(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय, निवेश मॉडल) |
संदर्भ
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment: FDI) आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण चालक है जो भारत में पूंजी, प्रौद्योगिकी एवं विशेषज्ञता लाता है। हालाँकि, हाल के रुझान एफ.डी.आई. को आकर्षित करने और बनाए रखने में चुनौतियों को उजागर करते हैं।
क्या है एफ.डी.आई.
- एफ.डी.आई. वह निवेश है जिसमें किसी विदेशी इकाई (जैसे- व्यक्ति, कंपनी या संस्था) द्वारा किसी अन्य देश की अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक निवेश किया जाता है।
- उद्देश्य : निवेश किए गए देश में व्यापारिक गतिविधियों में नियंत्रण या महत्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त करना।
- यह निवेश प्राय: किसी कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने, नई सुविधाओं (जैसे- कारखाने या कार्यालय) की स्थापना या संयुक्त उद्यम (Joint Ventures) के रूप में होता है।
मुख्य विशेषताएँ
- दीर्घकालिक निवेश : एफ.डी.आई. का उद्देश्य दीर्घकाल तक आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी होता है, न कि अल्पकालिक लाभ।
- नियंत्रण : निवेशक का व्यवसाय में प्रबंधकीय नियंत्रण या महत्वपूर्ण प्रभाव प्राप्त होता है।
- आर्थिक योगदान : एफ.डी.आई. से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, रोजगार सृजन एवं बुनियादी ढाँचे का विकास होता है।
- उदाहरण : किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत में कारखाना स्थापित करना, भारतीय कंपनी में शेयर खरीदना या तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
भारत में एफ.डी.आई. के प्रकार
- भारत में एफ.डी.आई. को दो मार्गों से अनुमति दी जाती है:
- स्वचालित मार्ग (पूर्व अनुमति के बिना)
- सरकारी मार्ग (सरकारी मंजूरी की आवश्यकता)
वर्तमान एफ.डी.आई. परिदृश्य
- शुद्ध एफ.डी.आई. में गिरावट : वित्त वर्ष 2025 में 81 बिलियन डॉलर के सकल एफ.डी.आई. प्रवाह के बावजूद भारत के शुद्ध एफ.डी.आई. में 96% तक गिरावट दर्ज़ की गई।
- यह मुख्यत: विदेशी कंपनियों द्वारा महत्त्वपूर्ण आउटबाउंड निवेश एवं निकासी के कारण हुआ।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा : निवेश में गिरावट के दौर में वियतनाम व सिंगापुर जैसे देश स्पष्ट नीतियों और निवेशकों के विश्वास के कारण अधिक एफ.डी.आई. आकर्षित कर रहे हैं।
- प्रमुख क्षेत्र : एफ.डी.आई. प्रवाह विनिर्माण, प्रौद्योगिकी एवं सेवाओं में केंद्रित है किंतु खुदरा व रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों को नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
चुनौतियाँ
- नीतिगत अनिश्चितता : पूर्वव्यापी कराधान और जटिल अनुपालन जैसे नियमों में बार-बार बदलाव निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
- बुनियादी ढाँचे की कमी : अपर्याप्त रसद, बिजली एवं डिजिटल बुनियादी ढाँचा भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करता है।
- लालफ़ीताशाही : मंज़ूरी प्रदान करने की धीमी गति और लालफ़ीताशाही दीर्घकालिक निवेश को हतोत्साहित करती हैं।
- भू-राजनीतिक कारक : वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव और व्यापार तनाव निवेशकों की धारणा को प्रभावित करते हैं।
- कम शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश : मुनाफे का उच्च प्रत्यावर्तन और भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य निवेश से शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी आती हैं।
सरकारी पहल
- उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मानदंड : अंतरिक्ष (74% स्वचालित मार्ग) और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति।
- इन्वेस्ट इंडिया : यह निवेशकों के लिए एक सुविधाकर्ता के रूप में कार्य करने के साथ ही प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है।
- उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ : इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स एवं ऑटोमोबाइल में विनिर्माण को प्रोत्साहित करती हैं।
- मेक इन इंडिया : यह भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में बढ़ावा देता है।
आगे की राह
- नीतिगत स्पष्टता : निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए पारदर्शी एवं स्थिर नियम
- व्यापार सुगमता : मंज़ूरियों को सरल बनाना और अनुपालन बोझ कम करना
- बुनियादी ढाँचा विकास : विश्व स्तरीय लॉजिस्टिक्स एवं डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश को बढ़ावा
- कौशल विकास : वैश्विक मानकों के अनुरूप कार्यबल क्षमताओं का संवर्धन
- वैश्विक जुड़ाव : व्यापार संबंधों को मज़बूत करना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का लाभ उठाना