कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) आधुनिक जलवायु रणनीतियों का एक प्रमुख स्तंभ है, जिसका उद्देश्य—
- बड़े उत्सर्जन स्रोतों (thermal power plant, steel, cement, chemical units) से CO₂ उत्सर्जन कम करना,
- वातावरण से पहले से मौजूद CO₂ को हटाना, तथा
- हटाए गए CO₂ को उपयोग या स्थायी भंडारण में परिवर्तित करना है।

IPCC के अनुसार, नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए CCUS जैसी तकनीकें अनिवार्य हैं, विशेषकर उन उद्योगों में जिनका डिकार्बनीकरण करना कठिन है।
भारत द्वारा CCUS के माध्यम से नेट-ज़ीरो लक्ष्य हेतु पहला R&D रोडमैप
- भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने 2024–25 में अपनी तरह का पहला CCUS R&D रोडमैप लॉन्च किया।
- यह भारत की नेट-ज़ीरो रणनीति (लक्ष्य: 2070) के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
रोडमैप के प्रमुख उद्देश्य
- घरेलू CCUS तकनीकों का विकास
- लागत-प्रभावी एवं स्केलेबल समाधानों की खोज
- उद्योगों के लिए चरणबद्ध CCUS अपनाने की रूपरेखा
- स्वदेशी नवाचार के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा
CCUS R&D रोडमैप के तीन चरण (Three-Stage Programme)
चरण 1: एंड-ऑफ-पाइप (EP) समाधान
- मौजूदा उद्योगों में उपलब्ध अत्याधुनिक CCUS तकनीकों या उनके उन्नत संस्करणों का एकीकरण।
- ध्येय → मौजूदा बिजली/औद्योगिक संयंत्रों के उत्सर्जन को तुरंत कम करना।
- मुख्य तकनीकें:
- Solvent-based capture
- Membrane separation
- Oxy-fuel combustion
- Post-combustion capture
चरण 2: CCUS Compliant Design (CCD)
- नए औद्योगिक विनिर्माण संयंत्रों को CCUS-अनुपालक डिज़ाइन में बनाना।
- उद्देश्य → भविष्य में CCUS तकनीक को आसानी से जोड़े जाने योग्य "CCUS-ready industries" का विकास।
- अपेक्षित लाभ:
- दीर्घकालिक लागत में कमी
- नए उद्योगों की कार्बन-तटस्थता
चरण 3: CCUS in One Pot (COP) – उभरती तकनीकों का एकीकरण
- नवीन कम-उत्सर्जन विनिर्माण तकनीकों में फोटो-बायो-इलेक्ट्रो-कैटेलिटिक रूपांतरण जैसी उभरती CCUS तकनीकों का एकीकृत उपयोग।
- उद्देश्य → CO₂ को एक ही स्थान पर कैप्चर, कन्वर्ट और उपयोग/भंडारण करना।
- संभावित तकनीकें:
- Artificial photosynthesis
- Electrochemical CO₂ conversion
- Bio-catalytic conversion
CCUS की प्रक्रिया (Capture → Transport → Utilisation/Storage)

(1) कैप्चर (Capture)
CO₂ को निम्न स्रोतों से कैप्चर किया जाता है—
- कोयला/गैस आधारित विद्युत संयंत्र
- सीमेंट, स्टील, पेट्रोकेमिकल उद्योग
- Direct Air Capture (DAC) तकनीक द्वारा वातावरण से सीधे CO₂
कैप्चर के प्रकार:
- Post-combustion capture
- Pre-combustion capture
- Oxy-fuel combustion
(2) परिवहन (Transport)
कैप्चर की गई CO₂ को संपीड़ित कर निम्न माध्यमों से ले जाया जाता है—
- पाइपलाइन
- जहाज
- ट्रक/रेल (कम उपयोग)
(3) भंडारण (Storage)
CO₂ को स्थायी रूप से भूवैज्ञानिक संरचनाओं में भंडारित किया जाता है—
- Saline aquifers
- Depleted oil and gas fields
- Basalt formations
(4) उपयोग (Utilisation)
CO₂ को एक फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किया जा सकता है—
- सिंथेटिक ईंधन (methanol, e-fuels)
- उर्वरक
- निर्माण-सामग्री (carbonated concrete)
- शैवाल-आधारित जैव-उत्पाद
जलवायु परिवर्तन को कम करने में CCUS की भूमिका
1. 'हार्ड-टू-एबेट' उद्योगों में उत्सर्जन में कमी
- स्टील, सीमेंट, रसायन, रिफाइनरी—इनका डिकार्बनीकरण विकल्प सीमित है।
- CCUS इन उद्योगों के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान करता है।
2. निम्न-कार्बन विद्युत एवं हाइड्रोजन उत्पादन
- कोयला, गैस एवं बायोमास आधारित संयंत्र CCUS के साथ निम्न-कार्बन ऊर्जा दे सकते हैं।
- Blue Hydrogen उत्पादन में CCUS महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. वायु से सीधा CO₂ हटाना (Negative Emissions)
दो प्रमुख तकनीकें:
- DACCS (Direct Air Capture + Carbon Storage)
- BECCS (Bio-energy with CCS)
BECCS → वास्तविक ‘नेगेटिव एमिशन’ तकनीक, क्योंकि बायोमास CO₂ अवशोषित करता है और दहन के बाद CO₂ कैप्चर/स्टोर किया जाता है।
भारत में CCUS: चुनौतियाँ और अवसर
चुनौतियाँ
- उच्च लागत (विशेषकर DAC तकनीक)
- बड़े पैमाने पर भंडारण साइटों की पहचान
- नीति व नियमन की कमी
- सार्वजनिक स्वीकार्यता
- उद्योगों में तकनीक-स्वीकृति धीमी
अवसर
- भारत में बड़े basalt formations, saline aquifers CO₂ storage के लिए उपयुक्त
- ‘Make in India’ के माध्यम से लागत में कटौती
- हरित हाइड्रोजन मिशन के साथ एकीकृत CCUS
- ऊर्जा सुरक्षा + जलवायु नेतृत्व का अवसर
- वैश्विक CCUS बाजार में मजबूत स्थिति
वैश्विक परिदृश्य
- CCUS परियोजनाएँ USA, Canada, Norway में सबसे उन्नत
- Norway का Sleipner CO₂ Storage Project (1996) सफल मॉडल
- USA का 45Q Tax Credit CCUS को बढ़ावा देता है
- IPCC: Net-zero मार्ग में 15–20% योगदान CCUS से अपेक्षित
भारत में CCUS की प्रमुख पहलें
- ONGC, IOCL, NTPC द्वारा पायलट परियोजनाएँ
- National Green Hydrogen Mission के तहत CCUS-संबंधित अनुसंधान
- NITI Aayog द्वारा India's CCUS Roadmap (Draft, 2022)
- ONGC द्वारा कच्छ बेसिन में CO₂ storage संभाव्यता अध्ययन
निष्कर्ष (Conclusion)
DST द्वारा लॉन्च किया गया पहला CCUS R&D Roadmap भारत को एक दीर्घकालिक, वैज्ञानिक और चरणबद्ध मार्ग प्रदान करता है, जिससे—
- उद्योगों का डिकार्बनीकरण
- नेट-ज़ीरो लक्ष्य (2070)
- उन्नत तकनीकी क्षमता का निर्माण
सभी संभव हो पाएंगे।
CCUS अकेले समाधान नहीं है, लेकिन नेट-ज़ीरो रणनीति का अनिवार्य घटक है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां वैकल्पिक हरित तकनीकें उपलब्ध नहीं हैं।