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मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान की आवश्यकता 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 :स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ 

नवीनतम मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों में 132वें स्थान पर है। यह भारत के लिये एक चिंताजनक स्थिति है। वर्तमान में भारत के मानव विकास को सुनिश्चित करने के लिये प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु 

  • हाल ही में जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुसार, “शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता वर्ष 2026-27  तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1990 में थाईलैंड के जोमटियन में सभी के लिये शिक्षा पर विश्व सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसे जोमटियन सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है। इस सम्मेलन में सभी के लिये शिक्षा पर वैश्विक घोषणा के बाद से सभी बच्चों को स्कूल लाने के लिये ठोस प्रयास किये गए।

मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान के लिये निपुण भारत पहल

  • वर्ष 2021 में शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने बेहतर समझ और संख्यात्मकता ज्ञान के साथ शिक्षा में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल –निपुण (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) की शुरूआत की।
  • इसका लक्ष्य आधारभूत साक्षरता तथा संख्यात्मक ज्ञान सुनिश्चित करने के लिये सर्व सुलभ वातावरण तैयार करना है, ताकि वर्ष 2026-27 तक कक्षा 3 तक के प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ाई पूरी करने के साथ ही पढ़ने, लिखने तथा अंकों के ज्ञान की आवश्यक निपुणता को प्राप्त कर सके।
  • ‘निपुण भारत’ वर्ष 2020 में जारी की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के लिये उठाए गए कदमों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसे नेशनल मिशन फाउंडेशन लिटरेसी एंड न्यूमरैसी के एक भाग के रूप में शुरू किया गया है।
  • इसके क्रियान्वयन के लिये केंद्र प्रायोजित समग्र शिक्षा योजना के तहत सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय-राज्य-ज़िला-ब्लॉक-स्कूल स्तर पर एक पाँच स्तरीय क्रियान्वयन तंत्र स्थापित किया जाएगा।

मानव विकास में सुधार हेतु किये गए प्रयास

शिक्षाकर्मी प्रोजेक्ट

  • शिक्षा पर वैश्विक घोषणा से पूर्व ही वर्ष 1987 में राजस्थान के दूर-दराज के गांवों में शिक्षकों की अनुपस्थिति से निपटने के लिये स्कूलों में शिक्षाकर्मी प्रोजेक्ट शुरू किया गया था।
  • इस परियोजना की महत्त्वपूर्ण विशेषता स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी थी। 
  • इसके तहत स्थानीय लोगों को समर्थन और प्रशिक्षण देकर उन्हें शिक्षक बनाने का कार्य सफलतापूर्वक किया गया। 

बिहार शिक्षा परियोजना 

  • 1990 के दशक में शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण को बढ़ावा देना था। 
  • इसने शिक्षकों के लिये 10 दिवसीय आवासीय सेवाकालीन प्रशिक्षण को विकसित किया, जिसे उजाला मॉड्यूल कहा गया। 

लोक जुम्बिश

  • यह सभी के लिये शिक्षा हेतु एक जन आंदोलन था जिसे वर्ष 1992 में राजस्थान में शुरू किया गया था। 
  • इसने विशेष रूप से आदिवासी जिलों में नवाचारों पर जोर दिया। साथ ही, नागरिक समाज की भागीदारी को बढ़ावा दिया। 

जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम 

इस कार्यक्रम को वर्ष 1994 में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सार्वभौमिक बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।  

सर्व शिक्षा अभियान

  • वर्ष 2001 में प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के उद्देश्य से इस अभियान को शुरू किया गया था। 
  • इसने स्कूल के बुनियादी ढांचे, शौचालय की उपलब्धता, स्वच्छ जल तक पहुँच और पाठ्यपुस्तक की उपलब्धता में सुधार कर स्कूल की नामांकन भागीदारी को बढ़ाने में सहायता की है।

न्यायिक निर्णय 

उन्नी कृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य वाद (1993) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिये  शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। 

भावी समाधान 

  • वर्तमान में अच्छे शिक्षकों की भर्ती और शिक्षक विकास संस्थानों की स्थापना की एक व्यवस्थित प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है। 
  • शिक्षा क्षेत्र में सकरात्मक परिवर्तन लाने के लिये शिक्षकों और प्रशासकों की भर्ती को प्राथमिकता देना होगा। 
  • स्कूलों को सीधे वित्त का हस्तांतरण किया जाना चाहिये तथा शिक्षकों के गैर-शिक्षण कार्य कम किये जाने चाहिये। साथ ही, स्कूलों में सुधार हेतु  समुदाय और पंचायत की भी जवाबदेही होनी चाहिये। 
  • वर्तमान में सामुदायिक जुड़ाव और माता-पिता की भागीदारी पर बल देने की आवश्यकता है। इसमें महिला स्वयं सहायता समूह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं। 
  • शिक्षकों की अक्षमता को दूर करने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल दिया जाना चाहिये।

आगे की राह

प्री स्कूल से कक्षा 3 तक का समय बच्चों के लिये अत्यधिक परिवर्तनकारी होता है। स्पष्ट है कि शिक्षार्थियों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार करने के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान अत्यंत आवश्यक है जो भारत के लिये आर्थिक प्रगति और मानव कल्याण की उच्च दर सुनिश्चित करेगी।

मानव विकास सूचकांक

  • मानव विकास सूचकांक (HDI) मानव विकास के प्रमुख आयामों में औसत उपलब्धि को दर्शाता है। यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रतिवर्ष ज़ारी किया जाता है। 
  • यह सूचकांक मुख्य रूप से तीन आयामों पर आधारित है :
  • लंबा एवं स्वस्थ जीवन
    • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
  • शैक्षिक स्तर
    • 25 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों के लिये स्कूली शिक्षा के वर्ष
    •  स्कूल में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिये स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष
  • जीवन स्तर
    • प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय
  • हाल ही में जारी मानव विकास रिपोर्ट 2021-22 को  ‘अनसर्टेन टाइम्स, अनसेटल्ड लाइव्स: शेपिंग अवर फ्यूचर इन अ ट्रांसफॉर्मिंग वर्ल्ड’ शीर्षक के साथ ज़ारी किया गया। इस रिपोर्ट में शीर्ष तीन स्थानों पर क्रमश: स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे एवं आइसलैंड जबकि निम्न तीन स्थानों पर क्रमश: दक्षिणी सूडान, चाड एवं नाइजर हैं। 
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