यातव्य है कि ग्रीस यूरोपीय संघ का पहले से ही एक सदस्य है।

पूर्वी भू-मध्य सागर विवाद

  • पिछले 40 वर्षों से, तुर्की और ग्रीस पूर्वी भू-मध्य और एजियन सागर के क्षेत्रों पर अधिकार और दावे को लेकर असहमत हैं। ये क्षेत्र तेल और गैस के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
  • तुर्की द्वारा विवादित हिस्से में ड्रिलिंग की कोशिश के बाद तनाव और बढ़ गया। इसके अतिरिक्त तुर्की ने ग्रीस के एक द्वीप में भूकम्पीय सर्वेक्षण भी किया है।
  • ग्रीस संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) का एक हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र है, जबकि तुर्की इसका हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। ग्रीस का मानना है कि पूर्वी भूमध्य सागर में महाद्वीपीय शेल्फ (जलसीमा/जलमग्न सीमा) की गणना उसके द्वीपीय क्षेत्रों पर विचार करते हुए की जानी चाहिये।

हागिया सोफिया विवाद (The Hagia Sophia Row)

  • तुर्की द्वारा जुलाई में सदियों पुराने और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने के निर्णय से भी दोनों देशों के मध्य विवाद बढ़ गया है।
  • सदियों पुरानी हागिया सोफिया इमारत का निर्माण मूल रूप से एक कैथेड्रल चर्च के रूप में बाइज़ेन्टाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) के शासक जस्टीनियन प्रथम के कार्यकाल में शुरू हुआ था। यह स्थल उस्मान वास्तुशिल्प का विशिष्ट उदाहरण है।
  • 1935 ईस्वी में मुस्तफा कमाल अतातुर्क (पाशा) द्वारा धर्मनिरपेक्षता में वृद्धि के रूप में इसे एक संग्रहालय बना दिया गया।  इस इमारत को परम्परावादी (Orthodox) ईसाईयत के प्रमुख स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। 


ऊर्जा संसाधन

  • हाल के वर्षों में, साइप्रस के जलीय क्षेत्र में गैस का विशाल भंडार पाया गया है। इसने साइप्रस सरकार, ग्रीस, इज़रायल और मिस्र को संसाधनों के अधिकतम दोहन हेतु मिलकर काम करने के लिये प्रेरित किया है। इसके तहत, भू-मध्य सागर में लगभग 2,000 किमी. पाइपलाइन के माध्यम से ऊर्जा की आपूर्ति यूरोप को की जाएगी।
  • पूर्वी भू-मध्य सागर में ऊर्जा संसाधन विकसित करने की दौड़ में तुर्की और ग्रीस आमने-सामने हैं।
  • तुर्की के नियंत्रण वाले उत्तरी साइप्रस को केवल तुर्की द्वारा ही एक गणतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। पिछले वर्ष, इसी क्षेत्र में तुर्की ने साइप्रस के पश्चिम में ड्रिलिंग के कार्य को आगे बढ़ाया।
  • नवम्बर 2019 में, तुर्की और लीबिया के मध्य तुर्की के दक्षिणी तट से लीबिया के उत्तर-पूर्वी तट तक एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (ई.ई.ज़ेड.) के लिये समझौता हुआ है। मिस्र ने इसे अवैध कहा है। साथ ही, ग्रीस ने भी क्रीट द्वीप के सम्बंध में इसका विरोध किया है।

कानूनी और जलीय क्षेत्र के मुद्दे

  • एजियन और पूर्वी भू-मध्य सागर में ग्रीस के कई द्वीप तुर्की तट के भीतर हैं, इसलिये क्षेत्रीय जल के मुद्दे काफी जटिल हैं  और दोनों देश अतीत में युद्ध के कगार पर पहुँच चुके हैं।
  • क्षेत्रीय जल के अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र (ई.ई.ज़ेड.) से सम्बंधित मुद्दे भी विवाद का विषय रहे हैं।
  • साथ ही, ग्रीस ने यूरोपीय संघ से तुर्की के साथ ‘कस्टम यूनियन समझौते’ को निलम्बित करने पर विचार करने को कहा है। यह समझौता वर्ष 1996 से लागू है।
  • इसके अतिरिक्त ग्रीस ने जर्मनी सहित यूरोपीय संघ के तीन सहयोगियों को तुर्की को हथियारों के निर्यात को रोकने के लिये कहा है।

निष्कर्ष

नाटो संगठन के दो सहयोगी देशों तुर्की और ग्रीस (यूनान) के मध्य तनाव अधिक गहरा होता जा रहा है। वर्तमान में विवाद का प्रमुख कारण हागिया सोफिया इमारत और शरणार्थी समस्या के साथ-साथ पूर्वी भू-मध्य सागरीय क्षेत्र में दोनों देशों द्वारा हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण में तेज़ी लाना है।

