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स्वशासी संस्थाओं के रूप में पंचायतों का विकास

प्रारंभिक परीक्षा-  73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, अनु. 40
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2, स्थानीय स्तर पर वित्त का हस्तांतरण एवं उसकी चुनौतियाँ

संदर्भ-

निर्वाचित प्रतिनिधियों और जनता को अपने संसाधनों के दोहन के लिए पंचायतों के महत्व के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।

Panchayats

मुख्य बिंदु-

  • 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम वर्ष, 1993 में लागू हुए थे। 
  • इसमें प्रावधान किया गया था कि भारत में स्थानीय निकाय स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करेंगे।
  • इसके अनुसरण में ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं को मजबूत करने के लिए वर्ष, 2004 में ‘पंचायती राज मंत्रालय’ का गठन किया गया।
  • विकेंद्रीकरण के प्रति राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता पंचायती राज संस्थाओं को जमीनी स्तर पर एक प्रभावी स्थानीय शासन तंत्र बनाने में महत्वपूर्ण रही है।
  • पंचायती राज संस्थाओं को अधिकारों के हस्तांतरण के संदर्भ में कुछ राज्य आगे निकल गए, जबकि कई पीछे रह गए हैं।

पंचायती राज संस्थाओं का राजस्व-

  • संविधान संशोधन में पंचायती राज संस्थाओं के राजस्व के बारे में निम्नलिखित स्रोत बताए गए हैं;
    • स्वयं के राजस्व का सृजन 
    • केंद्रीय अधिनियमों से निर्गत 
    • विभिन्न राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों में कराधान और संग्रह के प्रावधान 
  • मंत्रालय के ऐसे हस्तक्षेपों में सहभागी योजना और बजटिंग अंतिम परिणाम था।
  • इन प्रावधानों के आधार पर पंचायतों ने अधिकतम सीमा तक अपने स्वयं के संसाधन उत्पन्न करने का प्रयास किया है।
  • पंचायतों को करों के माध्यम से राजस्व का केवल 1% मिलता है।
  • शेष राजस्व राज्य और केंद्र से अनुदान के रूप में मिलता है।
  • अनुदान का 80% केंद्र से और 15% राज्यों से आता है। 
  • इस प्रकार 30 वर्षों के बाद भी पंचायतों द्वारा जुटाया गया राजस्व बहुत कम है।

राजस्व के स्रोत के अपने रास्ते (own source of revenue- OSR)  -

  • ग्रामीण स्थानीय निकायों के OSR पर पंचायती राज मंत्रालय द्वारा विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। 
  • इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में राज्य अधिनियमों का अध्ययन करने के बाद कहा, पंचायतों द्वारा कर राजस्व और गैर- कर राजस्व एकत्र कर उनका उपयोग किया जा सकता है। 
  • ग्रामीण स्थानीय निकायों के राजस्व के स्रोत हैं,
    • संपत्ति कर
    • भूमि राजस्व पर उपकर
    • अतिरिक्त स्टांप शुल्क पर अधिभार
    • टोल
    • व्यवसाय पर कर 
    • विज्ञापन
    • पानी, स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था पर शुल्क 
  • उपर्युक्त प्रमुख OSR हैं, जहां पंचायतें अधिकतम आय अर्जित कर सकती हैं। 
  • पंचायतों से अपेक्षा की जाती है कि वे उचित वित्तीय नियमों को लागू करके कराधान के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करेंगी। 
  • कर राजस्व के बारे में अनुकूल वातावरण बनाना; 
    • कर और गैर-कर आधारों के संबंध में निर्णय लेना
    • उनकी दरें निर्धारित करना
    • आवधिक संशोधन के लिए प्रावधान करना
    • छूट के क्षेत्रों को परिभाषित करना 
    • संग्रह के लिए प्रभावी कर प्रबंधन और प्रवर्तन कानून बनाना 
  • गैर-कर राजस्व के संभावना क्षेत्र हैं;
    • शुल्क
    • निवेश बिक्री से आय 
    • किराये के शुल्क 
  • कुछ नवीन परियोजनाएँ भी OSR उत्पन्न कर सकती हैं; 
    • ग्रामीण व्यापार केंद्र
    • नवीन वाणिज्यिक उद्यम
    • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व 
    • दान
    • कार्बन क्रेडिट से प्राप्त आय 

