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जमानत के विभिन्न प्रकार

किसे कहते हैं जमानत

'जमानत' (Bail) शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द ‘बेलर' (Bailer) से हुई है। इसका तात्पर्य किसी आपराधिक मामले में अभियुक्त की अस्थायी रिहाई से है जिसमें न्यायालय का निर्णय अभी लंबित है। 

भारत में जमानत के प्रकार

नियमित जमानत (Regular Bail)

  • नियमित जमानत प्राय: उस व्यक्ति को दी जाती है जिसे गिरफ्तार किया गया है या जो पुलिस हिरासत में है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 437 एवं धारा 439 के तहत आरोपी को ऐसे कारावास से मुक्त होने का अधिकार है।

अग्रिम जमानत (Anticipatory or Advance Bail)

  • अग्रिम जमानत CrPC की धारा 438 के तहत सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा दी जाती है।
  • अग्रिम जमानत के लिए आवेदन उस व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जिसे पता है कि उसे गैर-जमानती अपराध के लिए पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।

डिफ़ॉल्ट जमानत (Default Bail)

  • पुलिस या जांच एजेंसी द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र/चार्जशीट दाखिल करने या जाँच रिपोर्ट पूरी करने में विफल होने पर डिफॉल्ट जमानत दी जाती है।
  • इसे व्यतिक्रम ज़मानत या वैधानिक ज़मानत (Statutory Bail) या बाध्यकारी जमानत भी कहते हैं।
  • ऐसे अपराध के लिए जहां बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है, पुलिस अधिकारी आरोपी को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखेगा और इन 24 घंटों के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है, तो धारा 167 आरोपी को वैधानिक या डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार देती है।

मेडिकल जमानत (Medical Bail)

  • यदि कोई आरोपी किसी चिकित्सीय स्थिति से पीड़ित है और हिरासत में रहते हुए उसे चिकित्सा उपचार की आवश्यकता है, तो वह जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
  • CrPC में मेडिकल जमानत शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, आरोपी परिस्थितियों के आधार पर धारा 437 के तहत नियमित जमानत या धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है।

अंतरिम जमानत (Interim Bail)

  • इस जमानत छोटी अवधि के लिए दी जाती है।
  • जमानत अवधि समाप्त होने पर बिना वारंट के आरोपी को हिरासत में ले लिया जाता है।
  • अंतरिम जमानत रद्द करने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है।

जमानत की शर्तें

जमानती अपराधों में जमानत

गैर-जमानती अपराधों में जमानत

  • CrPC की धारा 436 के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत जमानती अपराध के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है।

शर्तें : 

  • यह मानने के पर्याप्त कारण हो कि अभियुक्त ने अपराध नहीं किया है।
  • मामले में आगे की जांच करने के पर्याप्त कारण हो।
  • वह व्यक्ति मृत्युदंड, आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक के कारावास से दंडनीय किसी अपराध का आरोपी नहीं हो।
  • CrPC की धारा 437 के अनुसार, आरोपी को गैर-जमानती अपराधों में जमानत के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं है।
  • गैर-जमानती अपराध के मामले में जमानत देना न्यायालय का विवेकाधिकार है।

शर्तें : 

  • अगर आरोपी महिला या बच्चा है।
  • अगर सबूतों का अभाव है। 
  • यदि शिकायतकर्ता द्वारा FIR दर्ज करने में देरी की जाती है।
  • यदि अभियुक्त गंभीर रूप से बीमार है।

जमानत रद्द करना

  • CrPC की धारा 437(5) और 439(2) के तहत न्यायालय को जमानत रद्द करने की शक्ति है। 
    • न्यायालय अपने द्वारा दी गई जमानत को रद्द कर सकती है और पुलिस अधिकारी को उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने और पुलिस हिरासत में रखने का निर्देश दे सकती है।
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