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ठंडे एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए आकस्मिक फ़सल योजना

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3; प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र)

संदर्भ 

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Sher-e-Kashmir University of Agricultural Sciences and Technology : SKUAST)नेइस ग्रीष्म ऋतु मेंकश्मीर की शुष्क परिस्थितियों से निपटने के लिएबीज वितरण से लेकर फसल कैलेंडर के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत की है। यह योजना कश्मीर सहित अन्य शीतएवं शुष्क क्षेत्रों में कृषि के लिए संभावनाएँ प्रस्तुत करता है। 

शुष्क मौसम का प्रतिकूल प्रभाव 

  • कश्मीर सहित इसके संलग्न पहाड़ी क्षेत्रों में इस वर्षशीत ऋतु शुष्क रहने के कारण जनवरी एवंफरवरी माह में बारिश में लगभग 80% की कमी दर्ज की गई है। इसके अतिरिक्तइन क्षेत्रों में बर्फबारी में भी काफी कमी आई है।
  • विशेषज्ञों नेपूर्व में ही चेतावनी दी हैकि मौसम के शुष्क रहने के कारण आने वाले बसंत एवंगर्मियों में सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
    • इससेसिंचितकृषि (धान),बागवानी,पनबिजली उत्पादन एवंपेयजलआपूर्ति जैसेजल-निर्भर क्षेत्रों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ऐसेमें जंगलों में आग लगने की घटनाओं में भी वृद्धि हो सकती है।

आकस्मिक फसल योजना 

  • एस.के.यू.ए.एस.टी.के शोधकर्ताओं ने इन क्षेत्रों के किसानों के लिए रोपण एवं अनुकूलन रणनीतियाँ तैयार की हैं।
    • इसके तहत शोधकर्ताओं ने सूखे जैसी स्थिति केअल्पकालिक एवंदीर्घकालिक शमन के लिए एक ‘आकस्मिक फसल योजना’ तैयार की है।
  • इस योजना में रसद सहायता के साथ कृषि सलाहकार सेवाएँ भी शामिल हैं जिसमें सूखे जैसी स्थिति में किसानों तथाअन्य हितधारकों को लाभ एवं सहायता प्रदान की जाती है। 

बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना 

  • सूखे जैसी स्थितियों में कृषि आगतों में मुख्यत:बीज की उपलब्धता सबसे महत्वपूर्ण है।
    • शोधकर्ताओं के अनुसार, एस.के.यू.ए.एस.टी. कृषिएवं सब्जी की फसलों के प्रजनक बीज का उत्पादन करता है।
  • वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता इन क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थिति से निपटने के उद्देश्य से चावल के अतिरिक्त अन्य फसलों के उपभोगवशुष्कता-सहिष्णु फसलों के उत्पादन की सलाह देते हैं। 
    • विश्वविद्यालय ने मक्का वदालों की शुष्कता-सहिष्णु एवं संकर किस्मों केबीज की उपलब्धता सुनिश्चित की है। 
    • ये फसलें शुष्क परिस्थितियों के लिए अधिक लचीली होती हैं। विशेष रूप से दालों को कम पानी की आवश्यकता होती है और वे न्यूनतम क्षति के साथ उचित उपज दे सकती हैं।

सूखा शमन रणनीतियाँ

मल्चिंग

मल्चिंग के तहत नमी को संरक्षित करने और मृदा की स्थिति में सुधार के लिए फसलों को  छाल, लकड़ी के अवशेष, पत्तियों एवंअन्य कार्बनिक पदार्थों जैसी सामग्रियों से ऊपरी मृदा को ढंकना शामिल है। 

एंटी-ट्रांसपिरेंट एजेंटों का उपयोग

विशेषज्ञों ने एंटी-ट्रांसपिरेंट एजेंटों का उपयोग करने की भी सिफारिश की है जो पौधों को वायु में जल के उत्सर्जन से रोकते हैं। इसी तरह के उपाय सेब जैसी बागवानी फसलों पर लागू होते हैं।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा

शोधकर्ता किसानों को ड्रिप सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को अपनाने पर बल देते हैं।केसर के खेतों में मिस्ट स्प्रेयर जैसी जल संरक्षण तकनीकें इस्तेमाल की जा रही हैं।इन संयुक्त प्रयासों का लक्ष्य किसानों को बदलती मौसम स्थितियों के अनुकूल होने और कृषि उत्पादकता बनाए रखने में मदद करना है।

कीट प्रबंधन 

  • फसल संरक्षण में कीट प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। बढ़ते तापमान के साथ कीटों की कई प्रजातियाँ पहले से अधिक आक्रामक एवं सक्रिय हो गई हैं। 
    • उदाहरण के लिए,एफिड्स नामक एक सामान्य कीट गर्म मौसम में अपने जीवन चक्र को तेजी से पूरा अधिक संतति उत्पन्न करता है। 
    • शोधकर्ताओं के अनुसार सेब की फसलों का एक कीट लीफ माइनर ब्लॉच भी इसी कारण से एक बड़ी समस्या बन गया है।

सलाहकारी सेवाएँ

  • शोधकर्ताओं के अनुसार किसानों को सलाह जारी करने और ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए  अभिनव रासायनिक नियंत्रण उपायों का सुझाव देने की आवश्यकता है।
  • शोधकर्ताओं द्वारा मौसम विभाग से प्राप्त मौसम संबंधी डाटा के आधार पर फसल कैलेंडर का विकास किया जाता है। 
    • ये कैलेंडर सामान्य फसल चक्रों के साथ-साथ वैकल्पिक फसलों को भी निर्दिष्ट करते हैं जिन्हें सूखे की स्थिति में लगाया जाना चाहिए। 
  • वैज्ञानिकों ने रोपण कार्यक्रम को समायोजित करने, बेहतर अंकुर उत्पादन तकनीकों का उपयोग करने और मृदा के पोषक तत्वों तथा नमी को संरक्षित करने वाली तकनीकों को अपनाने का भी सुझाव दिया।
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