ग्राम सभाओं की भूमिका-

  • पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन और समावेशी भागीदारी के माध्यम से ग्राम सभाएँ जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं। 
  • ये सामुदायिक विश्वास को बढ़ावा देती हैं और अंततः गाँवों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र तथा लचीला बनने के लिए सशक्त बनाती हैं।
  • ग्राम सभाओं को उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और राजस्व सृजन प्रयासों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए बाहरी हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • OSR सृजन में ग्राम सभाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे इस प्रकार देखा जा सकता है; 
    • राजस्व सृजन के लिए स्थानीय संसाधनों का दोहन करना
    • जमीनी स्तर पर आत्मनिर्भरता और सतत विकास को बढ़ावा देना
    • कृषि, पर्यटन से लेकर लघु-स्तरीय उद्योगों तक की राजस्व-सृजन पहलों की योजना बनाना, निर्णय लेना एवं कार्यान्वयन करना।
  • OSR सृजन करने के प्रति सामान्य अरुचि के पीछे अनेक कारण हैं; 
    • केंद्रीय वित्त आयोग (CFC) द्वारा अनुदान के आवंटन में वृद्धि के कारण पंचायतें OSR के संग्रह में कम रुचि दिखा रही हैं। 
    • 10वें और 11वें CFC में ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए आवंटन क्रमशः ₹4,380 करोड़ और ₹8,000 करोड़ था। 
    • 14वें और 15वें CFC में क्रमशः ₹2,00,202 और ₹2,80,733 करोड़ आवंटित करके भारी वृद्धि की गई।
    • वित्तीय वर्ष 2018-19 में कर संग्रह ₹3,12,075 लाख था, जो वित्तीय वर्ष 2021-2022 में घटकर ₹2,71,386 लाख हो गया। 
      • इसी अवधि के लिए गैर-कर संग्रह ₹2,33,863 लाख और ₹2,09,864 लाख था। 
  • पूर्व में पंचायतें बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए OSR को बढ़ाने के लिए सक्रिय थीं। 
  • वर्तमान में इसका स्थान केंद्रीय और राज्य वित्त आयोगों द्वारा आवंटित अनुदानों ने ले लिया है। 
  • कुछ राज्यों में समान अनुदान प्रदान करके प्रोत्साहन की नीति अपनाई गई है, किंतु इसे बहुत कम ही लागू किया गया।
  • पंचायतें डिफॉल्टरों को दंडित करना भी आवश्यक नहीं मानती। 
  • उनका मानना ​​है कि OSR को आय के रूप में नहीं माना गया है, बल्कि यह पंचायत वित्त से जुड़ा मामला है।

ग्राम सभाओं के अधिकार-

  • ग्राम सभाओं के पास निम्नलिखित कार्यों के लिए वित्त को निर्देशित करने, कर, शुल्क और लेवी लगाने का अधिकार है;
    • स्थानीय विकास परियोजना
    • सार्वजनिक सेवा
    • सामाजिक कल्याण कार्यक्रम
  • कई राज्यों में ग्राम पंचायतों के पास कर एकत्र करने का अधिकार नहीं है।
  • कई राज्यों में मध्यवर्ती और जिला पंचायतों को कर संग्रह की जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। 
  • ग्राम पंचायतें अपने करों का 89% एकत्र करती हैं, तो मध्यवर्ती पंचायतें 7% और जिला पंचायतें 5% की मामूली राशि एकत्र करती हैं। 
  • समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए OSR का सीमांकन करने की आवश्यकता है।

अनुदान की निर्भरता पर काबू पाना-

  • राजस्व बढ़ाने के अनेक कारक मौजूद होने के बावजूद पंचायतें संसाधन जुटाने में कई बाधाओं का सामना करती हैं।
  • इसका मुख्य कारण समाज में व्याप्त 'मुफ्त संस्कृति' (freebie culture) है।
  • इसके कारण लोग करों का भुगतान करने में उदासीनता दिखाते हैं। 
  • लोकप्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के डर से निर्वाचित प्रतिनिधि भी कुछ नहीं कहते। 
  • पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में विकसित होने के लिए राजस्व को जुटाना होगा।
  • राजस्व के महत्व को बताने के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों और जनता को शिक्षित करने की आवश्यकता है। 
  • अनुदान पर निर्भरता को कम करना होगा। 
  • पंचायतों को अपने संसाधनों पर निर्भरता के लिए सक्षम होना पड़ेगा। 
  • ऐसी स्थिति पंचायतें तभी हासिल कर सकती हैं जब शासन के सभी स्तरों पर समर्पित प्रयास हो, जिसमें राज्य और केंद्र भी शामिल हैं।

73वां एवं 74वां संशोधन अधिनियम (1992)

  • दोनों संशोधन सत्ता के विकेंद्रीकरण से संबंधित हैं।
  •  73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम-
    • राज्य नीति के निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनु. 40 में उल्लिखित ग्राम पंचायतों के गठन को 73वें संविधान संशोधन के द्वारा व्यवहारिक रूप दिया गया।
    • यह 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ।
    • इसके द्वारा संविधान में पंचायती राज संस्थाओं के बारे में प्रावधान किया गया। 
    • संविधान में भाग- IX , अनुसूची 11 तथा अनु. अनुच्छेद 243 से 243-O तक जोड़े गए।
    • अनुसूची 11 में पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय-वस्तु हैं।
  • संविधान का 74वां संशोधन अधिनियम (1992)- 
    • यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
    • इसके द्वारा संविधान में शहरी स्थानीय निकायों के बारे में प्रावधान किया गया।
    • संविधान में भाग- IX(क), अनुसूची 12 और अनु. अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक जोड़े गए। 
    • अनुसूची 12 में नगर पालिकाओं के 18 कार्यकारी वस्तु शामिल हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- ग्राम सभाओं के पास निम्नलिखित में से किन कार्यों के लिए वित्त को निर्देशित करने, कर, शुल्क और लेवी लगाने का अधिकार है?

  1.  स्थानीय विकास परियोजना
  2. सार्वजनिक सेवा
  3. सामाजिक कल्याण कार्यक्रम

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर- (d)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- राजस्व वसूलने के संदर्भ में ग्राम सभाओं के अधिकार एवं उसके प्रति उनकी निष्क्रियता की विवेचना कीजिए।

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