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पेसा अधिनियम के 25 वर्ष 

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, पंचायती राज, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

हाल ही में, पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA ) के 25 वर्ष पूरे हुए। 

मुख्य बिंदु

  • पेसा अधिनियम के 25 वर्ष पूरे होने पर पंचायती राज मंत्रालय ने जनजातीय मामलों के  मंत्रालय और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के सहयोग से आज़ादी का अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में 'पंचायतों पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन' का आयोजन किया। 
  • उल्लेखनीय है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान 4,000 करोड़ रुपए था, जो वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर 7,500 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। 

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1995 में ‘भूरिया समिति’ की रिपोर्ट के आधार पर संसद ने पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 को 10 राज्यों में अधिसूचित अनुसूची-V के क्षेत्रों में कतिपय छूट के साथ संविधान के भाग-IX को विस्तार देने के लिये लागू किया। 
  • ये राज्य- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना हैं। राज्यों में पेसा के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये पंचायती राज मंत्रालय नोडल मंत्रालय है।
  • वर्तमान में छह राज्यों, यथा- आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना पेसा नियमों को अधिसूचित कर चुके हैं, जबकि शेष चार राज्य (छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा) जल्द ही पेसा नियम बनाकर उन्हें लागू करेंगे।

पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996

  • 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया। हालाँकि, इसमें अनुसूचित क्षेत्रों और विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया था।
  • इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये संविधान के भाग- IX के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 को 24 दिसंबर, 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया। यह जनजातीय लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप पंचायतों को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (GPDPs) को तैयार करते समय पंचायती राज और जनजातीय मामलों के मंत्रालय को जनजातीय समुदाय की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए आदिवासी समुदाय के विकास के लिये एक नए मॉडल की आवश्यकता है। वन संपदा के समुचित दोहन से भी आदिवासी वर्ग का सशक्तीकरण किया जा सकता है।

पेसा अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ

  • यह अधिनियम संविधान के भाग- IX में पंचायत से जुड़े प्रावधानों को कुछ संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करता है। यह अधिनियम जनजातीय समुदायों को स्वशासन का अधिकार प्रदान करता है।
  • इसका उद्देश्य सहयोगी लोकतंत्र के माध्यम से ग्राम प्रशासन स्थापित करना और ग्राम सभा को सभी विकास गतिविधियों का केंद्र बनाना है। इस अधिनियम में ग्राम सभा द्वारा जनजातीय समुदाय की परंपराओं एवं उनकी प्रथाओं व सांस्कृतिक पहचान के साथ-साथ सामुदायिक संसाधनों और विवाद समाधान के प्रथागत तरीकों की सुरक्षा व संरक्षण का भी प्रावधान है।
  • साथ ही, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये योजनाओं, कार्यक्रमों व परियोजनाओं को मंज़ूरी देना और गरीबी उन्मूलन एवं अन्य कार्यक्रमों के तहत लाभार्थियों की पहचान करने का कार्य भी ग्राम सभा का है।
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