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उपचारात्मक याचिका (Curative Petition)

[ प्रारंभिक परीक्षा के लिये– उपचारात्मक याचिका, पुनर्विचार याचिका ]
[ मुख्य परीक्षा के लिये:सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 - न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य ]

सन्दर्भ

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अमेरिका में स्थित यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त धनराशि के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली अपनी उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटिशन) पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है कि वह इस याचिका पर आगे बढ़ना चाहती है या नहीं।

क्या है उपचारात्मक याचिका ?

  • Curative Petition शब्द की उत्पत्ति Cure शब्द से हुयी है, जिसका आशय है उपचार।
  • उपचारात्मक याचिका तब दाखिल की जाती है, जब किसी व्यक्ति की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिका खारिज हो गयी हो।
  • उपचारात्मक याचिका में वकीलों द्वारा बहस नहीं होती, लेकिन याचिकाकर्ता अपने पक्ष को लिखित तौर पर पेश कर सकता है।
  • उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की पीठ किसी भी स्तर पर किसी वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र (Amicus Curiae) के रूप में मामले पर सलाह के लिये आमंत्रित कर सकती है।
  • सामान्यतः उपचारात्मक याचिका की सुनवाई जजों के चेंबर में ही हो जाती है परंतु याचिकाकर्त्ता के आग्रह पर इसकी सुनवाई ओपन कोर्ट में भी की जा सकती है।
  • आमतौर पर राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद कोई भी मामला खत्म हो जाता है।
  • लेकिन 1993 के बॉम्बे सीरियल ब्लास्ट मामले में दोषी याकूब अब्दुल रज़्ज़ाक मेमन के मामले में ये अपवाद हुआ और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार कर ली थी।

संवैधानिक उपबंध

  • सुप्रीम कोर्ट को भारत के संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत ‘पूर्ण न्याय करने का अधिकार’है। इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के बाद उपचारात्मक याचिका दाखिल करने का अधिकार दिया है।
  • संविधान के अनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के, या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति प्राप्त है।

उपचारात्मक याचिका की अवधारणा

  • उपचारात्मक याचिका की अवधारणा साल 2002 में रूपा अशोक हुरा बनाम अशोक हुरा और अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सामने आयी,जब बहस के दौरान ये पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी क्या किसी दोषी को राहत मिल सकती है।
  • नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है, लेकिन पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिये जाने के बाद क्या किया जा सकता है।
  • तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने दिए गए निर्णय पर फिर से विचार करने के लिए उपचारात्मक याचिका की धारणा सामने आयी।

उपचारात्मक याचिका दाखिल करने के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ

  • उपचारात्मक याचिका में याचिकाकर्ता को यह बताना ज़रूरी होता है कि वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रहा है।
  • उपचारात्मक याचिका में याचिकाकर्ता उन्ही मुद्दों को आधार बना बना सकता है, जिन पर पूर्व में दायर पुनर्विचार याचिका में विस्तृत विमर्श न हुआ हो।
  • सर्वोच्च न्यायालय में उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई तभी होती है, जब याचिकाकर्ता यह प्रमाणित कर सके कि उसके मामले में न्यायालय के निर्णय से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है तथा अदालत द्वारा निर्णय देते समय उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया है।

उपचारात्मक याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया

  • पुनर्विचार याचिका में पारित निर्णय या आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर उपचारात्मक याचिका दायर होनी चाहिए।
  • उपचारात्मक याचिका का उच्चतम न्यायालय के किसी वरिष्ठ वकील द्वारा प्रमाणित होना अनिवार्य है।
  • जिसके बाद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्टतम जजों के पास भेजा जाता है जिनमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होते है।
  • उच्चतम न्यायलय की यह पीठ बहुमत से निर्णय लेती है की इस याचिका पर पुनः सुनवाई कि जानी चाहिये या नही।
  • यदि पीठ द्वारा इस पर पुनः सुनवाई का निर्णय लिया जाता है तो याचिका को सुनवाई के लिये पुनः उसी पीठ के पास भेज दिया जाता है, जिसने पिछली बार इस मामले में निर्णय दिया था।
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