7 नवंबर, 2025 को भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नई दिल्ली में वर्षभर चलने वाले समारोहों का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया गया।
वंदे मातरम् का 150वीं वर्षगांठ संबंधी कार्यक्रम 7 नवंबर, 2025 से 7 नवंबर, 2026 तक पूरे देश में चलेगा।
वंदे मातरम् : रचना एवं उत्पत्ति
लेखक : बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
रचना तिथि : 7 नवंबर, 1875 (अक्षय नवमी)
भाषा : संस्कृत एवं बांग्ला का मिश्रण
प्रथम प्रकाशन :1882 में साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में बंकिमचंद्र के प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ के अंतर्गत
संगीत : यदुनाथ भट्टाचार्य ने इस गीत को सुरबद्ध किया
भावार्थ : यह गीत मातृभूमि को शक्ति, समृद्धि एवं दिव्यता का प्रतीक मानकर उसकी वंदना करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
‘वंदे मातरम्’ को पहली बार वर्ष 1896 के कांग्रेस अधिवेशन (कलकत्ता) में रविंद्रनाथ टैगोर ने गाया था।
7 अगस्त, 1905 को बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन में इसे पहली बार राजनीतिक नारे के रूप में प्रयोग किया गया।
वर्ष 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट (बर्लिन) में भारत का पहला तिरंगा फहराया, जिस पर ‘वंदे मातरम्’ लिखा हुआ था।
17 अगस्त, 1909 को जब मदनलाल ढींगरा को इंग्लैंड में फांसी दी गई जिनके आखिरी शब्द वंदे मातरम् थे।
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय गीत (National Song) का दर्जा दिया।
महत्व और प्रतीकात्मकता
वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं है बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा रहा है। इसने असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।
यह भारत की एकता, अखंडता एवं सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। यह मातृभूमि के प्रति असीम प्रेम, श्रद्धा व समर्पण का भाव जगाता है।
संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ के समान सम्मान दिया है। हालाँकि, इसे गाना अनिवार्य नहीं है।
150वीं वर्षगांठ के समारोह
इस अवसर पर पूरे देश में ‘वंदे मातरम्’ का सामूहिक गायन आयोजित किया जाएगा, जिसमें समाज के सभी वर्गों की जनभागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है।
सरकार इस गीत की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्ता को उजागर करने के लिए वर्षभर कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन करेगी।
इसे भी जानिए!
आधुनिक बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार शोनार बांग्ला’ को रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1906 में बंगाल विभाजन के विरोध में लिखा था। यह गीत बांग्लादेश की बंगाली पहचान और वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम का प्रतीक बन गया और राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में हुआ था। बंकिम ने अपना पहला बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में लिखा था। बंकिम ने रायबहादुर और सी.आई.ई. (Companion of the Most Eminent Order of the Indian Empire) जैसी उपाधियां भी अर्जित कीं।