केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) 4 दिसंबर 2025 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली से 100-दिवसीय गहन जागरूकता अभियान का औपचारिक शुभारंभ कर रहा है। यह अभियान “Bal Vivah Mukt Bharat (Child Marriage Free Bharat)” पहल के एक वर्ष पूरे होने पर शुरू किया जा रहा है और इसका औपचारिक शुद्धारम्भ 27 नवम्बर 2024 को हुआ अभियान के वर्षगांठ के संदर्भ में हो रहा है।

अभियान अवधि, स्वरूप और उद्देश्य
- अवधि: 27 नवम्बर 2025 — 8 मार्च 2026 के भीतर 100 दिनों का गहन अभियान (लॉन्च इवेंट 4 दिसंबर 2025 से)।
- मुख्य उद्देश्य: बाल विवाह के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी जनबोध बढ़ाना, नागरिकों/संस्थाओं/सामुदायिक नेताओं को संगठित करना तथा स्थानीय इकाइयों (ग्राम पंचायत/वार्ड) को बाल विवाह-मुक्त क्षेत्र घोषित करने की सक्रिय पहल के लिए प्रेरित करना।
अभियान की कार्य-योजना — तीन चरणों में रणनीति
- प्रथम चरण — शैक्षिक संस्थान केंद्रित गतिविधियाँ स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में वाद-विवाद, निबंध, संवाद सत्र और शपथ ग्रहण द्वारा किशोरों व शैक्षिक समुदाय में जागरूकता बढ़ाना।
- द्वितीय चरण — सामाजिक नेतृत्व को मान्यता व संलग्न करना धार्मिक नेतागण, सामुदायिक प्रभावक और विवाह सेवा प्रदाताओं को साथ लाकर बाल अधिकार व संरक्षण संबंधी संदेश प्रसारित करना।
- तृतीय चरण — स्थानीय शासन-एकाइयों का सशक्तिकरण ग्राम पंचायतें और नगरपालिका वार्ड अपने-अपने क्षेत्र को बाल विवाह मुक्त घोषित करने वाले प्रस्ताव पारित करने के लिए प्रोत्साहित किए जाएंगे।
लॉन्च प्रोग्राम में National Pledge to End Child Marriage, देशभर की परिवर्तन कथाओं पर आधारित विशेष फिल्म तथा फ्रंटलाइन वर्कर्स के अनुभवों का प्रदर्शन होगा।
‘Bal Vivah Mukt Bharat’ पहल का इतिहास व प्रासंगिकता
- MoWCD ने यह राष्ट्रीय अभियान 27 नवम्बर 2024 को शुरू किया था ताकि बाल विवाह उन्मूलन को एक व्यापक और समन्वित मोमेंटम मिले।
- वर्ष -2024–25 में शुरू हुई यह पहल अब एक वर्ष में प्रवेश कर चुकी है और 100-दिवसीय अभियान इस मिशन को स्थानीय से राष्ट्रीय स्तर तक और मजबूत करने का अवसर है।
नीति-आधार और कानूनी ढांचा
भारत में बाल विवाह अवैध है: Prohibition of Child Marriage Act, 2006 (अनुशासित कानूनी ढांचा) — यह कानून नाबालिगों के विवाह पर रोक लगाता है और उल्लंघन पर दंड व्यवस्था रखता है।
- अभियान का लक्ष्य सिर्फ कानूनी अनुपालन नहीं, बल्कि सामाजिक मान्यताओं, आर्थिक कारणों और शिक्षा-सुविधाओं के समग्र सुधार के ज़रिये व्यवहारिक परिवर्तन लाना है।
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बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 Prohibition of Child Marriage Act, 2006 (PCMA, 2006)
यह अधिनियम बाल विवाह को रोकने और उनसे होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के लिए बनाया गया है। यह लड़कियों और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित करता है और बाल विवाह कराने या उसमें भाग लेने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान करता है।
विवाह की न्यूनतम आयु:
- लड़कियों के लिए: 18 वर्ष
- लड़कों के लिए: 21 वर्ष
बाल विवाह की वैधता:
- अधिनियम के अनुसार, यदि कोई विवाह उपरोक्त आयु से कम उम्र में होता है, तो वह अवैध (voidable) माना जाएगा।
