(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र) |
संदर्भ
चावल निर्यात में वैश्विक रूप से अग्रणी ‘भारत’ पोषक तत्वों के असंतुलन और अनाज-केंद्रित नीतियों के कारण मृदा स्वास्थ्य तथा मानव पोषण के संकट का सामना कर रहा है।
वर्तमान चुनौतियाँ
- मृदा पोषक तत्वों की कमी : वर्ष 2024 में 88 लाख मृदा नमूनों के विश्लेषण से पता चलता है कि केवल 5% में पर्याप्त नाइट्रोजन, 40% में पर्याप्त फॉस्फेट, 32% में पर्याप्त पोटाश और 20% में पर्याप्त कार्बनिक कार्बन है।
- असंतुलित उर्वरक उपयोग : पंजाब में अत्यधिक नाइट्रोजन (61% से अधिक) और पंजाब व तेलंगाना जैसे राज्यों में फास्फोरस (89%) तथा पोटेशियम (82%) की कमी ने उर्वरक-से-अनाज प्रतिक्रिया अनुपात को 1:10 (1970 के दशक) से घटाकर 1:2.7 (2015) कर दिया है।
- छिपी हुई भूख : पोषक तत्वों की कमी वाली मृदा में ज़िंक और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है। आहार में इसकी कमी से बचपन में बौनापन एवं कुपोषण बढ़ता है। लगभग 74.1% भारतीय स्वस्थ आहार का व्यय नहीं उठा पाते हैं।
- अनाज-केंद्रित ध्यान : न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से चावल व गेहूँ पर अत्यधिक ध्यान देने से दालें, बाजरा एवं सब्ज़ियाँ जैसी फसलें हाशिए पर चली जाती हैं जिससे आहार विविधता सीमित हो जाती है।
बदलाव की आवश्यकता
- संतुलित मृदा पोषण : व्यापक उर्वरक सब्सिडी के बजाय मृदा परीक्षण के आधार पर लक्षित पोषक तत्वों के प्रयोग पर बल देने की आवश्यकता है।
- फसल विविधीकरण : आहार एवं मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए दालें, बाजरा व बागवानी जैसी पोषक तत्वों से भरपूर फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- सतत कृषि : उत्पादकता एवं संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिए सटीक खेती व एकीकृत प्रणालियों को अपनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
- पोषण-केंद्रित नीतियाँ : पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य प्रणालियों के माध्यम से कुपोषण से निपटने के लिए कृषि को स्वास्थ्य लक्ष्यों के साथ जोड़ना चाहिए।
सरकारी पहल
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना : यह किसानों को मृदा पोषक तत्वों से संबंधित आँकड़े और उनके लिए उपयुक्त सुझाव प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना : यह 80 करोड़ से अधिक लोगों तक खाद्यान्न पहुँच सुनिश्चित करती है किंतु इसमें विविध फ़सलों को शामिल करने की ज़रूरत है।
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन : यह योजना पोषक तत्वों से भरपूर फ़सलों के उत्पादन को बढ़ावा देती है, जिससे वर्ष 2022-23 में बागवानी उत्पादन 351.92 मिलियन टन तक पहुँच गया।
- पोषण अभियान : यह अभियान जागरूकता एवं आहार संबंधी हस्तक्षेपों के माध्यम से कुपोषण को लक्षित करता है।
आगे की राह
- मृदा परीक्षण विस्तार : सटीक उर्वरक उपयोग के लिए मृदा स्वास्थ्य आकलन का विस्तार।
- नीतिगत सुधार : दालों, बाजरा एवं सब्ज़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए एम.एस.पी. व पी.डी.एस. में संशोधन।
- प्रौद्योगिकी अपनाने पर बल : सटीक कृषि एवं ड्रिप सिंचाई जैसी जल-कुशल विधियों को बढ़ावा देना।
- पोषण एकीकरण : स्थानीय फ़सलों को पोषण संबंधी ज़रूरतों से जोड़ते हुए ज़िला-स्तरीय योजनाएँ विकसित करना।
- जन जागरूकता : किसानों एवं उपभोक्ताओं को संतुलित आहार व टिकाऊ प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना।
निष्कर्ष
भारत की कृषि नीतियों को मृदा स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए विविध फ़सलों को बढ़ावा देकर और स्वास्थ्य परिणामों को एकीकृत करके कैलोरी सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर स्थानांतरित करना होगा। यह समग्र दृष्टिकोण टिकाऊ फसल उत्पादन सुनिश्चित करने और कुपोषण से निपटने के लिए आवश्यक है।