| GS Paper -III : Environment and Ecology |
चर्चा में क्यों ?
- भारत ने हाल ही में 46वीं अंटार्कटिक ट्रीटी कंसल्टेटिव मीटिंग (ATCM) और 26वीं पर्यावरण संरक्षण समिति (CEP) की मेजबानी कोच्चि (केरल) में की।
- इन बैठकों का आयोजन भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR, गोवा) द्वारा किया गया।
- इन बैठकों में जलवायु परिवर्तन, समुद्री जैव विविधता, पर्यावरणीय सुरक्षा और वैज्ञानिक सहयोग जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।

संधि की पृष्ठभूमि और उत्पत्ति
- शीत युद्ध काल (Cold War Era) में पृथ्वी का अंतिम अन्वेषित महाद्वीप — अंटार्कटिका — पर कई देशों की निगाहें थीं।
- 1950 के दशक में अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, अर्जेंटीना, चिली, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देश इस क्षेत्र पर संप्रभुता के दावे कर रहे थे।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Geophysical Year, 1957–58) के दौरान, इस क्षेत्र में अनेक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अभियानों ने संयुक्त रूप से काम किया।
- इसी सहयोग की भावना से प्रेरित होकर 1959 में वाशिंगटन में 12 देशों ने मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किए, जो आगे चलकर Antarctic Treaty System (ATS) की नींव बनी।
संधि की प्रमुख विशेषताएँ
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विशेषता
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विवरण
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लागू होने की तिथि
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1 जून 1961
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हस्ताक्षर स्थल
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वाशिंगटन, D.C.
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प्रारंभिक हस्ताक्षरकर्ता
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12 देश – अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस, नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना, चिली, जापान, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका
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वर्तमान सदस्य
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57 (29 परामर्शदाता + 28 गैर-परामर्शदाता)
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भारत की सदस्यता
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1983 (परामर्शदाता पक्षकार के रूप में)
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भौगोलिक सीमा
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60° दक्षिण अक्षांश के दक्षिण का संपूर्ण क्षेत्र
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संधि के मुख्य उद्देश्य
- अंटार्कटिका का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाए।
- किसी भी प्रकार की सैन्य गतिविधि, हथियार परीक्षण, या ठिकाना प्रतिबंधित।
- परमाणु विस्फोट या रेडियोधर्मी अपशिष्ट निषेध।
- वैज्ञानक अनुसंधान की स्वतंत्रता।
- सभी सदस्य देशों के लिए खुला वैज्ञानिक सहयोग और सूचना साझा करने का प्रावधान।
- संप्रभुता विवाद स्थगित।
- किसी भी देश का क्षेत्रीय दावा न स्वीकारा गया और न ही नए दावे की अनुमति।
- निरीक्षण व्यवस्था (Inspection Regime):
- सदस्य देश एक-दूसरे के अनुसंधान केंद्रों का निरीक्षण कर सकते हैं ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली (Antarctic Treaty System - ATS)
यह केवल एक संधि नहीं, बल्कि उससे विकसित हुआ एक बहुस्तरीय कानूनी ढांचा है।
प्रमुख अंग:
- Antarctic Treaty (1959) — मुख्य संधि।
- CCAS (1972): Convention for the Conservation of Antarctic Seals
- CCAMLR (1980): Convention on the Conservation of Antarctic Marine Living Resources
- Madrid Protocol (1991): Protocol on Environmental Protection to the Antarctic Treaty —
- अंटार्कटिका को “शांति और विज्ञान के लिए समर्पित प्राकृतिक रिजर्व” घोषित करता है।
- खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
- प्रभावी हुआ: 1998 से।
अंटार्कटिका क्षेत्र की भौगोलिक और पारिस्थितिक स्थिति
- पृथ्वी का चौथा सबसे बड़ा महाद्वीप (14 मिलियन वर्ग किमी)।
- 98% भाग बर्फ से ढका, औसत मोटाई 1.6 किमी।
- रॉस सागर (Ross Sea): विश्व का सबसे बड़ा समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Area)।
- बर्फ की चादरें (Ice Shelves): पश्चिमी अंटार्कटिका की आइस शेल्फ (Thwaites, Larsen, Pine Island) तेजी से पिघल रही हैं।
- औसत तापमान: -49°C (ग्रीष्मकाल में तटीय क्षेत्रों में -2°C से -10°C)।
वैश्विक जलवायु में भूमिका
- Global Thermostat: यह पृथ्वी की एल्बीडो (Albedo) यानी सूर्य प्रकाश परावर्तन क्षमता को बनाए रखता है।
- महासागरीय परिसंचरण (Ocean Circulation): अंटार्कटिक सर्कंपोलर धारा (ACC) पृथ्वी की सबसे बड़ी महासागरीय धारा है।
- कार्बन सिंक: हर वर्ष लाखों टन CO₂ को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन को धीमा करता है।
- वैश्विक समुद्र स्तर पर प्रभाव: यदि अंटार्कटिक आइस शीट पिघल गई तो समुद्र स्तर में लगभग 58 मीटर की वृद्धि संभव।
अंटार्कटिका के समक्ष उभरते खतरे
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खतरा
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प्रभाव
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जलवायु परिवर्तन
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आइस शीट का तीव्र पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि।
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महासागरीय अम्लीकरण
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समुद्री जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव।
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मानवीय गतिविधियाँ
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अनुसंधान स्टेशनों से उत्पन्न प्रदूषण और कचरा।
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पर्यटन
