(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ (जल-स्रोत व हिमावरण सहित) तथा वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव) |
संदर्भ
हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र को ‘एशिया के जल स्तंभ’ के रूप में जाना जाता है जो एशिया की 10 प्रमुख नदी प्रणालियों का उद्गम स्थल है। अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) द्वारा जारी ‘हिंदुकुश स्नो अपडेट, 2024’ रिपोर्ट में गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं सिंधु नदी घाटियों में हिम स्थायित्व (Snow Persistence) में गंभीर गिरावट को दर्शाती है जोकि क्षेत्रीय जल सुरक्षा, कृषि एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- गंगा नदी बेसिन में पिछले 22 वर्षों में सबसे कम हिम स्थायित्व रिकॉर्ड किया गया, जो दीर्घकालिक ऐतिहासिक औसत से 17% कम रहा।
- वर्ष 2015 में गंगा बेसिन का हिम स्थायित्व सामान्य से 25.6% अधिक था।
- ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में यह सामान्य से 14.6% कम रहा और सिंधु नदी बेसिन में 23.3% की गिरावट देखी गई।
- अफगानिस्तान एवं ईरान के लिए महत्वपूर्ण अमूदरिया व हेलमंड नदी घाटियों में गिरावट क्रमशः 28.2% और 32% कम रहा।
क्या है हिम स्थायित्व (Snow Persistence)
- हिम स्थायित्व (Snow Persistence) का तात्पर्य उस अवधि से है जब कोई क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है। इस अवधि में सर्दियों के मौसम में बर्फ जमती है और बसंत-गर्मी में वह धीरे-धीरे पिघलती है।
- हिम स्थायित्व गिरावट : जब किसी क्षेत्र में सामान्य की तुलना में कम समय तक बर्फ रहती है या वह जल्दी पिघल जाती है तो यह स्थिति हिम स्थायित्व में गिरावट कहलाता है।
हिम स्थायित्व का महत्व
हिम स्थायित्व जल सुरक्षा, पर्यावरणीय संतुलन, कृषि एवं आर्थिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण आधार है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ जा सकता है-
- जल संसाधनों की निरंतरता सुनिश्चित करना : हिमालयी क्षेत्रों में जमा बर्फ बसंत एवं गर्मियों में पिघलती है और धीरे-धीरे नदियों में जल प्रवाह बनाए रखती है। ऐसे में हिम स्थायित्व का बने रहना पीने के पानी, सिंचाई एवं उद्योगों के लिए आवश्यक जल उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
- गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी नदियों में जल का एक बड़ा हिस्सा हिमगलन (Snowmelt) से आता है।
- गंगा: 10.3%
- ब्रह्मपुत्र: 13.2%
- सिंधु: लगभग 40%
- कृषि एवं खाद्य सुरक्षा में योगदान : पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों की खेती (विशेष रूप से रबी फसल) की सिंचाई हिमगलन से प्राप्त जल पर निर्भर करती है। इसमें गिरावट से जल की कमी होगी, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि, कृषकों की आय में कमी, खाद्य असुरक्षा में वृद्धि हो सकती है।
- जलविद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक : भारत में कई हाइड्रोपावर परियोजनाएँ (विशेषकर हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर में) हिम-जल पर आधारित हैं। हिम स्थायित्व में गिरावट से बाँधों एवं जलाशयों में जल की मात्रा घटने से विद्युत उत्पादन प्रभवित होगा।
- जलवायु परिवर्तन का संकेतक : हिम स्थायित्व में निरंतर कमी की प्रवृत्ति ग्लोबल वार्मिंग का एक ठोस व स्पष्ट संकेतक है।
- पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता की रक्षा : हिमालय जैसे क्षेत्रों की वनस्पति एवं जीव-जंतु ठंडे मौसम व बर्फीले आवास पर निर्भर करते हैं।
- प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम में सहायक : नियमित एवं स्थिर हिम स्थायित्व बाढ़ व ग्लेसियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) से रक्षा करता है।
- स्थानीय समुदायों की आजीविका से संबंध : पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन, पशुपालन, कृषि जैसी गतिविधि संबंधी रोजगार का सीधा संबंध बर्फ की उपलब्धता एवं मौसमी संतुलन से है।
वर्ष 2024 में हिम स्थायित्व में गिरावट के कारण
क्षेत्रीय तापमान में तीव्र वृद्धि
हिंदुकुश क्षेत्र में औसत वार्षिक तापमान वैश्विक औसत से दोगुनी गति से बढ़ रहा है। वर्ष 2024 में शीतकालीन मौसम अपेक्षाकृत गर्म रहा है जिससे बर्फ देर से जमी एवं शीघ्र पिघल गई। उच्च तापमान से बर्फ की संरचना में परिवर्तन होता है और उसका स्थायित्व काल घटता है।
पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) का कमज़ोर होना
हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी मुख्यतः पश्चिमी विक्षोभ पर निर्भर होती है। वर्ष 2023-24 के शीतकाल में इन प्रणालियों की आवृत्ति एवं तीव्रता में कमी देखी गई। इससे हिमपात में कमी आई और बर्फ की मोटाई व विस्तार प्रभावित हुआ।
जलवायु परिवर्तन से मौसम चक्र में असामान्यता
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र अनियमित हो गया है जिसमें असमय बारिश, शुष्क शीतकाल और बसंत ऋतु में अत्यधिक तापमान वृद्धि ने बर्फ के स्थायित्व को कम किया है।
