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बुलडोजर न्याय एवं संबंधित मुद्दे

प्रारंभिक परीक्षा

(भारतीय राजनीतिक व्यवस्था)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2; कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; शासन व्यवस्था)

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में राज्य के अधिकारियों द्वारा संपत्ति के मालिक की किसी अपराध में कथित संलिप्तता के लिए दंड स्वरूप संपत्ति को ध्वस्त करने की प्रक्रिया को कानून के शासन के विपरीत माना है। साथ ही, न्यायालय द्वारा भविष्य में ऐसे मामलों में संपत्ति के विध्वंस के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किये गए हैं।

पृष्ठभूमि 

  • हालिया वाद उन याचिकाओं से संबंधित है जिनमें आपराधिक गतिविधियों के आरोपियों के घरों को ध्वस्त करने की कानूनी आधार पर गैरसम्मत प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। 
    • इस प्रक्रिया को पूर्व भारतीय न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बुलडोज़र न्याय कहा था। यह परंपरा विगत वर्षों में कुछ राज्यों में देखी गई है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला वर्ष 2024 के प्रारंभ में राजस्थान के उदयपुर एवं मध्य प्रदेश के रतलाम में हुई घटनाओं के मद्देनजर लिया गया।
    • जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने भी वर्ष 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद किए गए तोड़फोड़ अभियान के बीच एक याचिका दायर की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

  • कानून के शासन के विपरीत : सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अनुसार, नागरिकों की संपत्तियों को उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना सिर्फ इसलिए ध्वस्त करना कि वे किसी अपराध में शामिल हो सकते हैं, कानून के शासन (Rule of Law) के विपरीत है।
  • अधिकारियों की जवाबदेही : न्यायालय ने निर्देश दिया है कि इस तरह की चरम कार्रवाई (Extreme Action) में शामिल अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

इसे भी जानिए!

  • न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने अपने निर्णय में ‘कवि प्रदीप’ की कुछ पंक्तियों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार हैं :

‘अपना घर हो, अपना आंगन हो,

इस ख्वाब में हर कोई जीता है।

इंसान के दिल की ये चाहत है,

कि एक घर का सपना कभी न छूटे’।

  • ‘कवि प्रदीप’ ने ही ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, ‘दे दी तुम्हें आजादी या साबरमती के संत’, ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाकी हिन्दुस्तान की’ आदि रचनाएँ की हैं। वर्ष 1997 में इन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया।    

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिनका पालन निजी संपत्तियों को ध्वस्त करने से पहले किया जाना चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश पारदर्शिता पर जोर देते हैं और आरोपी एवं उसके परिवार को अपने मामलों को निपटाने के लिए पर्याप्त समय देते हैं।
  • ये निर्देश कहाँ लागू नहीं होंगे : सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये दिशा-निर्देश किसी भी सार्वजनिक स्थान, जैसे- सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय में किसी अनधिकृत संरचना पर लागू नहीं होंगे और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहाँ न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया हो।

