(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव; बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि) |
संदर्भ
हाल ही में, भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 को मंज़ूरी प्रदान की है जिसे अब ‘भारत परिवर्तन के लिए नाभिकीय ऊर्जा का सतत दोहन एवं संवर्धन (शांति) विधेयक’ नाम दिया गया है। इसे शांति (Harnessing and Advancement of Nuclear energy for Transforming India (SHANTI) Bill) विधेयक भी कहा जा रहा है।
प्रमुख बिंदु : पृष्ठभूमि
- यह विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में संशोधन कर भारत के अत्यधिक बंद परमाणु ऊर्जा ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करने का प्रस्ताव करता है।
- इस कदम का उद्देश्य भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु प्रतिबद्धताओं और ग्रिड स्थिरता के लिए नागरिक परमाणु ऊर्जा में निजी और विदेशी भागीदारी को सक्षम बनाना है।
- इसका उद्देश्य परमाणु शक्ति उत्पादन में भारतीय एवं विदेशी दोनों तरह के निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी को बढ़ावा देना है। यह भारत के मौजूदा कानूनों ‘परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962’ और ‘नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (CLND), 2010’ का स्थान लेगा।
शांति विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- यह विधेयक एक ऐसा परमाणु ऊर्जा विनियम ढांचा के निर्माण का प्रस्ताव करता है जो संसद के प्रति जवाबदेह होगा तथा न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का नाभिकीय संयंत्र संचालन पर एकाधिकार खत्म करता है और उन मामलों को सीमित करता है जिनमें न्यूक्लियर पावर प्लांट ऑपरेटर किसी दुर्घटना की स्थिति में उपकरण आपूर्तिकर्ता से मुआवजा मांग सकते हैं।
- साथ ही, यह ऑपरेटरों को अधिनियम के तहत कानूनों का उल्लंघन करने पर उनकी जवाबदेही की सीमा तय करके सुरक्षा भी देता है जो उनके द्वारा चलाए जा रहे संयंत्र के आकार पर आधारित होगी और ‘गंभीर उल्लंघन’ के मामले में भी उन पर अधिकतम जुर्माना ₹1 करोड़ तक सीमित करता है।
- यह विधेयक परमाणु क्षति के लिए एक संशोधित एवं व्यावहारिक नागरिक दायित्व ढांचा का प्रस्ताव करता है और एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) को कानूनी दर्जा प्रदान करता है और सुरक्षा, सिक्योरिटी, सेफगार्ड, क्वालिटी एश्योरेंस एवं आपातकालीन तैयारियों से जुड़े तंत्र को मज़बूत करता है।
- निजी एवं विदेशी हिस्सेदारी के अंतर्गत निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में 49% तक हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी गई है।
- निजी भागीदारी का दायरा केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें-
- परमाणु खनिजों का अन्वेषण
- ईंधन एवं उपकरण निर्माण
- संयंत्र संचालन के कुछ पहलुओं का चयन
- लघु मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) का अनुसंधान एवं विकास (R&D) शामिल हैं।
परमाणु क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता
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ऊर्जा संक्रमण और बेसलोड: नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे- सौर व पवन) के तीव्र विस्तार ने ग्रिड की अस्थिरता को बढ़ा दिया है क्योंकि इनमें पर्याप्त ऊर्जा भंडारण नहीं होता है। वहीं, कोयला एवं तापीय ऊर्जा पर पर्यावरणीय व राजनीतिक प्रतिबंध हैं। परमाणु ऊर्जा इन कमियों को दूर करते हुए विश्वसनीय बेसलोड बिजली और निम्न कार्बन उत्सर्जन वाला विकल्प प्रदान करती है।
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पूंजीगत आवश्यकताएँ: भारत का परमाणु विस्तार अब मुख्यत: प्रौद्योगिकी की कमी के बजाय पूंजीगत बाधाओं से प्रेरित है। इन सुधारों से विदेशी संप्रभु धन कोषों (विशेषकर पश्चिम एशिया के) और अन्य निजी निवेशकों को आकर्षित करने की उम्मीद है।
