(प्रारंभिक परीक्षा: महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट एवं सूचकांक) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ) |
संदर्भ
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘राज्यों के वित्त की स्थिति 2025’ (State of State Finances 2025) जारी की है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- उच्च प्रतिबद्ध व्यय :
- वित्त वर्ष 2023-24 में राज्यों ने अपनी कुल राजस्व प्राप्तियों का लगभग 62% हिस्सा वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान व सब्सिडी पर खर्च किया।
- इनमें से 53% वेतन, पेंशन एवं ब्याज भुगतान पर तथा 9% सब्सिडी पर गया।
- इससे विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं के लिए सीमित वित्तीय संसाधन बचे।
- GST से राजस्व में गिरावट :
- जी.एस.टी. लागू होने (2017) के बाद राज्यों की कर-संग्रह क्षमता कमजोर हुई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, सम्मिलित करों से राजस्व 2015-16 में GDP का 6.5% था जो 2023-24 में घटकर 5.5% रह गया।
- 15वें वित्त आयोग ने अनुमान लगाया था कि मध्यम अवधि में यह अनुपात 7% तक पहुंचेगा किंतु वास्तविकता में गिरावट देखने को मिली है।
- बिना शर्त निधियों में कमी :
- 15वें वित्त आयोग के तहत राज्यों को दिए जाने वाले कुल अंतरणों में बिना शर्त वाली निधियों (Untied Funds) की हिस्सेदारी घटकर 64% रह गई है जबकि 14वें वित्त आयोग के दौरान यह 68% थी।
- इससे राज्यों की स्वतंत्र व्यय क्षमता प्रभावित हुई है।
- बढ़ता ऋण बोझ :
- वर्ष 2024-25 में राज्यों का कुल बकाया ऋण GDP का 27.5% रहा है जो FRBM अधिनियम में निर्धारित 20% की सीमा से काफी अधिक है।
- केवल गुजरात, महाराष्ट्र एवं ओडिशा ही इस सीमा का पालन कर रहे हैं।
- ब्याज भुगतान का बढ़ता दबाव :
- वर्ष 2016-17 से 2024-25 के बीच ब्याज भुगतान में 10% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है जो राजस्व वृद्धि दर से अधिक है। इससे राजकोषीय दबाव और बढ़ा है।
- महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएँ :
- वर्ष 2025-26 तक 12 राज्य महिलाओं को बिना शर्त नकद हस्तांतरण योजनाएँ चला रहे हैं।
- हालाँकि, ये योजनाएँ सामाजिक दृष्टि से लाभकारी हैं किंतु इनसे वित्तीय भार अधिक बढ़ा है।
- राज्यों के बीच आय असमानता :
- उच्च आय वाले राज्य प्रति व्यक्ति अधिक राजस्व अर्जित करते हैं और विकास पर अधिक व्यय करते हैं जिससे निम्न-आय वाले राज्यों व समृद्ध राज्यों के बीच आर्थिक अंतराल बढ़ता जा रहा है।
आगे की राह : सुझाव
वित्तीय अनुशासन
राज्यों को अपने राजस्व घाटे को कम करना चाहिए और नियमित खर्चों को पूरा करने के लिए उधार लेने से बचना चाहिए। साथ ही, बजट से बाहर के ऋणों (Off-budget Borrowings) को समाप्त करना आवश्यक है।
ऋण नियंत्रण
राज्यों को अपने कुल ऋण को GDP के 20% लक्ष्य के करीब लाना चाहिए ताकि ब्याज बोझ को कम किया जा सके।
राजस्व वृद्धि के उपाय
GST स्लैब को सरल एवं सुव्यवस्थित करना चाहिए। गैर-कर राजस्व बढ़ाने के लिए उपयोगकर्ता शुल्क, खनन रॉयल्टी, संपत्ति कर व संपत्ति मुद्रीकरण जैसे विकल्प अपनाए जाने चाहिए।
तर्कसंगत व्यय
- सब्सिडी एवं नकद हस्तांतरण को तर्कसंगत बनाना चाहिए।
- प्रतिबद्ध व्यय को नियंत्रित करते हुए पूंजीगत व्यय पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
- बिना शर्त वाली निधियों का विस्तार कर राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए।
निष्कर्ष
‘राज्यों के वित्त की स्थिति 2025’ रिपोर्ट यह स्पष्ट संकेत देती है कि भारत के राज्यों को अपने वित्तीय प्रबंधन में दीर्घकालिक सुधार लाने की आवश्यकता है। यदि राज्यों को विकास और सामाजिक कल्याण के लक्ष्यों को हासिल करना है तो उन्हें राजस्व सृजन के नए स्रोतों पर ध्यान देना होगा और गैर-उत्पादक खर्चों को नियंत्रित करना होगा। वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता ही भविष्य के संतुलित आर्थिक विकास की कुंजी है।