भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली ‘आयुर्वेद’ को वैश्विक स्तर पर एकीकृत करने की दिशा में केंद्र सरकार ने प्रत्येक वर्ष 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया है। भगवान धन्वंतरी को हिंदू धर्म में चिकित्सा व आयुर्वेद का जनक माना जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान वे अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे।
आयुर्वेद दिवस से संबंधित प्रमुख तथ्य
- पूर्व तिथि : पूर्व में आयुर्वेद दिवस धनतेरस के दिन मनाया जाता था जो हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि (अक्तूबर-नवंबर के बीच) को आता है।
- वर्ष 2016 में आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध एवं होम्योपैथी) ने पहली बार धन्वंतरी जयंती को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। पहला आयुर्वेद दिवस 28 अक्तूबर, 2016 को मनाया गया था।
- समस्या : चूँकि धनतेरस की तिथि प्रतिवर्ष बदलती रहती थी, ऐसे में तिथि की अनिश्चितता के कारण राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आयोजन करना कठिन था।
- आयुष मंत्रालय के अनुसार आगामी दशक में धनतेरस की तिथि 15 अक्तूबर से 12 नवंबर के बीच बदलती रहेगी।
- इसके अलावा प्रचार एवं जनसंपर्क अभियानों व अंतरराष्ट्रीय भागीदारी और अनुसंधान सहयोग में असंगतियां थीं।
- नवीन परिवर्तन : केंद्र सरकार ने 23 मार्च, 2025 को जारी अधिसूचना के माध्यम से घोषणा की कि अब प्रतिवर्ष 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा।
- 23 सितंबर चुनने का कारण
- यह शरद विषुव (Autumnal Equinox) की तिथि है जब दिन व रात लगभग बराबर होते हैं।
- यह प्राकृतिक संतुलन एवं समरसता का प्रतीक है जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों से मेल खाता है।
- यह तिथि स्थिर व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त खगोलीय घटना पर आधारित है जिससे वैश्विक आयोजनों में एकरूपता लाई जा सकेगी।
- महत्व : यह परिवर्तन भारतीय परंपरा को वैज्ञानिक आधार व वैश्विक संदर्भ से जोड़ता है। यह निर्णय भारत की सॉफ्ट पावर, स्वास्थ्य कूटनीति एवं पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के पुनरुद्धार में सहायक सिद्ध होगा।