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रोगाणुरोधी प्रतिरोध की बढ़ती चिंताएँ

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 ; सामाजिक न्याय : स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

द लांसेट में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट, ‘बैक्टीरियल रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Bacterial Antimicrobial resistance) का वैश्विक भार’ पहली प्रतितथ्यात्मक विश्लेषण के विस्तृत अध्ययन पर आधारित है। इसमें ऐसे रोगजनकों और रोगजनक-दवा संयोजनों की भी पहचान की गई है, जो इस तरह के प्रतिरोध का कारण बनते हैं।

रोगाणुरोधी (Antimicrobial) : यह एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीपैरासिटिक्स सहित ऐसी दवाएँ हैं जिनका उपयोग मनुष्यों, जानवरों और पौधों में संक्रमण को रोकने तथा उनका इलाज करने के लिये किया जाता है। 

बैक्टीरियल रोगाणुरोधी प्रतिरोध

बैक्टीरिया जनित रोगों के उपचार में प्रयुक्त दवाओं के अत्यधिक सेवन से रोगजनक जीवाणुओं में विकसित होने वाली प्रतिरोध क्षमता को बैक्टीरियल रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहते हैं। इसके कारण बैक्टीरिया जनित संक्रमण के इलाज में प्रयुक्त दवाएँ कम प्रभावी या अप्रभावी हो जाती हैं तथा संक्रमण का इलाज करना कठिन या असंभव हो जाता है। इस प्रकार गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

कारण

यह एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग, काउंटर पर एंटीबायोटिक दवाओं की सहज उपलब्धता, स्वच्छता की खराब स्थिति, खेती एवं पोल्ट्री उद्योग में रोगाणुरोधी रसायनों का उपयोग, टीकों एवं नए एंटीबायोटिक दवाओं की कमी और अस्पतालों में खराब संक्रमण नियंत्रण उपायों के कारण होता है। 

भयावह स्थिति

  • इसकी गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे मानवता के लिये 10 शीर्ष सार्वजानिक स्वास्थ्य संकटों में शामिल किया है। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2018 में लगभग 5 लाख टीबी ग्रस्त रोगियों में रिफैम्पिसिन (टीबी की दवा) के प्रति प्रतिरोध देखा गया। इन मामलों में अधिकांश रोगियों में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (MDR-TB) के मामले देखे गए। वैश्विक स्तर पर गुणवत्तायुक्त एंटी-माइक्रोबियल दवाओं की अनुपलब्धता इस समस्या को और जटिल बना देती है।
  • द लांसेट की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में बैक्टीरियल ए.एम.आर. से लगभग 49.5 लाख मृत्यु हुईं। हालाँकि, मौतों के सटीक आँकड़े उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, किंतु मृत्यु-दर और रुग्णता की खतरनाक प्रकृति संदेह से परे है।

उठाए गए कदम

  • वर्ष 2008 में भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की एक शृंखला के लिये बैक्टीरिया को प्रतिरोधी बनाने वाले NDM1 एंजाइम को खोजा गया, जिसने तत्काल कार्रवाई के लिये एक प्रेरक के रूप में कार्य किया। तदुपरांत वर्ष 2010 में एक कार्य समिति गठित की गई और वर्ष 2011 में एक राष्ट्रीय कार्यनीति भी घोषित की गई।
  • वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध (ए.एम.आर.) पर वैश्विक कार्यनीति (GAP) को लागू किया। इसके बाद वर्ष 2017 में भारत ने अपनी ए.एम.आर. राष्ट्रीय कार्य योजना को प्रस्तुत कर इसके कार्यान्वयन के लिये एक टास्क फोर्स की घोषणा की। इस कार्यनीति के तहत 6 रणनीतिक प्राथमिकताएँ सुनिश्चित की गईं।

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  • किंतु, गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2019 तक केवल केरल और मध्य प्रदेश ने ही राज्य कार्य योजनाओं को शुरू किया था। इसमें अब तक कोई व्यापक प्रगति नहीं हुई है। वर्तमान में 11 राज्य अपनी कार्य योजना तैयार करने के चरण में हैं।
  • जुलाई 2019 से पोल्ट्री, एक्वा फार्मिंग और एनिमल फीड सप्लीमेंट सेक्टर में कॉलिस्टिन पर प्रतिबंध को ए.एम.आर. चुनौती का मुकाबला करने में एक मज़बूत पहल माना गया।

आगे की राह

  • निस्संदेह ए.एम.आर. मानवता के सम्मुख एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि समाधान केवल विज्ञान के क्षेत्र में नहीं हैं, जहाँ वैज्ञानिक समुदाय समाधान ढूँढ़ता हैइसके लिये सरकारों की जिम्मेदारी निर्धारित करनी होगी, जिसका प्रमुख उद्देश्य नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करना है। 
  • इस संदर्भ में सरकारों को नागरिकों के लिये गुणवत्तायुक्त, सस्ती और सुलभ चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना चाहिये। इसके साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री एवं उपयोग को विनियमित करना चाहिये।
  • ऐसे उपायों की उपेक्षा से भारत चिकित्सा सेवा के उन महत्वपूर्ण बढ़त के लाभों से वंचित हो सकता है जो विगत वर्षों में भारत ने सक्रिय कार्यनीति के चलते प्राप्त किया है। द लांसेट की रिपोर्ट भी यह स्पष्ट करती है कि अब इस मोर्चे पर किसी भी तरह की शिथिलता की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
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