- इसका मतलब यह है कि बच्चा जब वयस्क हो जाए (लड़की के लिए 18 वर्ष और लड़के के लिए 21 वर्ष), तो वह या उसका अभिभावक विवाह को रद्द करने की मांग कर सकता है।
प्रमुख प्रावधान:
- प्रदायगी और दंड:
- किसी बाल विवाह में शामिल होने वाले व्यक्तियों (विवाह कराने वाले, माता-पिता, अभिभावक आदि) के लिए:
- जेल की सजा: 2 साल तक
- जुर्माना: ₹1 लाख तक
- बाल विवाह रोकने के उपाय:
- अधिनियम के तहत Child Marriage Prohibition Officer (CMPO) नियुक्त किए जाते हैं।
- CMPO को बाल विवाह रोकने, विवाह की जानकारी इकट्ठा करने और संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई के लिए रिपोर्ट करने का अधिकार है।
- महिला और पुरुष की सुरक्षा:
- अधिनियम में यह प्रावधान है कि बाल विवाह में वर और वधू के साथ किसी तरह का दुष्कर्य करने पर अलग से दंड का प्रावधान होगा।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:
- यह अधिनियम धारा 11 और 12 के तहत विवाह को रोकने और दंड देने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- बाल विवाह में उपयोगी और सशक्त प्रावधान यह हैं कि विवाह की वैधता केवल रद्द नहीं बल्कि दंडनीय भी है।
- यह अधिनियम Child Labour (Prohibition and Regulation) Act, 1986, Indian Penal Code और Hindu Marriage Act, 1955 के प्रावधानों के साथ सामंजस्य में काम करता है।
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संभावित प्रभाव और लाभ
- किशोरी शिक्षा में सुधार — स्कूल-आधारित गतिविधियाँ अभिभावकों व बच्चों दोनों में भ्रांतियों को दूर कर सकती हैं।
- सामुदायिक स्वामित्व — धार्मिक और स्थानीय प्रभावकों को जोड़कर सामाजिक ताने-बाने में परिवर्तन संभव है।
- स्थानीय संवहनीयता — पंचायत/वार्ड स्तर पर ‘बाल विवाह मुक्त’ घोषणाएँ ठोस स्थानीय प्रतिबद्धता का संकेत होंगी।
- डेटा व रिपोर्टिंग में बढ़ोतरी — बड़े अभियान से incidence reporting और निगरानी बेहतर होने की संभावना रहेगी।
चुनौतियाँ और सीमाएँ (वास्तविकता का आकलन)
- आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों का जड़ तक संपर्क करना कठिन है — गरीबी, लड़कियों की शिक्षा में कमी, और पारिवारिक दबाव जैसी जटिल वजहों को केवल 100 दिनों में बदलना सीमित प्रभाव रखता है।
- निगरानी और अनुपालन (Enforcement) की खामियाँ — अधिनियम के बावजूद मामलों का छुपना व सामाजिक स्वीकार्यता रुकावट बन सकती है।
- प्लान की सस्टेनेबिलिटी — जागरूकता अभियान का प्रभाव तभी दीर्घकालिक होगा जब इसे सामाजिक-आर्थिक नीतियों (स्कॉलरशिप, आर्थिक सहायता, बाल देखभाल सेवाएँ) से जोड़ा जाए।
नीतिगत सिफारिशें
- लंबी अवधि की समेकित नीति — शिक्षा (विशेषकर किशोरी शिक्षा), आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से बचाव।
- लक्षित हस्तक्षेप(Targeted Interventions) - उच्च-जोखिम जिलों में केंद्रित योजनाएं (सशर्त नकद हस्तांतरण, किशोर-अनुकूल स्वास्थ्य सेवाएं) (focused schemes (conditional cash transfers, adolescent-friendly health services))।
- समुदाय-नेतृत्व वाली निगरानी (Community-led Monitoring) — ग्राम स्तरीय समिति/महिला समूहों को monitoring एवं early-warning रोल देना।
- अंतर-विभागीय अभिसरण (Inter-departmental Convergence) — शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला व बाल विकास, श्रम और स्थानीय सरकारों के बीच संयुक्त अभियान।
- डेटा-संचालित दृष्टिकोण (Data-driven approach) — घटना-रिपोर्टिंग, सर्वे और outcome evaluation के माध्यम से अभियान की प्रभावशीलता मापना।