चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में भारत में जन्म पंजीकरण में विकास हुआ है। ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में पिछड़े बिहार ने सुधार दिखाया है।

बिहार में जन्म पंजीकरण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 2000 के दशक की शुरुआत में बिहार जन्म पंजीकरण के मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल था।
- वर्ष 2000 में केवल 3.7% जन्म ही पंजीकृत हो पाए थे,
- जबकि राष्ट्रीय औसत 56.2% था।
- 2004-05 तक यह आंकड़ा क्रमशः
- 11.5% और 16.9% तक पहुंचा,जो अब भी राष्ट्रीय औसत (60% से ऊपर) से काफी कम था।
- इस पिछड़ेपन के पीछे कारण:
- प्रशासनिक अक्षमता,जन-जागरूकता की कमी
- ग्रामीण क्षेत्रों में पंजीकरण की कठिनाइयाँ
- पर्याप्त बुनियादी ढांचे की अनुपस्थिति
हालिया प्रगति और सकारात्मक संकेत
- 2022 तक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
- बिहार ने निर्धारित 21 दिन की अवधि के भीतर 71% जन्मों का पंजीकरण दर्ज किया।
- यह प्रगति डिजिटलीकरण,नीतिगत बदलावों और स्थानीय प्रशासन की सक्रियता का परिणाम है।
- बिहार अब उन 14 राज्यों में शामिल है जहाँ 50% से 80% जन्म निर्धारित समय सीमा में पंजीकृत हो रहे हैं।
डिजिटल प्रमाण पत्र और विधायी परिवर्तन
- 2023 में केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया
- जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 में संशोधन किया गया।
- 1 अक्टूबर, 2023 के बाद जन्म लेने वाले सभी नागरिकों के लिए डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया गया।
- इससे जन्म पंजीकरण की प्रक्रिया और तेज, पारदर्शी तथा कागजरहित हो गई है।
सीआरएस बनाम एसआरएस
मापदंड
|
सीआरएस (CRS)
|
एसआरएस (SRS)
|
उद्देश्य
|
वास्तविक पंजीकृत जन्मों की गणना
|
अनुमान आधारित प्रजनन और मृत्यु दर
|
डेटा स्रोत
|
नागरिक पंजीकरण अधिकारी
|
सर्वेक्षण आधारित
|
उपयोगिता
|
सरकारी योजनाओं में सीधा उपयोग
|
सांख्यिकीय विश्लेषण हेतु
|
- पंजीकृत और अनुमानित जन्मों में अंतर यह दर्शाता है कि कुछ जन्म अब भी रिपोर्टिंग से छूट जाते हैं।
प्रश्न. बिहार में वर्ष 2000 में जन्म पंजीकरण की दर लगभग कितनी थी?
(a) 10.2%
(b) 3.7%
(c) 25.5%
(d) 16.9%
|