प्री फैक्ट :

  • वर्ष 1830 के आस-पास ग्रीस आधुनिक तुर्की के पूर्ववर्ती ऑटोमन साम्राज्य से स्वतंत्र हुआ था और वर्ष 1923 में दोनों देशों ने अपनी मुस्लिम और ईसाई आबादी का आदान-प्रदान किया था।
  • ग्रीस और तुर्की सहित नाटो गठबंधन में 30 सदस्य देश शामिल हैं।
  • ग्रीस संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है, जबकि तुर्की इसका हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं।
  • तुर्की ने जुलाई में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने का निर्णय लिया है।
  • हागिया सोफिया इमारत का निर्माण मूल रूप से एक कैथेड्रल चर्च के रूप में बाइज़ेन्टाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) के शासक जस्टीनियन प्रथम के कार्यकाल में शुरू हुआ था। यह स्थल उस्मान वास्तुशिल्प का विशिष्ट उदाहरण है।
  • ग्रीस ने यूरोपीय संघ से तुर्की के साथ ‘कस्टम यूनियन समझौते’ को निलम्बित करने पर विचार करने को कहा है। यह समझौता वर्ष 1996 से लागू है।

भारत और नाइजीरिया के मध्य समझौता ज्ञापन

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, अंतरिक्ष)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कैबिनेट ने भारत और नाइजीरिया के मध्य शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाह्य अंतरिक्ष की खोज और इसके उपयोग में सहयोग पर हुए समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) को मंजूरी प्रदान की है।

पृष्ठभूमि

भारत और नाइजीरिया लगभग एक दशक से औपचारिक अंतरिक्ष सहयोग हेतु प्रयासरत हैं। राजनयिक माध्यमों से विचार-विमर्श के बाद इस एम.ओ.यू. पर जून 2020 में बेंगलुरु में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अगस्त 2020 में अबूजा में नाइजीरिया के राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास एजेंसी (एन.ए.एस.आर.डी.ए.) ने हस्ताक्षर किये हैं।

महत्त्व

  • यह समझौता ज्ञापन दोनों देशों को सहयोग के सम्भावित क्षेत्रों, जैसे- पृथ्वी की सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग), सैटलाइट आधारित संचार व नेविगेशन, अंतरिक्ष विज्ञान एवं ग्रहों की खोज के साथ-साथ अंतरिक्ष यान, लॉन्च व्हीकल, अंतरिक्ष प्रणालियों और जमीनी प्रणालियों के उपयोग को सक्षम बनाएगा।
  • इसके अतिरिक्त दोनों देश भू-स्थानिक उपकरण और तकनीक सहित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक अनुप्रयोग व सहयोग के अन्य क्षेत्रों को भी तय करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
  • इस समझौता ज्ञापन के तहत एक संयुक्त कार्य दल का गठन किया जाएगा, जिसमें अंतरिक्ष विभाग (डी.ओ.एस.)/इसरो और नाइजीरिया के एन.ए.एस.आर.डी.ए. के सदस्य शामिल होंगे। यह संयुक्त कार्य दल समय-सीमा के साथ कार्यान्वयन के साधनों सहित कार्य योजना को अंतिम रूप देगा।

प्रभाव

  • हस्ताक्षरित एम.ओ.यू. पृथ्वी की सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग), सैटलाइट संचार, सैटलाइट नेविगेशन, अंतरिक्ष विज्ञान और बाह्य अंतरिक्ष की खोज के क्षेत्र में नई अनुसंधान गतिविधियों और अनुप्रयोग सम्भावनाओं का पता लगाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से नाइजीरिया सरकार के साथ सहयोग और मानवता के लाभ के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के क्षेत्र में एक संयुक्त गतिविधि विकसित करने में सहायता मिलेगी। इस प्रकार, देश के सभी वर्गों और क्षेत्रों को लाभ प्राप्त हो सकेगा।

व्यय

  • पारस्परिक रूप से तय किये गए कार्यक्रम सहयोग के आधार पर पूरे किए जाएंगे। इस तरह की गतिविधियों के लिये वित्तपोषण की व्यवस्था प्रति कार्य के आधार पर हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा पारस्परिक रूप से तय की जाएगी।
  • इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत की जाने वाली संयुक्त गतिविधियों का वित्तपोषण, सम्बंधित हस्ताक्षरकर्ताओं के कानूनों एवं विनियमों के अनुसार किया जाएगा, जो इन उद्देश्यों के लिये आवंटित धन की उपलब्धता के अधीन होगा। 

भारत-ताइवान सम्बंध और चीन की आपत्ति

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विषय- भारत एवं इसके पड़ोसी सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

