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जी.पी.एस. स्पूफिंग: भारत की उड्डयन सुरक्षा के लिए उभरता गंभीर खतरा

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती)

संदर्भ

  • हाल ही में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जी.पी.एस. स्पूफिंग (GPS Spoofing) से जुड़े तकनीकी व्यवधानों के कारण सैकड़ों उड़ानें प्रभावित हुईं। यह घटना इसलिए अधिक चिंताजनक है क्योंकि जी.पी.एस. स्पूफिंग सामान्यतः युद्धग्रस्त क्षेत्रों में देखी जाती है जबकि दिल्ली जैसे सुरक्षित वायुक्षेत्र में इसका होना भारत की उड्डयन सुरक्षा प्रणाली के लिए बड़ी चेतावनी है।
  • इससे ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) में समस्या से फ्लाइट्स में देरी हुई। यह एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) डाटा का समर्थन करता है जो मैसेज स्विचिंग से उड़ान योजना का प्रबंधन करता है। कंट्रोलर को मैन्युअली कार्य करना पड़ता है। ATC हवाई जहाजों को निर्देशित करता है और AMSS मैसेज तेजी से भेजता है।

क्या है जी.पी.एस. स्पूफिंग

  • जी.पी.एस. स्पूफिंग एक प्रकार का सिग्नल व्यवधान (Interference) है जिसमें एक उपकरण जी.पी.एस. उपग्रहों की ही आवृत्ति पर नकली (कृत्रिम) सिग्नल प्रसारित करता है। 
  • यह जैमिंग से अलग है। जैमिंग में सिग्नल पूरी तरह बाधित हो जाता है। स्पूफिंग में सिग्नल मिलता है किंतु वह गलत दिशा दिखाता है जोकि अधिक खतरनाक है। इस स्पूफिंग की वजह से:
    • वास्तविक जी.पी.एस. सिग्नल दब जाता है
    • रिसीवर को गलत लोकेशन या नेविगेशन डेटा प्राप्त होता है
    • विमान या अन्य वाहन गलत दिशा में नेविगेट करने लगते हैं

जी.पी.एस. स्पूफिंग के खतरे

  • विमान को गलत दिशा में ले जाने से दुर्घटना की आशंका 
  • लैंडिंग के समय रनवे अलाइनमेंट बिगड़ जाना (विशेषकर जब इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) उपलब्ध न हो)
  • उड़ानों में डायवर्जन, देरी एवं हवाई अड्डों पर भीड़भाड़ में वृद्धि 
  • सैन्य विमानों, ड्रोन, मिसाइलों और जहाज़ों के संचालन पर राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम
  • स्पूफिंग का उपयोग साइबर आतंकवाद और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में किया जाना 

ATC सिस्टम

  • ATC सिस्टम एयरपोर्ट पर एक केंद्रीय नियंत्रण प्रणाली है। यह हवाई जहाजों को सतह पर, हवा में एवं आसमान के अलग-अलग हिस्सों में निर्देशित करता है। यह हवाई जहाजों के लिए एक ट्रैफिक पुलिस की तरह है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य हवाई जहाजों के बीच टक्कर से बचाव, उड़ानों में देरी कम करना और मौसम व अन्य समस्याओं का सामना करना है।
  • ATC न केवल एयरपोर्ट पर, बल्कि पूरे देश या दुनिया के हवाई क्षेत्र (एयरस्पेस) में कार्य करता है। भारत में डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) और एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) इसकी देखरेख करते हैं।

ATC सिस्टम की मुख्य विशेषताएँ 

ATC सिस्टम में हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर एवं ह्यूमन का मिश्रण होता है। इसके मुख्य भाग इस प्रकार हैं-

रडार सिस्टम (Radar Systems)

