(प्रारंभिक परीक्षा: भारत एवं विश्व का भूगोल) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: खगोलीय घटनाएँ) |
संदर्भ
7-8 सितंबर की रात्रि में भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में चंद्रग्रहण के दौरान ‘ब्लड मून’ (रक्त चंद्र) की खगोलीय परिघटना देखी गई। यह पूर्ण चंद्रग्रहण पूरे एशिया, यूरोप, अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में दिखाई दिया।
ब्लड मून के बारे में
- पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य एवं चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है, जिससे चंद्र सतह पर सूर्य की रोशनी सीधी नहीं पड़ती है।
- हालाँकि, इस दौरान सूर्य का संपूर्ण प्रकाश अवरुद्ध नहीं होता है।
- इस दौरान केवल नीला प्रकाश फ़िल्टर हो जाता है जबकि लाल प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा प्रकीर्णित हो जाता है, जिससे चंद्रमा लाल रंग का दिखाई पड़ता है।
- यह रेले प्रकीर्णन नामक एक भौतिक प्रभाव का परिणाम है। इस दौरान चंद्रमा का सटीक रंग वातावरण में धूल एवं धुएं के स्तर पर निर्भर करता है।
- पूर्ण चंद्रग्रहण दुर्लभ होते हैं। सामान्यतया तीन चंद्रग्रहण में से एक पूर्ण चंद्रग्रहण की परिघटना होती है। लगातार चार पूर्ण चन्द्रग्रहणों (Lunar Tetrad) को ‘टयूड’ भी कहा जाता है।
- पूर्ण चंद्रग्रहण श्रृंखला का पहला चंद्रग्रहण 14-15 अप्रैल, 2014; दूसरा 7-8 अक्तूबर, 2014 एवं तीसरा 4 अप्रैल, 2015 को हुआ। 4 अप्रैल, 2015 को सदी का सबसे छोटा पूर्ण चंद्रग्रहण लगा था।
रेले प्रकीर्णन के बारे में
- ब्रिटिश नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन विलियम स्ट्रट (लॉर्ड रेले) ने 19वीं सदी में इस घटना की व्याख्या की थी।
- इसके अनुसार जब प्रकाश अपनी तरंगदैर्घ्य से छोटे कणों के साथ क्रिया करता है, तो प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता उसकी तरंगदैर्घ्य के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
- यही कारण है कि पृथ्वी का आकाश नीला दिखाई देता है क्योंकि दृश्य प्रकाश में इसकी तरंगदैर्घ्य सबसे कम होती है।
- हालाँकि, ब्लड मून के दौरान नीला प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जबकि लाल प्रकाश चंद्रमा की ओर अपवर्तित हो जाता है।
खगोलीय रूप से चंद्रमा के अन्य रूप
सुपर मून
- चंद्रमा एवं पृथ्वी के बीच की दूरी औसतन 3,84,000 किमी. है। चंद्रमा परवलयाकार कक्ष में पृथ्वी की परिक्रमा करता है जिससे पृथ्वी एवं चंद्रमा की दूरी बदलती रहती है।
- ‘सुपर मून’ वह स्थिति है जब चंद्रमा पृथ्वी से निकटतम होता है। इसे ‘पेरिज फुल मून’ भी कहते हैं। इसमें चंद्रमा 14% ज्यादा बड़ा एवं 30% अधिक चमकीला दिखाई देता है।
- 27 सितंबर, 2015 को विश्व के अनेक भागों में सुपर मून चंद्रग्रहण की परिघटना देखी गई, जिसमें सुपर मून व चंद्रग्रहण दोनों घटनाएँ एक साथ घटित हुई। ऐसा सन् 1982 के बाद पहली बार हुआ।
ब्लू मून
- एक कैलेन्डर माह में जब दो पूर्णिमा होती हैं तो दूसरी पूर्णिमा के चाँद को ‘ब्लू मून’ कहा जाता है। इसका नीले रंग से कोई संबंध नहीं है। वस्तुतः इसका मुख्य कारण दो पूर्णिमा के बीच के अंतराल का 31 दिनों से कम होना है। ऐसा हर दो-तीन वर्ष पर होता है।
- जुलाई 2015 में ब्लू मून की स्थिति देखी गई। जब किसी वर्ष विशेष में दो या अधिक माह ब्लू मून के होते हैं, तो उसे ब्लू मून ईयर कहा जाता है। वर्ष 2018 ‘ब्लू मून ईयर’ था।
- 19 अगस्त, 2024 को ब्लू मून की परिघटना एक सुपर ब्लू मून परिघटना थी। इस दिन फुल मून (पूर्णिमा), सुपरमून एवं ब्लू मून की तीनों परिघटना एक साथ देखी गई। इसलिए इसे ‘सुपर ब्लू मून’ या ‘ब्लू सुपरमून’ भी कह सकते हैं।
अमावस्या एवं बालचंद्र
जिस रात्रि को चंद्रमा पूर्ण चक्रीय/गोलाकार दिखाई देता है, उसको पूर्णिमा कहते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक रात्रि को चंद्रमा का चमकीला भाग घटता चला जाता है। 15वें दिन चंद्रमा दिखाई नहीं पड़ता है। इस दिन को अमावस्या (New Moon) कहते हैं। अगले दिन चंद्रमा का एक छोटा भाग दिखाई देता है जिसे ‘बालचंद्र’ कहते हैं।