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COP 30: जीवाश्म ईंधन रोडमैप एवं वैश्विक सहमति का अभाव

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे; पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित COP 30 के अंतिम दिन एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया, जब नए ड्राफ्ट टेक्स्ट में फॉसिल फ्यूल फेज़-आउट (चरणबद्ध तरीके से जीवाश्म ईंधन की समाप्ति) के रोडमैप का कोई उल्लेख नहीं किया गया। 29 देशों के समूह, विशेषकर छोटे द्वीपीय राष्ट्रों और यूरोपीय देशों ने इस प्रस्ताव को तुरंत खारिज कर दिया। इससे सम्मेलन गंभीर संकट में आ गया और वार्ताएँ अनिश्चितता में फँस गईं।

COP 30 के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC) का 30वाँ संस्करण है जो 10 से 21 नवंबर, 2025 तक ब्राजील के बेलेम में आयोजित किया गया।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लिए सामूहिक कदम तय करना है।
  • प्रत्येक COP बैठक एक ‘कवर टेक्स्ट’ जारी करती है जो सभी देशों द्वारा सहमति से स्वीकृत राजनीतिक घोषणा मानी जाती है।
  • COP 30 की अध्यक्षता ब्राज़ील के राजनयिक André Corrêa do Lago ने की हैं।

प्रमुख परिणाम

  • बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान: 13 नवंबर को स्वास्थ्य दिवस पर लॉन्च किया गया, जो जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर केंद्रित है।
  • ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी (TFFF): यह ब्राजील की मुख्य उपलब्धि रही, जो उष्णकटिबंधीय वनों की रक्षा के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने का प्रयास है।
  • बाकू टू बेलेम रोडमैप: COP 29 से आगे बढ़ते हुए, विकासशील देशों के लिए वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन डॉलर जलवायु वित्त जुटाने का लक्ष्य है। इसमें सार्वजनिक और निजी स्रोतों से फंडिंग को बढ़ावा दिया गया।
  • जेंडर एक्शन प्लान: यह अतिरिक्त मुद्दों पर चर्चा के तहत महिलाओं एवं लिंग समानता को जलवायु कार्रवाई में एकीकृत करने का फ्रेमवर्क है।

बेलेम घोषणापत्र: अंतिम ड्राफ्ट के प्रमुख बिंदु

  1. फॉसिल फ्यूल फेज़-आउट का उल्लेख नहीं किया गया।
  2. क्लाइमेट फाइनेंस पर दो-वर्षीय कार्यक्रम किंतु कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं।
  3. CBAM जैसे व्यापारिक उपायों पर चर्चा जारी रखने का प्रस्ताव, किंतु कोई निर्णय नहीं।
  4. 1.5°C लक्ष्य के लिए अधिक महत्वाकांक्षा पर सामान्य टिप्पणी, किंतु स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं।
  5. अडॉप्टेशन फाइनेंस को तीन गुना करने का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं।
  6. पारदर्शिता बढ़ाने पर कमजोर टिप्पणी, कोई नियम निर्धारित नहीं।

विफलता के प्रमुख कारण

  • जीवाश्म ईंधन समाप्ति के रोडमैप का अभाव
  • अन्य सभी विवादित मुद्दों पर भी भाषा की अस्पष्टता 
  • वित्त पर ठोस कदमों की अनुपस्थिति
  • COP की सर्वसहमति पद्धति के कारण महत्त्वाकांक्षी विकल्पों को वीटो द्वारा हटाया जाना
  • विकसित एवं विकासशील देशों के हितों का टकराव
  • विश्वसनीय COP परिणाम के लिए न्यूनतम मानकों को भी पूरा न करना
  • कोलंबिया, यूरोपीय देश और छोटे द्वीपीय राष्ट्र सर्वाधिक नाराज़ दिखाई दिए।

भारत का दृष्टिकोण

भारत की मुख्य चिंताएँ दो मुद्दों पर केंद्रित थीं :

  1. वित्त आर्टिकल 9.1 का पूर्ण कार्यान्वयन
    • भारत का तर्क है कि विकसित देशों ने अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा नहीं किया।
    • विकासशील देशों को ठोस और गारंटीशुदा वित्त चाहिए।
  2. CBAM जैसे व्यापारिक उपायों का विरोध
    • भारत और चीन का कहना है कि CBAM जलवायु कार्रवाई के नाम पर छिपे हुए भेदभावपूर्ण व एकतरफा व्यापारिक उपाय हैं।
    • इससे विकासशील देशों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
  • भारत ने जोर दिया कि:
    • जलवायु कार्रवाई समानता और न्यायसंगतता पर आधारित होनी चाहिए।
    • ‘नेट-ज़ीरो’ का भार विकासशील देशों पर नहीं डाला जा सकता है।
    • विकसित देशों को पहले अपने दायित्व पूरे करने चाहिए।

भविष्य की चुनौतियाँ

  • जीवाश्म ईंधन फेज़-आउट पर वैश्विक सहमति का अभाव
  • वित्तीय दायित्वों पर विकसित देशों की अनिच्छा
  • व्यापारिक उपायों (जैसे- CBAM) से उभरते वैश्विक मतभेद
  • सर्वसहमति पद्धति का कठिन होना, जैसे- एक देश की असहमति से भी प्रक्रिया पर विराम लग जाना 
  • 1.5 °C लक्ष्य को पाने के लिए समय बहुत कम होना 
  • फैसलों के ‘अस्पष्ट’ रहने के जोखिम से भविष्य में क्रियान्वयन पर प्रभाव पड़ने की संभावना 

आगे की राह

  • स्पष्ट एवं समयबद्ध ‘जीवाश्म ईंधन फेज़-आउट रोडमैप’ तैयार करना
  • विकासशील देशों के लिए गारंटीशुदा और पर्याप्त जलवायु वित्त उपलब्ध कराना
  • CBAM जैसे उपायों पर वैश्विक नियम बनाना, ताकि व्यापार में भेदभाव न हो
  • सर्वसहमति मॉडल में सुधार, ताकि वीटो के कारण महत्त्वाकांक्षा कम न हो
  • अडॉप्टेशन और लॉस-एंड-डैमेज फंडिंग को मजबूत करना
  • विकासशील देशों की जरूरतों और क्षमताओं का सम्मान करते हुए संतुलित जलवायु नीति बनाना
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