  • प्राइमरी सर्विलांस रडार (PSR) : यह रडार हवाई जहाजों को उनकी स्थिति (पोजीशन) के आधार पर ट्रैक करता है। यह रेडियो तरंगें भेजकर जहाजों को डिटेक्ट करता है, भले ही उनके पास कोई सिग्नल न हो। इसकी रेंज 50-100 किलोमीटर तक और फ्रीक्वेंसी 1-3 GHz (गिगाहर्ट्ज) होती है। 
  • सेकेंडरी सर्विलांस रडार (SSR): यह विमानों के ट्रांसपॉन्डर (जहाज में लगा एक छोटा डिवाइस) से संपर्क करता है। इससे जहाज की ऊंचाई, स्पीड और ID प्राप्त होती है। इसका रेंज 200-400 किलोमीटर होता है और इसके मोड में मोड A (ID), मोड C (ऊंचाई), मोड S (उन्नत डेटा जैसे GPS पोजीशन) शामिल हैं। 
  • एडवांस्ड वर्जन: ऑटोमेटिक डिपेंडेंट सर्विलांस ब्रॉडकास्ट (ADS-B) यह GPS से रीयल-टाइम लोकेशन शेयर करता है। भारत के बड़े एयरपोर्ट्स जैसे दिल्ली और मुंबई में यह लगा है।

कम्युनिकेशन सिस्टम (Communication Tools)

  • VHF रेडियो: पायलट और ATC के बीच बातचीत के लिए होता है। इसकी फ्रीक्वेंसी 118-137 MHz और रेंज 50-100 किलोमीटर होती है।
  • UHF एवं HF रेडियो: लंबी दूरी के लिए (समुद्र पार उड़ानों में प्रयुक्त)
  • डिजिटल सिस्टम: कंट्रोलर-पायलट डेटा लिंक कम्युनिकेशंस (CPDLC) मैसेज भेजने के लिए होता है और आवाज की बजाय टेक्स्ट का प्रयोग करता है। 

नेविगेशन सहायता (Navigation Aids)

  • इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS): खराब मौसम में लैंडिंग के लिए होता है। यह रेडियो बीम से जहाज को रनवे पर गाइड करता है। इसके कंपोनेंट्स में लोकलाइजर (दिशा के लिए) और ग्लाइड स्लोप (ऊंचाई के लिए) शामिल हैं। इसकी रेंज 20-30 किलोमीटर होती है।
  • VHF Omnidirectional Range (VOR): दिशा बताने के लिए प्रयुक्त होता है।
  • Distance Measuring Equipment (DME): दूरी मापने के लिए प्रयुक्त होता है।

ऑटोमेशन व सॉफ्टवेयर

  • फ्लाइट डाटा प्रोसेसिंग सिस्टम (FDPS): उड़ानों का डेटा मैनेज करता है, जैसे-शेड्यूल, मौसम अपडेट आदि
  • हवाई यातायात प्रबंधन (ATM) सॉफ्टवेयर: कॉन्फ्लिक्ट अलर्ट (टक्कर का खतरा बताना), ट्रैफिक फ्लो ऑप्टिमाइजेशन आदि 
  • कंप्यूटर: हाई-स्पीड सर्वर, रीयल-टाइम डेटा प्रोसेसिंग के लिए। भारत में इंडस (Indian NextGen ATM System) इसका उदाहरण है।

अन्य तकनीकी चुनौतियाँ

  • जी.एन.एस.एस. जैमिंग (GNSS Jamming) : उपग्रह संकेतों को पूरी तरह बाधित करना
  • ए.डी.एस.-बी स्पूफिंग (ADS-B Spoofing) : विमान की पहचान या स्थिति को गलत दर्शाना
  • एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) सिस्टम पर साइबर हमले
  • ड्रोन आधारित सिग्नल व्यवधान
  • नेविगेशन सिस्टम हैकिंग से उड़ान सुरक्षा को गंभीर खतरा होता है।

सरकार के प्रयास

  • वर्ष 2023 में डी.जी.सी.ए. ने जी.एन.एस.एस. जैमिंग एवं स्पूफिंग पर पहली चेतावनी जारी की थी। 
  • वर्ष 2025 में दिल्ली घटना के बाद डी.जी.सी.ए. ने पायलट को 10 मिनट के भीतर किसी भी स्पूफिंग घटना की रिपोर्ट करना अनिवार्य किया गया।
    • ए.टी.सी. और तकनीकी इकाइयों को रियल-टाइम रिपोर्टिंग का निर्देश दिया गया।
  • नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच अमृतसर और जम्मू क्षेत्रों में 465 स्पूफिंग व जैमिंग घटनाएँ रिपोर्ट हुईं। 
  • इसके बाद सरकार ने सीमा क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी बढ़ाई, सिग्नल डिटेक्शन सेंसर लगाए और संदिग्ध स्रोतों की पहचान के लिए विशेष टीमें बनाईं।
  • संचार और नेविगेशन उपकरणों को अपग्रेड किया जा रहा है। ILS उपलब्ध न होने पर वैकल्पिक नेविगेशन तरीकों का परीक्षण किया जा रहा है।

