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जैविक आधार

संदर्भ

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ‘राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम’ (NPOP) के तहत जैविक कृषि में संलग्न किसानों के लिये ‘जैविक आधार’ (Organic Aadhaar) प्रारंभ करने पर विचार कर रहा है ताकि इसके अंतर्गत जाली नामांकन की किसी भी संभावना को रोका जा सके। उल्लेखनीय है कि एपीडा, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कार्य करता है। 

प्रमुख बिंदु

  • असंसाधित वनस्पति उत्पादों के उत्पादन और मान्यता के लिये एन.पी.ओ.पी. मानकों को यूरोपीय आयोग तथा स्विटजरलैंड द्वारा उनके देश के मानकों के समकक्ष मान्यता दी गई है।
  • भारत में वर्ष 2020-21 में 34.96 लाख टन प्रमाणित जैविक उत्पादन हुआ। 31 मार्च, 2021 तक जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया (एन.पी.ओ.पी. के तहत पंजीकृत) के तहत कुल क्षेत्रफल 43.39 लाख हेक्टेयर था।
  • भारत के मान्यता प्राप्त प्रमाणन निकायों द्वारा प्रमाणित भारतीय जैविक उत्पाद यूरोप के आयातक देशों द्वारा स्वीकार किये जाते हैं। इसके लिये अन्य देशों से भी वार्ता चल रही है। हालाँकि, गत वर्ष यूरोप को निर्यात किये गए जैविक तिल में कुछ रासायनिक अवशेष पाए गए थे।

जैविक आधार

  • जैविक आधार मतदाता पहचान पत्र के समान है। यह किसी उत्पादक समूह में किसानों की जैविक स्थिति और आय से संबंधित विशेष सुरक्षा प्रदान करेगा। 
  • यह जैविक स्थिति को खोए बिना उपज को अधिक मूल्य पर बेचने के किसानों के अधिकारों की रक्षा करेगा। इससे आगामी वर्षों में एन.पी.ओ.पी. को वैश्विक स्तर पर एक उत्कृष्ट जैविक मानक के रूप में स्थापित करने में सहायता मिलेगी।
  • इसके तहत, आधार संख्या को ‘विशिष्ट भूमि खंड पहचान संख्या’ (Unique Land Parcel Identification Number ULPIN) के साथ जोड़ा जा सकता है। यह लिंकेज ‘सहमति-आधारित’ होगा अर्थात नागरिकों की संपत्ति रिकॉर्ड को उनके आधार नंबर से जोड़ने से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

यू.एल.पी.आई.एन. योजना

  • केंद्र सरकार देश में प्रत्येक भूखंड के लिये 14 अंकों की विशिष्ट भूमि खंड पहचान संख्या (Unique Land Parcel Identification Number : ULPIN) लागू कर रही है। यह योजना विगत वर्ष 10 राज्यों में प्रारंभ की गई थी और शीघ्र ही इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। 
  • इसको  ‘भूमि की आधार संख्या’ के रूप में वर्णित किया जाता है। यह संख्या भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करता है, जिसका सर्वेक्षण हो चुका है। भूखंड की पहचान उसके देशांतर और अक्षांश के आधार पर की जाती है। जैविक भूमि की पहचान के लिये भी यह एक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है।
  • यू.एल.पी.आई.एन. वर्ष 2008 में प्रारंभ हुए डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernisation Programme : DILRMP) का अगला चरण है।

ट्रेसनेट प्रणाली

  • जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया के लिये ‘व्यक्तिगत आधार’ और ‘यू.एल.पी.आई.एन.’ का प्रयोग करते हुए जैविक आधार बनाने का विचार है। इसे ट्रेसनेट प्रणाली के साथ संयुक्त करने से नीतिगत उपायों को प्रभावी और मजबूत करने में सहायता मिलेगी।
  • देश से निर्यात किये गए उत्पादों का विवरण प्रदान करने के लिये ट्रैसनेट प्रणाली को वर्ष 2009 में शुरू किया गया। इस प्रणाली द्वारा भारत से निर्यात किये गए उत्पादों से संबंधित किसानों के विवरण, उनकी भूमि और उत्पादन में प्रयोग किये जाने वाले इनपुट्स (आदानों) की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। 
  • विदित है कि वर्ष 2021 में एपीडा ने जैविक कृषि को मजबूत एवं सरल बनाने के लिये एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।
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