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भारत-अमेरिका समझौते का लाभ: इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के लगभग दो दशक बाद भी इसकी व्यावसायिक क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो सका है जिसे अब इन सुधारों के माध्यम से भुनाने की तैयारी है।
भारत की परमाणु क्षमता महत्वाकांक्षा
- भारत की महत्त्वाकांक्षा वर्ष 2047 तक 100 गीगावॉट (GWe) परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना है जो वर्तमान में लगभग 8 GWe है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए SMRs को एक नया स्तंभ बनाया जा रहा है।
- ₹20,000 करोड़ के परिव्यय के साथ SMR में R&D पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। वर्ष 2033 तक कम-से-कम 5 स्वदेशी रूप से विकसित SMRs (300 MW से कम क्षमता वाले) को परिचालन में लाने का लक्ष्य है।
SMR का महत्व
- सुविधा: छोटा आकार, मॉड्यूलर संरचना और त्वरित तैनाती संभव
- उपयोगिता: यह औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन (जैसे- स्टील, सीमेंट) और कैप्टिव पावर (जैसे- डेटा सेंटर) के लिए उपयुक्त
- ग्रिड स्थिरता: ये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के पूरक के रूप में कार्बन-तटस्थ बेसलोड बिजली प्रदान करते हैं।
- स्वदेशी डिजाइन: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) भारत लघु रिएक्टर (BSR-220 MW) और भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR– 200 MW) जैसे उन्नत SMR डिज़ाइन विकसित कर रहा है।
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निजी क्षेत्र की रुचि और परिचालन मॉडल
- रुचि दिखाने वाली कंपनियाँ: रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अदानी पावर, हिंडाल्को, जेएसडब्ल्यू एनर्जी, जिंदल स्टील एंड पावर जैसी बड़ी कंपनियों ने SMR परियोजनाओं में रुचि दिखाई है।
- सरकारी स्वामित्व वाली न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के पास SMR का स्वामित्व एवं परिचालन नियंत्रण बरकरार रहेगा।
- निजी कंपनियाँ संपूर्ण परियोजना जीवनचक्र (वित्तपोषण सहित) का प्रबंधन करेंगी और उन्हें बदले में सुनिश्चित दीर्घकालिक कैप्टिव बिजली आपूर्ति प्राप्त होगी।
परमाणु दायित्व कानून में मुख्य अड़चन
- परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA) निजी एवं विदेशी निवेश के लिए सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
- CLNDA में ‘प्रतिपूर्ति का अधिकार’ शामिल है जो ऑपरेटरों को दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्ताओं (विदेशी विक्रेताओं) से मुआवजा मांगने की अनुमति देता है। विदेशी विक्रेता (जैसे- वेस्टिंगहाउस, EDF) इसे निवेश में एक बड़ी बाधा मानते हैं।
- प्रस्तावित समाधानों में आपूर्तिकर्ता की जवाबदेही को एक निश्चित सीमा से अधिक होने पर सीमित करना या राज्य समर्थित बीमा/निधि कोष का निर्माण शामिल है ताकि भारतीय कानून को वैश्विक दायित्व समझौतों के अनुरूप बनाया जा सके।
आगे की राह
- जनता का विश्वास: परमाणु सुरक्षा को लेकर राजनीतिक एवं सार्वजनिक चिंताओं को दूर करने के लिए स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा निगरानी को मजबूत करना आवश्यक है।
- व्यावसायिक व्यवहार्यता: निजी क्षेत्र की चिंताओं (विशेषकर व्यावसायिक व्यवहार्यता एवं जोखिम साझाकरण) का समाधान करना जरुरी है।
- प्रौद्योगिकी संक्रमण: स्वदेशी दाबयुक्त भारी जल रिएक्टर (Pressurized Heavy Water Reactor: PHWR) प्रधान बेड़े को संरक्षित करते हुए धीरे-धीरे विश्व स्तर पर अग्रणी लाइट वॉटर रिएक्टर (Light Water Reactor: LWR) प्रौद्योगिकियों की ओर बढ़ना आवश्यक है।
निष्कर्ष
परमाणु ऊर्जा विधेयक 2025 भारत की ऊर्जा नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है जो देश को एक रणनीतिक, निवेश-अनुकूल एवं जलवायु-अनुकूल परमाणु ऊर्जा ढांचे की ओर ले जा रहा है।