चुनौतियाँ

  • स्पूफिंग उपकरण सस्ते हैं और आसानी से छिपाए जा सकते हैं।
  • घनी आबादी वाले शहरों में स्रोत का पता लगाना कठिन है।
  • ए.टी.सी. सिस्टम पर अत्यधिक दबाव तकनीकी त्रुटियों को बढ़ा देता है।
  • ILS बंद होने पर RNP/GPS पर अधिक निर्भरता स्पूफिंग को और प्रभावी बनाती है।
  • सीमा क्षेत्रों में पड़ोसी देशों की गतिविधियों का जोखिम लगातार बना रहता है।
  • जी.पी.एस. के विकल्प अभी पर्याप्त रूप से विकसित या व्यापक नहीं हैं।

आगे की राह

  • मल्टी-जी.एन.एस.एस. प्रणाली अपनाना : जी.पी.एस. के साथ-साथ भारत को गैलीलियो (EU), ग्लोनास (रूस), बेइदू (चीन) और भारतीय नाविक (NavIC) का भी उपयोग बढ़ाना 
  • एंटी-स्पूफिंग तकनीकों का विकास : उन्नत सिग्नल मॉनिटरिंग सिस्टम, प्रमाणित सिग्नल, स्पूफिंग डिटेक्शन सेंसर, शहरों में RF मॉनिटरिंग नेटवर्क का विस्तार करना 
  • ए.टी.सी. एवं पायलट प्रशिक्षण : स्पूफिंग के संकेत पहचानने और उसके प्रभावों से सुरक्षित तरीके से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण आवश्यक
  • साइबर सुरक्षा सुदृढ़ करना : उड़ान डेटा, रडार सिस्टम और ATC नेटवर्क की सुरक्षा को उच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) तथा पड़ोसी देशों के साथ मिलकर क्षेत्रीय स्पूफिंग निगरानी प्रणाली विकसित करने की अनिवार्यता

ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) के बारे में 

  • एयर ट्रैफिक कंट्रोल में AMSS एक बहुत जरूरी कंप्यूटर सिस्टम है जो हवाई जहाजों की उड़ानों से जुड़ी सूचनाओं व संदेश तेजी से प्रसारित करने का कार्य करता है। यह एयरपोर्ट्स, मौसम की जानकारी, फ्लाइट प्लान और सुरक्षा अलर्ट जैसे संदेश को एक जगह से दूसरी जगह स्विच या ट्रांसफर करता है।
  • भारत में एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) इसे संचालित करती है। यदि यह प्रणाली बाधित हो जाए तो कंट्रोलर्स को मैन्युअल (हाथ से) काम करना पड़ता है, जिससे फ्लाइट्स में देरी हो जाती है। यह सिस्टम मौसम डेटा इकट्ठा करने और बांटने का मुख्य आधार भी है ताकि पायलट्स को सही समय पर सारी जानकारी मिले।

AMSS की मुख्य विशेषताएँ

  • यह इंटरनेट प्रोटोकॉल आधारित (IP-बेस्ड) कंप्यूटर सिस्टम है जो एयरोनॉटिकल फिक्स्ड टेलीकम्युनिकेशन नेटवर्क (AFTN) से जुड़ा होता है। इसका रेंज पूरे देश या दुनिया के एयरपोर्ट्स तक फैला है। यह संदेश को प्राथमिकता के आधार पर भेजता है, जैसे- जरूरी अलर्ट को पहले।
  • यह ऑटोमेटेड वर्कफ्लो प्रयोग करता है जो संदेश को सुरक्षित व तीव्रता से रूट करता है। भारत के बड़े एयरपोर्ट्स, जैसे- मुंबई व दिल्ली में नया IP-AMSS लगा है जो 99% समय बिना रुके चलता है। यह ग्राउंड-टू-ग्राउंड कम्युनिकेशन के लिए स्टैंडर्ड ICAO नियमों पर बना है। इसमें ह्यूमन या ऑटोमेटेड यूजर्स मैसेज सबमिट-डिलीवर कर सकते हैं।
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