चर्चा में क्यों
आदि शंकराचार्य की चार पंचधातु की प्रतिमाएं उत्तराखंड के केदारनाथ, बद्रीनाथ, उत्तरमान्य (ज्योतिर्मठ) में स्थापित की जाएंगी।

आदि शंकराचार्य : जीवन परिचय
- जन्म: 788 ई. (लगभग)
- मृत्यु: 820 ई. (लगभग), केरल के कुम्भकोणम में
- पिता: शिवगुरु
- माता: आर्यम्बा
- जन्म स्थान: कालडी गाँव, केरल
- संन्यास ग्रहण : 8 वर्ष की आयु में
- दर्शन: अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक
- आध्यात्मिक गुरु: गुरु गोविंद भगवत्पाद (प्रथम गुरु)
- महत्वपूर्ण कार्य
- वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता की व्याख्या की
- "अद्वैत वेदांत" (Non-dualism) का प्रतिपादन किया
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक यात्रा की और ज्ञान की परंपरा को फैलाया
- मठों की स्थापना
- देश की चार दिशाओं में चार मठ- श्रृंगेरी (दक्षिण), द्वारका (पश्चिम), पुरी (पूर्व) और बद्रीनाथ (उत्तर) स्थापित किए
- प्रमुख ग्रंथ
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- भज गोविन्दम
- आत्म शतकम
- सौंदर्य लहरी
- भगवद गीता भाष्य
- उपनिषदों पर भाष्य
- धार्मिक प्रभाव
- हिन्दू धर्म के अद्वैत दर्शन को लोकप्रिय बनाया
- बौद्ध और जैन धर्म के विरोध में उपदेश दिए
इसे भी जानिए!
अद्वैतवाद दर्शन के बारे में
- परिचय: इस दर्शन के अनुसार, "ब्रह्म सत्यं, जगत् मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः" अर्थात् ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, विश्व मिथ्या (असत्य या भ्रम) है, और जीव (आत्मा) वास्तव में ब्रह्म ही है। केवल एक ही वास्तविकता (ब्रह्म) है, जो निर्गुण (गुणरहित), निराकार, और सर्वव्यापी है।
- मोक्ष का मार्ग: आत्मज्ञान द्वारा माया का नाश और ब्रह्म से एकता का अनुभव।
- साधन: श्रवण (शास्त्रों का अध्ययन), मनन (चिंतन), और ध्यान।
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