(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
- तमिलनाडु ने एक बार फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में देश को नई दिशा दिखाई है। जिस प्रकार राज्य ने 1990 के दशक में TNSACS मॉडल के जरिए एचआईवी/एड्स के संक्रमण को नियंत्रित किया था, उसी तरह अब वह टीबी (क्षय रोग) नियंत्रण के लिए उन्नत प्रेडिक्शन मॉडल और प्रभावी प्रशासनिक तरीकों का उपयोग कर रहा है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2025 में भारत के लिए गंभीर आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, और ऐसे समय में तमिलनाडु का मॉडल एक आशाजनक समाधान माना जा रहा है।
एड्स महामारी का परिदृश्य: एक ऐतिहासिक संदर्भ
- 1980 और 1990 के दशक में दुनिया खासकर अफ्रीका और भारत, एचआईवी-एड्स के तेजी से फैलते संक्रमण के खतरे का सामना कर रहे थे।
- भारत में एचआईवी संक्रमण लगभग सभी राज्यों में फैल चुका था।
- उत्तर-पूर्व में संक्रमण का बड़ा कारण नशीली दवाओं का इंजेक्शन के माध्यम से उपयोग।
- उस समय एच.आई.वी. का कोई इलाज नहीं था और अधिकांश संक्रमित व्यक्ति कुछ वर्षों में एड्स से ग्रस्त हो जाते थे।
TNSACS मॉडल क्या है
- वर्ष 1994 में तमिलनाडु ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए अपने ‘राज्य एड्स सेल’ को ‘तमिलनाडु राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी’ (TNSACS) में परिवर्तित किया।
- मुख्य विशेषताएँ
- सोसाइटी मॉडल होने के कारण इसे सीधा फंड प्राप्त होता था।
कार्यान्वयन में स्वायत्तता और तेजी।
- व्यापक जन-जागरूकता अभियान, विशेषकर उच्च जोखिम वाले समूहों पर फोकस।
- परिणाम
- नए एचआईवी संक्रमणों में तेज गिरावट।
- भारत सरकार और विश्व बैंक ने इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया (1997–2002)।
- भारत की एचआईवी प्रसार दर वर्ष 2000 में 0.54% से घटकर आज 0.22% रह गई।
टीबी (क्षय रोग) की मौजूदा स्थिति
- WHO की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक टीबी बोझ का 25% भारत में है (3.6 करोड़ में से लगभग 90 लाख)।
- भारत में एच.आई.वी.-टीबी सह-संक्रमण गंभीर समस्या; एड्स से होने वाली 25% मौतों का कारण टीबी होता है।
- भारत दुनिया में MDR-TB (मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट टीबी) के 25% मामलों का केंद्र बन चुका है।
- भारत ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया था कि वर्ष 2025 तक टीबी खत्म कर देगा, लेकिन लक्ष्य पूरा नहीं हुआ।
- फिर भी भारत में नए टीबी मामलों में गिरावट की रफ्तार वैश्विक औसत से तेज है।
तमिलनाडु का टीबी नियंत्रण मॉडल
तमिलनाडु ने टीबी नियंत्रण में तकनीक, प्रेडिक्टिव मॉडलों और प्रशासनिक दक्षता को मिलाकर एक सशक्त प्रणाली बनाई है।
1) ICMR-NIE का प्रेडिक्शन मॉडल
- यह मॉडल टीबी मरीजों में मृत्यु की संभावना पहले से बता सकता है।
- इसे राज्य के स्क्रीनिंग और डायग्नोसिस ऐप से जोड़ दिया गया है।
- उच्च जोखिम वाले मरीजों के लिए तुरंत हस्तक्षेप समय रहते इलाज और पोषण सहायता।
2) राज्य और केंद्र का संयुक्त प्रयास
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और राज्य टीबी कार्यालय का समन्वय।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक तकनीकी क्षमताओं का विस्तार।
3) उपचार और पोषण सहायता
- प्रधानमंत्री टीबी भारत अभियान (PMTBMBA) के तहत मरीजों को पोषण समर्थन।
- निजी क्षेत्र और समुदाय की सक्रिय भागीदारी।
मुख्य निष्कर्ष
- तमिलनाडु ने एड्स नियंत्रण में अपना पुराना सफल मॉडल, अब टीबी नियंत्रण में आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के साथ दोहराया है।
- राज्य का सिस्टम तेजी से डाटा विश्लेषण, समय पर उपचार और तकनीक आधारित निगरानी पर आधारित है।
- सामाजिक जागरूकता और प्रशासनिक दक्षता दोनों मिलकर बीमारी के बोझ को कम कर रहे हैं।
महत्व
- यह मॉडल उन पांच प्रमुख भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ भारत के 56% टीबी मामले पाए जाते हैं।
- भारत अपनी टीबी उन्मूलन रणनीति में इस मॉडल को अपनाकर वर्ष 2030 के वैश्विक लक्ष्य से पहले भी बड़ी प्रगति कर सकता है।
- यह मॉडल डेटा-संचालित स्वास्थ्य नीति का एक उदाहरण है, जो एचआईवी और टीबी दोनों जैसी संक्रामक बीमारियों में अत्यधिक प्रभावी साबित हो रहा है।
चुनौतियाँ
- कई राज्यों में स्वास्थ्य अवसंरचना और कार्यबल की कमी।
- MDR-TB मामलों की तेजी से वृद्धि।
- शहरी मलिन बस्तियों और दूरदराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में स्क्रीनिंग की सीमाएँ।
- मरीजों में सामाजिक कलंक और अधूरा इलाज।
- डाटा रिपोर्टिंग और निजी क्षेत्र के समन्वय में अंतर।
आगे की राह
- तमिलनाडु मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना विशेषकर प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स और डिजिटल मॉनिटरिंग।
- MDR-TB प्रबंधन के लिए दवाओं की उपलब्धता और परीक्षण सुविधाएँ बढ़ाना।
- समुदाय आधारित अभियान और पोषण सहायता को और मजबूत करना।
- निजी अस्पतालों, NGOs और CSR को अधिक संगठित तरीके से शामिल करना।
- राज्यों में क्षमता निर्माण, स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण और फील्ड मॉनिटरिंग में सुधार।