दिशा-निर्देशों की प्रमुख बातें 

  • नोटिस देना : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि संपत्ति विध्वंस से पहले किसी व्यक्ति को जवाब देने के लिए कम-से-कम 15 दिन पहले नोटिस दिया जाना चाहिए, जिसकी शुरुआत उस तारीख से होगी जिस दिन मालिक या कब्जाधारी को नोटिस मिलता है। 
    • इस नोटिस में संरचना का विवरण, इसे क्यों ध्वस्त किया जा रहा है और मालिकों को विध्वंस का विरोध करने की अनुमति देने के लिए व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख शामिल होनी चाहिए।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जैसे ही नोटिस दिया जाता है, स्थानीय कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट को ईमेल के माध्यम से सूचित किया जाना चाहिए साथ ही, ईमेल की प्राप्ति की स्वतः उत्तर पावती की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि पिछली तारीख के किसी भी आरोप को रोका जा सके।
  • सुनवाई एवं अंतिम आदेश : कार्यवाही के विवरण को उचित रूप से दर्ज किए जाने के साथ सुनवाई के बाद अंतिम आदेश में कुछ जानकारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। 
    • इसमें मालिक या अधिभोगी द्वारा दिए गए तर्क, प्राधिकरण (जैसे स्थानीय नगर निगम) क्यों मानता है कि मामले का निपटारा नहीं किया जा सकता है और क्या पूरा निर्माण या केवल एक भाग को ध्वस्त किया जाना है, शामिल हैं। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र विकल्प क्यों है’ जैसे कारणों का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
  • परिणाम : यदि प्राधिकरण ध्वस्तीकरण के लिए अंतिम आदेश पारित करता है और संपत्ति के मालिक या कब्जाधारी को आदेश प्राप्त होने के बाद ‘आदेश 15 दिनों की अवधि के लिए लागू नहीं किया जाएगा’। 
    • इससे मालिक या कब्जाधारी को या तो निर्माण हटाने या अंतिम आदेश को अदालत में चुनौती देने और स्थगन आदेश प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है।
    • इस दूसरी 15-दिवसीय अवधि के अंत में यदि अंतिम विध्वंस आदेश पर रोक नहीं लगाई गई है और निर्माण को हटाया नहीं गया है, तो विध्वंस किया जा सकता है। 
  • विध्वंस रिपोर्ट अनिवार्य : प्राधिकरण को विध्वंस की वीडियो रिकॉर्डिंग करनी चाहिए और विध्वंस से पहले एक ‘निरीक्षण रिपोर्ट’ और विध्वंस प्रक्रिया में शामिल कर्मियों की सूची के साथ एक विध्वंस रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।

दिशा-निर्देशों के पीछे सर्वोच्च न्यायालय का तर्क 

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जब किसी आरोपी व्यक्ति की संपत्ति को अवैध रूप से ध्वस्त किया जाता है तो उसके मौलिक, संवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • शक्तियों का पृथक्करण : निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया है कि न्यायपालिका को यह तय करने के लिए ‘न्यायिक’ (निर्णय लेने वाली) शक्तियाँ सौंपी गई हैं कि क्या कोई आरोपी व्यक्ति दोषी है और क्या राज्य के किसी अंग ने अपनी सीमाओं का उल्लंघन किया है। 
    • न्यायपालिका के अनुसार, क्या राज्य सरकार के अधिकारी न्यायिक कार्य स्वयं कर सकते हैं और क्या बिना किसी मुकदमे के किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति को ध्वस्त करने की सज़ा दी जा सकती है।
    • ‘राज्य द्वारा यह तय करना पूरी तरह से अस्वीकार्य होगा कि विध्वंस किसी आरोपी व्यक्ति के लिए सज़ा हो सकती है। कार्यपालिका अपने मूल कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है’।
  • सार्वजनिक विश्वास और पारदर्शिता : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को उनके कार्यों के साथ-साथ निष्क्रियताओं के लिए भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। 
    • अदालत के अनुसार, कानून को अपने हाथ में लेने वाले अधिकारियों को ऐसी मनमानी कार्रवाइयों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
  • आश्रय का अधिकार : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी अकेला ऐसा व्यक्ति नहीं है जो ऐसी संपत्तियों में रहता है या उनका मालिक है। 
    • इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार में आश्रय का अधिकार भी शामिल है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, आरोपी के साथ एक ही घर में रहने वाले अन्य निर्दोष लोगों को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह से असंवैधानिक होगा।
  • ध्वस्त संपत्ति पर निर्णय : ऐसे मामलों को संबोधित करने के लिए जहां ध्वस्त संपत्ति में आरोपी रहता है किंतु अवैध निर्माण के रूप में नगरपालिका कानूनों का उल्लंघन भी करता है, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अलग परीक्षण निर्धारित किया है। 
    • न्यायालय के अनुसार, जब एक विशेष संरचना को अचानक ध्वस्त करने के लिए चुना जाता है और उसी के आस-पास स्थित अन्य समान संरचनाओं को छुआ तक नहीं जाता है तो यह माना जा सकता है कि वास्तविक उद्देश्य आरोपी को दंडित करना था न कि अवैध निर्माण को हटाना।
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