स्थानीय भूमि उपयोग परिवर्तन
वनों की कटाई, पर्यटन संबंधी निर्माण एवं सड़क/हाइड्रो परियोजनाएँ बर्फ के जमाव वाले क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। इससे स्थानीय सूक्ष्म जलवायु में बदलाव आता है जो बर्फ की संरचना और उसके स्थायित्व को प्रभावित करता है।
प्रभावी निगरानी एवं डाटा की कमी
कई क्षेत्रों में हिम स्तर, बर्फबारी एवं तापमान का रियल-टाइम डाटा अनुपलब्ध है। इससे पूर्वानुमान एवं अनुकूलन नीति-निर्धारण में कठिनाई होती है और प्रतिक्रिया में देरी होती है।
हिम स्थायित्व (Snow Persistence) में गिरावट के प्रभाव
जल संसाधनों पर प्रभाव
- गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी नदियों में गर्मी के मौसम में जल प्रवाह में कमी।
- खरीफ एवं रबी फसलों के लिए आवश्यक जलापूर्ति बाधित।
कृषि पर प्रभाव
- सिंचाई जल की अनुपलब्धता से फसल उत्पादकता में गिरावट।
- लघु एवं सीमांत किसानों की आजीविका संकट में।
ऊर्जा क्षेत्र पर प्रभाव
- हाइड्रोपावर परियोजनाओं की उत्पादन क्षमता में गिरावट।
- वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों (जैसे- जीवाश्म ईंधन) पर निर्भरता बढ़ेगी।
पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
- हिमरेखा (Snowline) के ऊपर खिसकने से अल्पाइन जैव-विविधता पर खतरा।
- हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग जैसे प्रजातियों के प्रजनन चक्र व आवास में व्यवधान।
भू-राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
- सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के सीमा पार प्रवाह से जल विवाद की संभावनाएँ।
- अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD), सार्क (SAARC) जैसे मंचों पर क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता बढ़ेगी।
आपदा जोखिम में वृद्धि
- ग्लेसियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOF) की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
- अचानक बाढ़ एवं भूस्खलन से मानव जीवन व अवसंरचना पर खतरा।
मानव स्वास्थ्य एवं जीवनशैली पर प्रभाव
- जल संकट से पेयजल की गुणवत्ता पर प्रभाव।
- पर्वतीय पर्यटन, शीतकालीन खेल, पशुपालन जैसी आजीविकाओं पर प्रभाव।
नीतिगत सुझाव
- देशी वृक्ष प्रजातियों द्वारा पुनर्वनीकरण : देशज व स्थानीय वृक्ष प्रजातियों के माध्यम से पुनर्वनीकरण हिम क्षेत्र में भूमि की नमी बनाए रखने और हिम स्थायित्व में सहायक हो सकता है। यह प्रक्रिया बर्फ के पिघलने की दर को धीमा करती है जिससे गर्मियों में जल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
- मौसम पूर्वानुमान एवं चेतावनी प्रणाली का सुदृढ़ीकरण : बेहतर मौसम पूर्वानुमान एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ जल संकट के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं।
- यह स्थानीय समुदायों को समय रहते तैयारी करने और संसाधनों के समुचित प्रबंधन में सक्षम बनाती हैं।
- जल अवसंरचना का आधुनिकीकरण : जल अवसंरचना में सुधार जैसे माइक्रो-इरिगेशन, जल संचयन संरचनाएँ और वितरक नेटवर्क उपाय दीर्घकालिक अनुकूलन के लिए अनिवार्य हैं।
- हिमक्षेत्रीय नीति एवं संरक्षण : हिमपात एवं बर्फबारी वाले क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए लक्षित नीतियाँ विकसित की जानी चाहिए ताकि ये क्षेत्र अव्यवस्थित विकास, वनों की कटाई व पर्यावरणीय क्षरण से सुरक्षित रह सकें।
- सामुदायिक भागीदारी एवं क्षेत्रीय सहयोग : स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर समुदायों की सहभागिता निर्णय-निर्धारण में अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, क्षेत्रीय मंचों जैसे ICIMOD और SAARC पर्यावरण योजना के माध्यम से देशों के बीच सहयोग को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
हिंदूकुश हिमालय में घटती हिम स्थायित्व से निपटना केवल वैज्ञानिक या पर्यावरणीय चुनौती नहीं है, बल्कि यह नीति, सामाजिक भागीदारी एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की एक जटिल परत भी है। इस संकट के समाधान के लिए बहुस्तरीय दृष्टिकोण व दीर्घकालिक प्रतिबद्धता आवश्यक है।
हिंदुकुश हिमालय से संबंधित प्रमुख तथ्य
- परिचय : हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र एशिया का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्र है जिसे प्राय: ‘तीसरा ध्रुव’ (Third Pole) कहा जाता है।
- यह अंटार्कटिका एवं आर्कटिक के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हिम भंडार है।
- विस्तार : यह पर्वतीय क्षेत्र लगभग 3,500 किमी. में 8 देशों, यथा- अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, चीन (तिब्बत क्षेत्र), बांग्लादेश एवं म्यांमार में विस्तारित है।
- नदी स्रोत : सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्ज़ी, साल्विन, मेकांग, इरावदी नदी, तारिम, अमु दरिया आदि
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