(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 31 जुलाई, 2025 को भारत की नीली अर्थव्यवस्था पर एक श्वेत पत्र जारी किया।
नीली अर्थव्यवस्था
- नीली अर्थव्यवस्था समुद्र, तटों एवं अन्य जल संसाधनों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों को संदर्भित करती है जो सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण व आर्थिक वृद्धि को संतुलित करती है।
- इसमें मत्स्य पालन, समुद्री शैवाल की खेती, बंदरगाह संचालन, पोत-भंजन (जहाज को तोड़ना), समुद्री पर्यटन एवं समुद्री ऊर्जा जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
नीली अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र के बारे में
- शीर्षक : ‘भारत की नीली अर्थव्यवस्था का रूपांतरण: निवेश, नवाचार एवं सतत विकास’
- उद्देश्य : समुद्री संसाधनों की क्षमता को उजागर करना, नीली अवसंरचना, अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश को बढ़ावा देना
- रणनीति :
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और लक्षित वित्तीय तंत्र को प्रोत्साहन
- वर्ष 2035 तक का रोडमैप, जिसमें व्यवहार्य परियोजनाओं को प्राथमिकता
- निवेशकों का विश्वास बढ़ाकर नीली अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय विकास का इंजन बनाना
- सहयोग : 25 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, तटीय राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ सहयोग
विशिष्ट मॉडल
श्वेत पत्र में आर्थिक विकास एवं पर्यावरणीय संधारणीयता को प्रदर्शित करने वाले विशिष्ट मॉडलों की पहचान की गई है-
- ओडिशा में समुद्री शैवाल की खेती
- समुदाय-आधारित पहल, जो मछुआरों को वैकल्पिक आजीविका प्रदान करती है।
- 10,000+ तटीय परिवारों को पूरक आय।
- घुली हुई CO2 को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन और जल गुणवत्ता में सुधार।
- कोच्चि का स्मार्ट बंदरगाह
- डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी से परिचालन दक्षता में वृद्धि।
- जहाजों के प्रतीक्षा समय में कमी और संसाधन उपयोग में सुधार।
- पर्यावरणीय निगरानी के माध्यम से स्थिरता।
- अलांग, गुजरात में जहाज-भंजन
- हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के अनुरूप।
- इस्पात और गैर-लौह धातुओं की पुनर्प्राप्ति।
- खतरनाक अपशिष्ट का प्रबंधन और पर्यावरणीय प्रभाव न्यूनतम।
- अंडमान एवं निकोबार में सतत पर्यटन
- पर्यावरण अनुकूल बुनियादी ढांचा और समुदाय-नेतृत्व वाला पर्यटन।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) से प्रवाल भित्तियों का संरक्षण।
- राजस्व एवं नौकरियों में वृद्धि, कचरे में कमी।
भारत में नीली अर्थव्यवस्था
- भारत की 7,500 किमी. लंबी तटरेखा और 2.4 मिलियन वर्ग किमी. का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) इसे नीली अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त बनाता है।
- मत्स्य पालन, समुद्री व्यापार, पर्यटन एवं जहाज निर्माण जैसे क्षेत्रों में योगदान।
- वर्ष 2035 तक नीली अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय जी.डी.पी. में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता।
सरकार की पहल
- सागरमाला कार्यक्रम : बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और तटीय क्षेत्रों का विकास
- राष्ट्रीय मत्स्य नीति, 2020 : मत्स्य पालन एवं समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा
- डीप ओशन मिशन : समुद्री अनुसंधान और खनिज दोहन
- स्मार्ट पोर्ट्स और डिजिटल परिवर्तन : कोच्चि एवं अन्य बंदरगाहों में डिजिटल तकनीक
- पर्यावरणीय संरक्षण : समुद्री संरक्षित क्षेत्रों और एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध
चुनौतियाँ
- समुद्री प्रदूषण, विशेष रूप से प्लास्टिक एवं औद्योगिक कचरा
- मछली भंडार में कमी से मछुआरों की आजीविका पर प्रभाव
- सीमित वित्तीय निवेश और तकनीकी बुनियादी ढांचा की कमी
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, जैसे- समुद्र स्तर में वृद्धि और प्रवाल भित्तियों का क्षरण
- विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय की कमी
आगे की राह
- नीली अर्थव्यवस्था के लिए निवेश को बढ़ावा देना और नवाचार को प्रोत्साहन
- समुद्री संरक्षण और सतत प्रथाओं को मजबूत करना
- तटीय समुदायों को प्रशिक्षण और वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना
- डिजिटल प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में निवेश बढ़ाना
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बनाकर वैश्विक नीली अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति मजबूत करना