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अति-पर्यटन से पारिस्थितिकी असंतुलन।
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मत्स्यन
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क्रिल (Krill) के अत्यधिक दोहन से खाद्य जाल असंतुलित।
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भारत की भूमिका और पहलें
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वर्ष
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पहल
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1981
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भारत का पहला अंटार्कटिक अभियान शुरू।
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1983
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दक्षिण गंगोत्री स्टेशन की स्थापना (अब निष्क्रिय)।
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1989
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मैत्री स्टेशन — स्थायी अनुसंधान केंद्र।
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2012
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भारती स्टेशन — आधुनिक मल्टी-डिसिप्लिनरी केंद्र।
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2022
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अंटार्कटिक अधिनियम, 2022 — भारतीय गतिविधियों को कानूनी ढांचा प्रदान किया।
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2024 (घोषणा)
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मैत्री-II स्टेशन — नया अनुसंधान केंद्र स्थापित करने की योजना।
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अंटार्कटिक अधिनियम, 2022 (Indian Antarctic Act, 2022)
- उद्देश्य:
- भारत के नागरिकों और संस्थानों की अंटार्कटिक गतिविधियों को नियंत्रित और विनियमित करना।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की बाध्यता।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के दौरान अपशिष्ट प्रबंधन, जीव संरक्षण, और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना।
- उल्लंघन पर दंडात्मक प्रावधान (5 से 20 वर्ष तक की सजा)।
भारत के लिए अंटार्कटिका का सामरिक और वैज्ञानिक महत्व
- वैज्ञानिक लाभ:
- जलवायु परिवर्तन मॉडलिंग में उपयोगी डेटा।
- ग्लेशियर, ध्रुवीय मौसम और खनिज भंडार पर अध्ययन।
- भूराजनीतिक दृष्टि से:
- भविष्य में संसाधन प्रतिस्पर्धा की संभावना (जैसे खनिज, जीवाश्म ईंधन)।
- भारत का ध्रुवीय अनुसंधान उसे “ग्लोबल साउथ” में वैज्ञानिक नेतृत्व प्रदान करता है।
- कूटनीतिक लाभ:
- ATS में सक्रिय भूमिका भारत को वैश्विक पर्यावरण शासन का अग्रणी बनाती है।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली की आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
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चुनौती
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विवरण
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संसाधन दोहन का दबाव
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भविष्य में खनन या ऊर्जा खोज की मांग बढ़ सकती है।
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पर्यटन नियंत्रण
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वर्ष 2024 में 1 लाख से अधिक पर्यटक पहुँचे – पर्यावरणीय जोखिम।
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सदस्य देशों के हित टकराव
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चीन और रूस जैसे देशों की बढ़ती उपस्थिति से तनाव।
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जलवायु परिवर्तन पर अपर्याप्त उपाय
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मौजूदा प्रोटोकॉल में उत्सर्जन कटौती का कोई बाध्यकारी प्रावधान नहीं।
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अंटार्कटिक-
- अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध में अंटार्कटिक अभिसरण से घिरा एक ठंडा सुदूर क्षेत्र है।
- अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध के लगभग 20 प्रतिशत भाग को कवर करता है।
- कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से अंटार्कटिका पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
- यह एक अनोखा महाद्वीप है, क्योंकि इसमें मूल मानव आबादी नहीं है ।
- अंटार्कटिक में कोई देश नहीं हैं।
- अंटार्कटिक के रॉस द्वीप पर स्थित माउंट एरेबस पृथ्वी पर सबसे दक्षिण में स्थित सक्रिय ज्वालामुखी है।
- अंटार्कटिक रेगिस्तान दुनिया के सबसे शुष्क रेगिस्तानों में से एक है।
- यह पृथ्वी के ताप संतुलन का एक अभिन्न अंग है।
- अंटार्कटिक के आसपास का पानी "महासागर कन्वेयर बेल्ट" का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- अंटार्कटिक के आसपास के ठंडे पानी को ‘अंटार्कटिक बॉटम वॉटर’ के नाम से जाना जाता है। यह इतना घना है कि समुद्र तल से टकराता है।
- लाइकेन , काई और स्थलीय शैवाल अंटार्कटिका में उगने वाली वनस्पति की कुछ प्रजातियों में से हैं ।
- अंटार्कटिक में ब्लू, फिन, हंपबैक, राइट, मिन्के, सेई, स्पर्म व्हेल, तेंदुआ सील, पेंगुइन आदि प्रमुख जीव पाए जाते हैं।
- अंटार्कटिक क्षेत्र 100 मिलियन से अधिक पक्षियों के साथ-साथ सील, समुद्री शेर और अन्य समुद्री स्तनधारियों के लिए महत्वपूर्ण प्रजनन क्षेत्र प्रदान करता है।
निष्कर्ष
अंटार्कटिक संधि मानवता का एक “सर्वोच्च सहयोग मॉडल” है — जहां भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद देशों ने शांति, विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी। आज जब जलवायु परिवर्तन, ध्रुवीय पिघलन और संसाधन प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, तब इस संधि का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। भारत की सक्रिय भूमिका और “मैत्री-II” जैसी योजनाएँ न केवल वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक हैं, बल्कि एक सतत वैश्विक शासन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी सुदृढ़ करती हैं।