चर्चा में क्यों

हाल ही में, चीन ने भारत और ताइवान के मध्य किसी भी प्रकार के आधिकारिक आदान-प्रदान पर अपनी आपत्ति जताई है। पूर्व में भी भारत-ताइवान सम्बंधों पर चीन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आपत्ति जता चुका है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन की यह प्रतिक्रिया उन रिपोर्टों के जवाब में आई है, जिसमें भारत और ताइवान द्वारा व्यापार समझौते पर बातचीत के साथ सम्बंधों को आगे बढ़ाने की बात की गई थी।
    • चीन का मानना ​​है कि ‘वन चाइना प्रिंसिपल’ पर भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सर्वसम्मति है, अतः भारत सहित विश्व के अन्य देशों को इसका सम्मान करना चाहिये।
    • चीन ने भारत में हालिया अभियानों (पोस्टर और सोशल मीडिया) द्वारा ताइवान के "हैप्पी नेशनल डे" (10 अक्टूबर) पर ताइवान को बधाई देने और ताइवान के लिये देश या राष्ट्र जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर भी आपत्ति जताई थी।
    • चीन ने आगामी मालाबार नौसेना अभ्यास में भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ही ऑस्ट्रेलिया को शामिल किये जाने का भी विरोध किया है।

भारत-ताइवान सम्बंध

  • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक सम्बंध नहीं हैं। नगण्य राजनीतिक सम्बंधों के कारण भारत और ताइवान के बीच सहयोग के क्षेत्र सीमित ही हैं।
  • वर्ष 1995 से वर्ष 2014 के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 934 मिलियन डॉलर से बढ़कर 5.91 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।
  • प्रौद्योगिकी : वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच 30 से अधिक सरकारी वित्तपोषित संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ संचालित हो रही हैं।
    • अगस्त 2015 में, ताइवान स्थित फॉक्सकॉन, जो दुनिया के सबसे बड़े हार्डवेयर निर्माताओं में से एक है, ने भारत में $ 5 बिलियन के निवेश की घोषणा की थी।
    • भारत और ताइवान ने वर्ष 2018 में द्विपक्षीय निवेश समझौते (Bilateral Investment Agreement) पर हस्ताक्षर किये थे। विगत वर्षों में भारत-ताइवान व्यापार सम्बंधों का विस्तार हुआ है और ताइवान की कई कम्पनियाँ भारत में प्रमुख निवेशक भी हैं।
    • ताइवान विश्व में लम्बे समय से हाई-टेक हार्डवेयर निर्माण में अग्रणी है और भारत के ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, और स्मार्ट सिटी से जुड़े अभियानों में बहुत योगदान दे सकता है।
    • ताइवान की कृषि-प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी प्रौद्योगिकी भारत के कृषि क्षेत्र के लिये भी बहुत फायदेमंद हो सकती है।
  • दोनों पक्षों ने वर्ष 2010 में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक पारस्परिक डिग्री मान्यता समझौते के बाद शैक्षिक आदान-प्रदान का भी विस्तार किया है।

चुनौतियाँ:

  • वन चाइना पॉलिसी : भारत द्वारा ताइवान के साथ अपने द्विपक्षीय सम्बंधों को पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ाना फिलहाल मुश्किल है। वर्तमान में, दुनिया भर में लगभग 16 देशों ने ताइवान को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी हुई है, भारत इन 16 देशों में शामिल नहीं है ।
  • व्यापार और निवेश : दोनों देशों के बीच आर्थिक विनिमय अभी भी अपेक्षाकृत महत्त्वहीन ही है। भारत के साथ व्यापार में ताइवान का हिस्सा, ताइवान के वैश्विक व्यापार का मात्र 1% ही है।

आगे की राह

  • ताइवान ने चीन से जुड़े भौगोलिक-आर्थिक-राजनीतिक-सामयिक कारकों के अध्ययन पर भारी निवेश किया है, भारत को इस जानकारी का लाभ कूटनीतिक रूप में उठाना चाहिये।
  • संसाधन सम्पन्न भारत को ताइवान की तकनीक से लाभ मिल सकता है। उदाहरण के लिये, भारत में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक बांस संसाधन उपलब्ध हैं, जबकि ताइवान विश्व स्तरीय बांस चारकोल तकनीक (Bamboo Charcoal Technology) में अग्रणी है। इस तरह की तकनीक के साथ भारत अपने बांस संसाधनों का उपयोग उच्च मूल्यवर्धित वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये कर सकता है।
  • हाल ही में, ताइवान में नए दूत के रूप में सेवा करने के लिये एक वरिष्ठ राजनयिक की नियुक्ति के साथ भारत ने ताइवान के साथ राजनयिक सम्बंधों को आगे बढ़ाने के लिये अपनी वन-चाइना पॉलिसी (हालाँकि आधिकारिक तौर पर नहीं) में बदलाव का स्पष्ट संकेत दे दिया है।

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