(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन व कार्य; सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों की संख्या 5 करोड़ से अधिक हो चुकी है जो न्याय वितरण में देरी का प्रमुख कारण है। यह स्थिति नागरिकों के विश्वास को कमजोर करती है और ‘न्याय में देरी, न्याय से वंचित’ को चरितार्थ करती है। राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार 31 जुलाई, 2025 तक निचली अदालतों में 4.6 करोड़, उच्च न्यायालयों में 63.3 लाख और सर्वोच्च न्यायालय में 86,723 मामले लंबित हैं।
न्यायपालिका में लंबित मामले: एक अवलोकन
- कुल लंबित मामले : 5 करोड़ से अधिक, जिसमें 85% से अधिक मामले निचली अदालतों में
- मामले के प्रकार : सिविल (जैसे- संपत्ति, परिवार, अनुबंध विवाद) और आपराधिक (राज्य के खिलाफ अपराध)
- दीर्घकालिक लंबित मामले : जिला एवं उच्च न्यायालयों में 1.8 लाख से अधिक मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित
- सरकार की भूमिका : लगभग 50% लंबित मामले सरकार द्वारा प्रायोजित, जो सर्वाधिक संख्या वाला वादकारी है।
विभिन्न स्तरों पर लंबित मामले
- ग्राम न्यायालय : दिसंबर 2020 से जून 2025 तक 5.39 लाख मामले दर्ज, 4.11 लाख निपटाए, 1.28 लाख लंबित
- निचली अदालतें (जिला एवं अधीनस्थ) : 4.6 करोड़ मामले लंबित, जिनमें 3.06 करोड़ आपराधिक और 1.08 करोड़ सिविल
- उच्च न्यायालय : 63.3 लाख मामले लंबित, जिनमें 42 लाख सिविल और 17 लाख आपराधिक
- सर्वोच्च न्यायालय : 86,723 मामले लंबित, जिसमें 79.5% आपराधिक मामले एक वर्ष में निपटाए जाते हैं।

मामलों में विलंब के कारण
- न्यायाधीशों की कमी : भारत में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 15 न्यायाधीश हैं जबकि वर्ष 1987 की विधि आयोग की सिफारिश 50 न्यायाधीशों की थी।
- सरकारी मुकदमेबाजी : सरकार द्वारा प्रायोजित 50% मामले
- भूमि विवाद : 20% लंबित मामले भूमि एवं संपत्ति से संबंधित, जो सिविल मामलों का 66% है।
- प्रक्रियात्मक देरी : बार-बार स्थगन, साक्ष्य जुटाने में देरी और गवाहों की अनुपलब्धता
- बुनियादी ढाँचे की कमी : कोर्टरूम, कर्मचारी एवं तकनीकी संसाधनों की कमी
- कानूनी जागरूकता : बढ़ती जागरूकता से मामलों की संख्या में वृद्धि
न्याय प्रदान करने की समय-सीमा
भारतीय न्यायालयों में न्याय प्रदान करने की समय-सीमा के विश्लेषण से न्यायालय के स्तर और केस प्रकारों में भारी असमानताएँ सामने आती हैं, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दर्शाया गया है-

‘न्याय में देरी, न्याय से वंचित’ होने के समान
- लंबित मामले नागरिकों के लिए वित्तीय एवं मनोवैज्ञानिक बोझ बनते हैं जिससे न्यायपालिका में विश्वास कम होता है।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे ‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ कहा है जो लोगों को अदालतों से दूर रखता और उसके प्रति भय उत्पन्न करता है।
- अधिक देरी से सामाजिक असमानता बढ़ती है क्योंकि गरीब एवं वंचित समुदाय सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
सरकार एवं न्यायपालिका की विभिन्न पहल
- फास्ट ट्रैक कोर्ट (FTC) : 865 FTC संचालित हैं जिसमें 76.57 लाख मामले निपटाए गए और 14.38 लाख लंबित हैं।
- ग्राम न्यायालय : 331 संचालित, 4.11 लाख मामले निपटाए गए।
- राष्ट्रीय लोक अदालत : वर्ष 2021 से मार्च 2025 तक 27.5 करोड़ मामले निपटाए गया, जिसमें 22.21 करोड़ प्री-लिटिगेशन थे।
- ई-कोर्ट परियोजना : डिजिटल सुनवाई और केस प्रबंधन के लिए NJDG एवं NSTEP जैसे उपकरण
- वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) : मध्यस्थता, पंचाट एवं लोक अदालतों को बढ़ावा
- अधिकारी नियुक्ति : सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरने के लिए सरकार का सहयोग
न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियाँ
- न्यायिक रिक्तियाँ : न्यायाधीशों के कुल 26,927 स्वीकृत पदों में से 5,665 रिक्त हैं, जिससे कार्यभार बढ़ता है।
- प्रशासनिक बाधाएँ : न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी एवं राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है।
- जटिल मामले : कुछ मामले तकनीकी रूप से जटिल होते हैं जिन्हें निपटाने में समय लगता है।
- कम बजट : न्यायपालिका के लिए जी.डी.पी. का केवल 0.08-0.09% आवंटन होता है।
- प्रतिभा का अभाव : निचली अदालतों में कम वेतन और करियर में प्रगति की कमी से प्रतिभाशाली न्यायाधीशों का पलायन होता है।
आगे की राह
- न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना : प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 न्यायाधीशों का लक्ष्य प्राप्त करना
- प्रक्रियात्मक सुधार : IPC एवं CrPC में संशोधन, स्थगन सीमित करना और समयसीमा लागू करना
- ADR को अनिवार्य करना : सिविल और वाणिज्यिक विवादों के लिए मध्यस्थता व पंचाट की अनिवार्यता
- बुनियादी ढांचे में निवेश : AI-आधारित केस ट्रैकिंग, डिजिटल रिकॉर्ड और क्लाउड समाधान
- सरकारी मुकदमों पर नियंत्रण : फर्जी मामलों पर जुर्माना एवं विभागीय समाधान को बढ़ावा
- राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI) : न्यायिक बुनियादी ढांचे के लिए एक समर्पित निकाय
- न्यायाधीशों का वेतन एवं प्रशिक्षण : बेहतर वेतन और करियर प्रगति के साथ प्रशिक्षण
निष्कर्ष
भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों की समस्या एक जटिल एवं बहुआयामी चुनौती है जो सामाजिक-आर्थिक असमानता को बढ़ाती है और नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करती है। सरकार एवं न्यायपालिका के संयुक्त प्रयासों, जैसे- ई-कोर्ट, ADR एवं फास्ट ट्रैक कोर्ट ने प्रगति दिखाई है किंतु दीर्घकालिक समाधान के लिए न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना, प्रक्रियाओं को सरल बनाना और तकनीकी नवाचार अपनाना आवश्यक है। समयबद्ध एवं सुलभ न्याय ही भारत में कानून के शासन को मजबूत कर सकता है।