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न्यायिक नियुक्तियों को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव

प्रारंभिक परीक्षा के लिए – कॉलेजियम प्रणाली, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - न्यायपालिका की संरचना)

संदर्भ 

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने के लिए एक रिट याचिका को यथासमय सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली और न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए संघर्ष चल रहा है।
  • केंद्र सरकार द्वारा कोलेजियम प्रणाली की इस आधार पर सार्वजनिक आलोचना की जा रही है, कि यह व्यवस्था "अपारदर्शी" है। 

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • केन्द्रीय कानून मंत्री के अनुसार सुप्रीम कोर्ट, न्यायिक नियुक्तियों में व्यस्त है, जबकि इसका प्राथमिक कार्य लोगों को न्याय प्रदान करना है। 
  • कानून मंत्री द्वारा, कोलेजियम प्रणाली की जवाबदेही की कमी पर भी आलोचना की गयी। 
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, कॉलेजियम और सरकार को एक-दूसरे की गलती निकालने की जगह पर "संवैधानिक राजनीति" की भावना के साथ कार्य करना चाहिए। 
  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया, कि कोई भी सरकार को न्यायिक नियुक्तियों पर एक नया कानून लाने से नहीं रोक रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी संवैधानिकता की विधिवत जांच की जाएगी। 
  • संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायपालिका और सरकार दोनों को न्यायपालिका में न्यायिक रिक्तियों से निपटने के लिए "आउट-ऑफ-द-बॉक्स" सोचने की जरूरत है। 
    • इस रिपोर्ट में कहा गया, कि केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों संस्थान सेकेंड जज केस और मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर में दी गई समयसीमा का पालन नहीं कर रहे है। 

मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) 

  • मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) न्यायपालिका और सरकार के बीच एक समझौता है, इसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में नियुक्तियां करने के लिए दिशानिर्देशों का एक सेट है।
  • MoP, सर्वोच्च न्यायालय के तीन फैसलों - फर्स्ट जज केस (1981), सेकेंड जज केस (1993) और थर्ड जज केस (1998) के आधार पर विकसित हुआ। 

केंद्र सरकार की शिकायतें

  • केंद्र सरकार का तर्क है, कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों स्तरों पर कॉलेजियम के कारण न्यायिक नियुक्तियों में देरी हो रही है। 
  • 30 नवंबर, 2022 तक, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 1,108 कुल स्वीकृत पदों में से 332 पद रिक्त हैं। 
  • उच्च न्यायालयों ने, 146 (44%) नियुक्तियों की सिफारिश की है, जो केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के पास विचाराधीन हैं। 
  • उच्च न्यायालयों को अभी भी शेष 186 रिक्तियों (56%) के लिए सिफारिश भेजे जाने की आवश्यकता है। 
  • कई उच्च न्यायालयों ने पिछले एक से पांच वर्षों में रिक्तियों के लिए बार और सेवा कोटे के तहत सिफारिशें नहीं की हैं। 
  • सरकार ने शिकायत की है, कि सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालयों द्वारा अनुशंसित 25% नामों को खारिज कर दिया है।
    • 2022 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उच्च न्यायालयों द्वारा नियुक्ति के लिए की गई 221 सिफारिशों में से 165 नियुक्तियां की और शेष 56 प्रस्तावों को खारिज कर दिया। 
  • नियुक्ति प्रक्रिया में देरी ने उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को समय पर भरने को प्रभावित किया है। 

SC की प्रतिक्रिया

  • SC के अनुसार, सरकार ने या तो बिना किसी स्पष्ट कारण के कॉलेजियम की सिफारिशों को लंबित रखा है या उसने बार-बार कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किये गए नामों को वापस भेजा है। 
  • SC ने सरकार पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त नहीं करने का आरोप लगाया जो उसके लिए अनुकूल नहीं हैं। 

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग

  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC ) एक संवैधानिक निकाय था, जिसे न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिए 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम  के माध्यम से प्रस्तावित किया गया था।
  • NJAC में कुल 6 सदस्य थे -
    1. भारत के मुख्य न्यायाधीश
    2. सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश
    3. केन्द्रीय कानून मंत्री 
    4. दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (इनमें से एक सदस्य कोई महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या ओबीसी या अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य हो)
    • इन दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी प्रस्तावित थी, इस समिति के सदस्यों में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता (विपक्ष का ऐसा कोई नेता नहीं है, तो लोक सभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता) शामिल थे।
    • प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए की जाती तथा वे पुनः नामांकन के लिए पात्र नहीं होते है। 
  • सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक चयनों में राजनीतिक कार्यकारी की भागीदारी से संविधान के बुनियादी संरचना सिद्धांतों और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खंडन का तर्क देते हुये NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया।

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कॉलेजियम प्रणाली

  • यह उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण करने वाली संस्था है। 
  • यह ना तो संवैधानिक संस्था है और ना ही वैधानिक, बल्कि इसकी स्थापना उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से हुयी है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है, इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं। 

कॉलेजियम प्रणाली का विकास 

  • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981) - 
    • इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि जजों की नियुक्ति के लिये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा को राष्ट्रपति ठोस कारणों के आधार पर अस्वीकार कर सकता है। 
  • दूसरा न्यायाधीश मामला (1993) -
    • इस मामले के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा पर कार्यपालिका अपनी आपत्ति दर्ज करा सकती है। 
    • कार्यपालिका की आपत्ति के बाद, मुख्य न्यायाधीश कार्यपालिका की आपत्ति को स्वीकार करे या अस्वीकार दोनों ही परिस्थितियों में उसका निर्णय कार्यपालिका पर बाध्यकारी होगा। 
    • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अनुसंशा मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय से नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श लेने के बाद भेजी जानी चाहिये।
  • तीसरा न्यायाधीश मामला (1998) -
    • इस निर्णय में कहा गया की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में अनुसंशा करने से पहले उच्चतम न्यायालय के 4 अन्य  वरिष्ठतम जजों से परामर्श करना होगा।
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